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२४. श्री सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र
आदान नाम : श्री सिद्धाणं बुद्धाणं सूत्र
विषय: गौण नाम : सिद्धस्तव सूत्र सर्व सिद्धो को, पद :२०
श्री वीर प्रभु, संपदा :२०
श्री नेमिनाथ और गाथा गुरु-अक्षर : २५
श्री अष्टापद तीर्थ की देववंदन, चैत्यवंदन प्रतिक्रमण में रत्नत्रयी की
शुद्धि हेतु बोलते
लघु-अक्षर करते समय बोलते
: १५१
स्तवना के साथ
सर्व अक्षर : १७६ सुनते समय की मुद्रा। सुनते समय की मुद्रा।
मोक्ष की याचना। छंद : गाहा; राग : जिणजम्म समये मेरु सिहरे... (स्नात्र पूजा) मूल सूत्र । उच्चारण में सहायक
पद क्रमानुसारी अर्थ सिद्धाणं बुद्धाणं, सिद्-धा-णम् बुद्-धा-णम्,
सिद्ध गति को प्राप्त किये हुए सर्वज्ञ, पार गयाणं परंपरगयाणं। पार-गया-णम् परम्-पर-गया-णम् । (संसार समुद्र को) पार किये हुए , (गुणस्थानों
की) परंपरा (क्रम) से (सिद्धि में ) गये हुए, लोअग्ग-मुवगयाणं, लोअग्-ग-मुव-गया-णम्,
लोक के अग्र भाग पर गये हुए, नमो सया सव्व-सिद्धाणं ॥१॥ नमो सया सव-व-सिद्-धा-णम् ॥१॥ सर्व सिद्ध भगवंतों को सदा नमस्कार हो । १. गाथार्थ : सिद्ध गति को प्राप्त किये हुए, सर्वज्ञ, (संसार समुद्र को) पार किये हुए, परंपरा से (सिद्धि में ) गये हुए और लोक के अग्र भाग पर गये हुए सर्व सिद्ध भगवंतों को सदा नमस्कार हो । १. जो देवाण वि देवो, जो देवा-ण वि देवो,
जो देवों के भी देव हैं, जं देवा पंजली नमसंति। जम्-देवा पज ( पन्)-जली-न-मन्-सन्-ति। जिनको देव अंजली पूर्वक नमस्कार करते हैं, तं देव-देव-महिअं, तम् देव-देव-महि-अम्,
उन देवों के देव(इंद्र)द्वारा पूजित, सिरसावंदे महावीरं॥२॥ सिर-सा वन्-दे महा-वीरम् ॥२॥ मस्तक झुकाकर श्री महावीरस्वामी को मैं वंदन करता हू।२. गाथार्थ : जो देवों के भी देव हैं, जिनको देव अंजली पूर्वक नमस्कार करते हैं और जो इंद्रों से पूजित हैं, उन श्री महावीर स्वामी को मैं मस्तक झुकाकर वंदन करता हूँ। २. इक्कोविनमुक्कारो, इक्-को विनमुक्-कारो,
किया हुआ एकही नमस्कार जिणवरवसहस्स वद्धमाणस्स। जिण-वरवस-हस्-स वद्-ध-माणस्-स। जिनेश्वरों में उत्तम श्री महावीरस्वामी को संसार-सागराओ, सन्-सार-साग-राओ,
संसारसमुद्र से तारेइ नरंव नारिंवा॥३॥ तारे-इ नरम्व नारिम्-वा ॥३॥
नरया नारी को तारता हैं। ३. गाथार्थ : जिनेश्वरों में उत्तम श्री महावीर स्वामी को किया हुआ एक ही नमस्कार नर या नारी को संसार समुद्र से तारता है। ३. उज्जित सेल-सिहरे उज्-जिन्-त-सेल-सिहरे, गिरनार पर्वत के शिखर पर दिक्खा नाणं निसीहिआ जस्स। दिक्-खानाणम् निसी-हिआ जस्-स। जिनकी दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण कल्याणक हुए हैं, तं धम्म चक्कवट्टि,
तम्-धम्-म चक्-क-वट-टिम्, उन धर्म चक्रवर्तीअरिटुनेमि नमसामि ॥४॥ अरिट्-ठ-नेमिम् नमन्-सामि ॥४॥ श्री अरिष्टनेमि (नेमिनाथ) को मैं नमस्कार करता हूँ। ४. गाथार्थ : जिनकी दीक्षा, केवल ज्ञान और निर्वाण कल्याणक गिरनार पर्वत के शिखर पर हुए हैं, उन धर्म चक्रवर्ती श्री नेमिनाथ को मैं नमस्कार करता हूँ। ४. चत्तारि-अट्ठ-दस-दोय, चत्-तारिअट्-ठ दस दोय,
(अष्टापद पर्वत पर)चार, आठ, दस और दो के क्रम से वंदिया जिणवरा चउव्वीसं, वन्-दि-या जिण-वरा चउव-वी-सम्। वंदित चौबीसों जिनेश्वर, परमट्ठ-निट्ठि-अट्ठा, पर-मट्-ठ-निट-ठि-अट्-ठा, परम ध्येय(मोक्ष) को प्राप्त किये हुए सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥५॥ सिद्-धा-सिद्-धिम् ममदि-सन्-तु॥५॥ सिद्ध भगवंत मुझे सिद्धि (मोक्ष)प्रदान करें।५. गाथार्थ : चार, आठ, दस और दो के क्रम से वंदित चौबीसों जिनेश्वर और मोक्ष को प्राप्त किये हुए सिद्ध भगवंत मुझे मोक्ष प्रदान करें। ५.
१४६ Nain duda
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