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________________ नमामि वीर गिरिसारधीरम् । समोहधुलीहरणे समीरम् । मायारसा दारणा सारसी गावागावाती .. बोधागाध सुपदपदवी-पीरपुराभिराम, जीवाहिसा-विरल लहरी संगमागाहदेहम् । चूलावेल गुरुगम-मणि-संकुल दूरपार सारे वीरारामजलनिधि सादर साधु सेवे ॥ परमात्मा की करूणादृष्टि रूपी वाणी से विषयकषाय रूपी दावानल से दग्ध भव्यात्मा का दाह शमन, परमात्मा की देशना रूपी हवा से मोह रूपी धूल का हरण, परमात्मा की वात्सल्यदृष्टि से माया रूपी पृथ्वी को 'खोदने के लिए तीक्ष्ण हल के समान तथा घोर-परिषह-उपसर्ग में भी मेरूपर्वत के समान निश्चल श्री वीरप्रभु को मैं नमस्कार करता हूँ। १. नाथाभा पशवा દ્રષ્ટિવાદ अपनी पया भावातनाम सुरदानव-मानवेन-चूलाविलोलकमलावलिमालितानि । सपरिताऽभिनतलोकसमीहितानि काम नमामि जिनराजपदानि तानि ।।। BRRERRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRRI लालसालानाARRORERNMEANINGRERA 15-05-25-20 Deliनान SHARE सागर के समान गम्भीर अर्थ तथा अहिंसा रूपी तरंगों से गाढ और जिसका पार नहीं पाया जा सके, ऐसे तथा चूलिका-पाठ आदि से युक्त जिनागम का हम आदरपूर्वक सेवन करते हैं । ३. पदविरहवर देहि दो देनि सारम् | मुकुट बद्ध देव-देवेन्द्र-नरेन्द्र की समृद्धि तथा देवी-इन्द्राणी-महारानी के समूह के द्वारा चरणों में नमन कराए गए परमात्मा को मेरा नमस्कार हो । २ कमल रूपी आवास में तथा कमल के आसन पर विराजमान जिनवचनमय सरस्वती देवी को प्रार्थना करनी कि हमें भव-विरह =मोक्ष का वरदान दें तथा मर्यादा में रखनेवाले श्रुतधर्म की वंदन करता हूँ। ४. १४२ Jain Ederation Internal MEET Private &disorial Use onlyay www. motorary.org.
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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