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________________ अष्टमी तिथि में प्रतिक्रमण दौरान यह सूत्र थोय के रुप में बोलने की मुद्रा अष्टमी तिथि में प्रतिक्रमण दौरान यह सूत्र कायोत्सर्ग में सुनने की मुद्रा । पाक्षिक, चौमासिक व सांवत्सरिक प्रतिक्रमण में सज्झाय स्वरुप यह सूत्र बोलने-सुनने की मुद्रा । २२. श्री संसारदावा सूत्र आदान नाम : श्री संसारदावानल स्तुति | विषय : गौण नाम : श्री महावीर स्वामी स्तुति आसन्नोपकारी श्री : १६ पद संपदा .: १६ मूल सूत्र संसार- दावा- नल-दाहनीरं, सन्-सार- दावा- नल-दाह- नीरम्, संमोह- धूली- हरणे - समीरं । सम्-मोह-धूली-हर-णे- समी-रम् । माया - रसा- दारण-सार-सीरं, माया-रसा-दार-ण-सार-सीरम्, नमामि वीरं गिरिसारधीरं ॥१॥ नमामि वीरम् - गिरि-सार- धीरम् ॥१॥ गाथा : ४ सर्व अक्षर : २५३ छंद : इन्द्र-वज्रा; राग : भोगी यगालोक नतोडपियोगी... ( श्री पार्श्व पंचकल्याणक पूजा श्लोक ) उच्चारण में सहायक भावा-वनाम - सुर-दानव-मान-वेन, चुला-विलोल - कमला बोधा-गाधं सुपद-पदवीनीर- पुराभिरामं, जीवा - हिंसा - विर-ल-ल-हरीसंग- मागाह - देहं । चुला-वेलं गुरु-गम- मणीसंकुलं- दूर-पारं, १४० Jaily Education International गाथार्थ : संसार रूपी दावानल के शांत करने में जल समान, प्रगाढ मोह रूपी धूल को दूर करने में वायु समान, पृथ्वी को चीरने में तीक्ष्ण हल समान और मेरु पर्वत समान स्थिर श्री महावीर स्वामी को मैं वंदन करता हूँ । १. वीर प्रभु, सर्व तीर्थंकरों आगम-सिद्धांत और श्रुतदेवी की स्तुति...। पद क्रमानुसारी अर्थ संसार रूपी दावानल के ताप को शांत करने में जल समान, प्रगाढ मोहरूपी धूल को दूर करने में वायु समान, माया रूपी पृथ्वी को चीरने में उत्तम तीक्ष्ण हल समान, श्री महावीर स्वामी को मैं नमस्कार करता हूँ, मेरु पर्वत के समान स्थिर । १. छंद : वसंत तिलका; राग : भक्तामर स्तोत्र भावा- वनाम - सुर- दानव-मान-वेन, चुला- विलो- ल-कम-लावलि-मालि-तानि । सम्- पूरि-ता- भिन-त-लोकसमी - हितानि, भाव पूर्वक नमन करने वाले वलि-मालि-तानि । संपूरिता- भिनत - लोकसमी - हितानि, मुकुट में स्थित चपल (डोलती हुई ) कमल श्रेणी (हार) से पूजित, नमन करने वाले लोगों का मनोवांछित संपूर्ण करने वाले जिनेश्वरों के उन चरणों में मैं श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूं । २. कामं नमामि जिनराजपदानि तानि ॥२॥ कामम् नमामि - जिन-राजपदा-नि-तानि ॥ २ ॥ गाथार्थ : भाव पूर्वक नमन करने वाले सुरेंद्र, दानवेंद्र और नरेंद्रों के मुकुट में स्थित चपल कमल श्रेणियों से पूजित और नमन करने वाले लोगों के मनोवांछित संपूर्ण करने वाले जिनेश्वरों के उन चरणों में मैं श्रद्धा पूर्वक नमन करता हूँ । २. माया रूपी छंद : मन्दाक्रान्ता ; राग : रे पंखीडा सुखेथी ... ( लोक-गीत) बोधा - गाधम् - सुपद-पद-वी- ज्ञान से गंभीर सुंदर पद रचना रूपी नीर-पूरा-भिरा मम्, जल समूह से मनोहर, जीवा-हीन् -सा-विर-ल-ल-ह-री-जीवों के प्रति अहिंसा की निरंतर लहरों के सङ्-ग-मा- गा-ह-दे-हम् । संगम से अति गहन देह वाले, चूला-वेलम् गुरु-गम-मणीसङ् कुलम् - दूर-पारम्, चूलिका (शास्त्र परिशिष्ट) रूप भरती (ज्वार) वाले, उत्तम आलापक (बहुलतया समान पाठ) रूपी रत्नो से व्याप्त कठिनता से पार पाये जाने वाले, श्री महावीर स्वामी के श्रेष्ठ आगम रूपी समुद्र की सारम् - वीरा-गम-जल-नि-धिम्साद-रम् साधु-सेवे ॥३॥ मैं आदर पूर्वक अच्छी तरह से उपासना करता हूं । ३. सारं वीरा-गम-जल-निधिसादरं साधु सेवे ॥३॥ गाथार्थ : ज्ञान से गंभीर, सुंदर पद रचना रूप जल समूह से मनोहर, जीवों के प्रति अहिंसा की निरंतर लहरों के संगम से अति गहन देह वाले, चूलिका रूप भरती वाले, उत्तम आलाप रूपी रत्नों से व्याप्त और अति कठिनता पूर्वक पार पाये जानेवाले श्री महावीर स्वामी के आगम रूपी समुद्र की मैं अच्छी तरह से आदर पूर्वक उपासना करता हूँ । ३. amalibraty.org
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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