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________________ नमस्कार तीन प्रकार से किया जाता हैं । १. इच्छा -योग नमस्कार : शुद्ध नमस्कार को समझे, मगर आचरण करने में समर्थ न हो, फिर भी आचरण करने की इच्छा प्रबल हो उसे 'इच्छा योग कहतै है ' । इससे पुण्यबन्ध होता है। २. शास्त्र- योग नमस्कार शुद्ध नमस्कार को समझे और आचरण भी करें, किन्तु उसमें विशेष शुद्धता नही होती है। उसे शास्त्र-योग नमस्कार कहते हैं। इससे कर्म-निर्जरा होती है। ३. सामर्थ्य योग नमस्कार शुद्ध नमस्कार को समझे और आचरण भी करने में समर्थ तथा उसकी प्रत्येक करणी भी शास्त्र बन जाती है, उसे सामर्थ्य योग नमस्कार कहते है। - इससे अन्तमुहूर्त में केवल - ज्ञान की प्राप्ति होती है। (एसो सामर्थ्य योग का नमस्कार प्रस्तुत सूत्र में अपेक्षित है। ) सिद्धाणं = इन बांधे हुए कर्मों को शुक्लध्यान के द्वारा भस्मी भूत करते हुए, बुद्धाणं = चार धार्मिक कर्मों के क्षय से केवलज्ञान व दर्शन को प्राप्त, पारगयाणं = संसार सागर पार किए हुए, परंपरा गयाणं श्रण स्थानक के क्रमानुसार अष्टकर्म का दहन करनेवाले, लोअग्गमुवगयाणं लोक के अग्रभाग को अर्थात् सिद्धावस्था को प्राप्त करनेवाले को मैं नमस्कार करता हूँ । १. ( संदर्भग्रन्थ पू. आ. श्री हरिभद्रसूरिजी कृत योगदष्टि समुच्चय ) जिज्ञासा : अतीत, अनागत, वर्तमान चौबीसी के कितने कल्याणक गिरनार पर्वत परहुए ? अन्तिम ३-३ कल्याक-२४ कुल=५५ परंपरगयाण fade ede पारगयाण बुद्धार्ण सिद्धाणं चला अ दुस- दोय *वंदिया Alter Jain Excalam majeru वि of ter dond apparta जो देवों के भी देव हैं, जो देवताओं की श्रेणी के द्वारा पूजित हैं, उन देवाधिदेव श्री वीरप्रभु को मैं मस्तक से नमस्कार करता हूँ। २. उपयोग के अभाव से होते अशुद्ध उच्चारों के सामने शुद्ध उच्चार शुद्ध लोअग्ग मुवगयाणं नरं बनारि वा तम-धम्मचक्क- वट्टीणं । तं धम्म चक्क वट्टि अशुद्ध लोअग मुवगयाणं नरं बनारि वा o Private तृप्ति वर्तमान चौबीसी के ३ कल्याणक (नेमिनाथ दीक्षा, केवल, मोक्ष ) - ३, अनागत चौबीसी के २२ भगवान के निर्वाण कल्याणक २२, अनागत चौबीसी के अन्तिम २ भगवान के अन्तिम ३-३ कल्याणक-६, अतीत चौबीसी के ८ भगवान के सामर्थ्ययोग द्वारा किया गया प्रभुजी को एक भी नमस्कार, वह नर हो या नारी उसे भावपार कराने में समर्थ बनता है। ३. उनको विभाज विष्णानावसहस् उज्जितसेल- सिहरे दिकस्वा प्राधनि fff ww.fa चार-आठ दस तथा दो की संख्या में चारों दिशाओं में श्री अष्टापद तीर्थ में विराजमान चौबीसों परमात्मा को मैं वंदन करता हूं. वे सिद्ध भगवंत मुझे | सिद्धपद प्रदान करे। ५. बिसीहिया लारस तं धम्मचक्कवट्टीं अरिट्टनेमि नमसमि गिरनार पर्वत पर दीक्षा केवलज्ञान और निर्वाण को प्राप्त तथा धर्म में चक्रवर्त्ती के समान श्री नेमिनाथ भगवान को मैं नमस्कार करता हू । ४. १४७
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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