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२५. श्री वेयावच्चगराणं सूत्र
विषय : आदान नाम : श्री वेयावच्चगराणं सूत्र गौण नाम : श्री सम्यग्दृष्टि-देव की स्तुति गाथा :१
सम्यग्दृष्टि देवों का
स्मरण करके देववंदन, चैत्यवंदन
गुरु-अक्षर : १८ प्रतिक्रमण में रत्नत्रयी की करते समय बोलते शुद्धि हेतु बोलते
लघु-अक्षर : ४
धर्म में स्थिरता व सुनते समय की मुद्रा। सुनते समय की मुद्रा।
| सर्व अक्षर : २२
समाधिकी याचना। मूल सूत्र उच्चारण में सहायक
पदक्रमानुसारी अर्थ वेयावच्चगराणं वेया-वच-च-गरा-णम्
वैयावृत्त्य (सेवाशुश्रुषा)करने वालों के निमित्त से संतिगराणं सन्-ति-गरा-णम्
शांति(उपद्रवादिका निवारण)करनेवालों के निमित्त से सम्म-द्दिट्ठि-समाहि-गराणं, सम्-मद्-दिट्-ठि-समा-हि-गरा-णम्, सम्यग्दृष्टियों को समाधिउत्पन्न करनेवालों के निमित्त से करेमिकाउस्सग्गं ॥१॥ करे-मिकाउस्-सग्-गम्॥१॥ मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।१. अन्नत्थ
अन्-नत्-थ.. गाथार्थ : वैयावृत्त्य करने वालों के निमित्त से, शांति करने वालों के निमत्त से और सम्यग् दृष्टियों को समाधिउत्पन्न कराने वाले ( देवताओं) के निमित्त से मैं कायोत्सर्ग करता हूँ।१.
प्रभुजी की विशिष्ट भावपूजा में उपयोगी देववंदन की विधि • एक खमासमण दें, उसके बाद योगमुद्रा में : बोलते हुए पूर्ण कर पुरुष नमोऽर्हत्' सूत्र बोलकर चार थोयों के 'ईरियावहियं लोगस्स तक पूरा करें।
जोड़े में से पहली थोय बोलें । उसके बाद पुनः लोगस्स सूत्र उसके बाद एक खमासमण देकर आदेश मांगें बोलकर सव्वलोए-अरिहंत चेइआणं' तथा अन्नत्थसूत्र बोलकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् चैत्यवंदन करूं ?' एकबार श्री नवकार मंत्रनो काउस्सग्ग करके पूर्णकर दूसरी थोय गुरुभगवंत कहें करेह'तब इच्छं' बोलें।
बोलें। उसके बाद सकल कुशलवल्ली'बोलकर'तुज मुरतिने उसके बाद 'श्री पुक्खरवर दीवढे सूत्र', वंदणवत्तियाए-अन्नत्थ निरखवा...'आदि भाववाही एक चैत्यवंदन बोलें। सूत्र बोलकर एकबार श्री नवकारमंत्र का काउस्सग्ग कर उसे पूर्ण उसके बाद जंकिंचि नाम-तित्थं' तथा 'नमुत्थुणं सूत्र' कर तीसरी थोय बोलें, पुनः ‘सिद्धाणं बुद्धाणं' वेयावच्चबोलकर मुक्ताशुक्ति मुद्रा में 'जय वीयराय सूत्र' गराणं-अन्नत्थ सूत्र क्रमशः बोलकर एकबार-श्री नवकार-मंत्र 'आभवखंडा'तक बोलें।
का काउस्सग्ग कर पूर्णकर पुरुष 'नमोऽर्हत्' सूत्र तथा महिलाएं उसके बाद एक खमासमण देकर पुनः आदेश मांगें। एकबार श्री नवकारमंत्र बोलकरचौथी थोय बोलें। कि 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन चैत्यवंदन करूं?'. फिर नीचे बैठकर चैत्यवंदन मद्रा में नमत्थणं सत्र बोलकर उसके गुरुभगवंत कहे करेह'तब'इच्छं'कहे।
बाद खड़े होकरयोगमुद्रा में पहली चार थोय के जोड़े के समान ही फिर तुरन्त एक भाववाही चैत्यवंदन बोलकर अरिहंत चेइआणं से सिद्धाणं-बुद्धाणं आदि सूत्र तक चार थोय 'जंकिंचि' सूत्र तथा 'नमुत्थुणं' सूत्र बोलकर खड़े क्रमशः बोलकरचौथी थोय बोलें। होकर योगमुद्रा में 'अरिहंत चेइआणं' सूत्र बोलें, • फिर 'नमुत्थुणं' बोलकर 'जावंति चेइआई' मुक्ताशुक्ति मुद्रा में उसके बाद 'अन्नत्थ' बोलकर एकबार श्री नवकार बोलकर खड़े होकर सत्तर संडासा (प्रमार्जना) पूर्वक एक
मंत्रनो काउस्सग्ग जिनमुद्रा में करें। 'नमो अरिहंताणं' खमासमणदें। १४८
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