SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 140
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ उपयोग के अभाव से होते अशुद्ध नोट :पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंतों को विहार के वर्षों से यह स्तुति विविध उच्चारों के सामने शुद्ध उच्चार दौरान प्रतिदिन उपाश्रय परिवर्तन होता है, उस समय तथा रागों में बोलने की तथा उसमें अशुद्ध शुद्ध एक स्थान में से दूसरे स्थान जब संथारा करने की जगह फिल्मी रागों में बोलने की कल्याणकद कल्लाणकद बदले तब तथा चतुर्विध श्रीसंघ (साधु-साध्वी-श्रावक-कप्रथा प्रारम्भ हो गई है। यह पढमजिणंदं पढमं जिणिदि श्राविका) पक्खी-चौमासी तथा सांवत्सरिक प्रतिक्रमण इच्छित तथा शोभास्पद नहीं है। सुगणिकठाणं सुगुणिक्कठाणं के अगले दिन मांगलिक के रूप में देवसिअ प्रतिक्रमण छन्द के अनुसार उन अक्षरों में भत्तीय वंदे भत्तीई वंदे करे तब तथा चतुर्विध श्रीसंघ जब राइअ प्रतिक्रमण करे यथास्थल विराम लेकर शास्त्रीय अप्पारसंसार अपारसंसार तब 'श्री कल्लाण कंदं सूत्र' का उपयोग चार थोय के रागों के अनुसार अधिक लंबा सव्वे जिणंदा सव्वे जिणिंदा जोड़े के रूप में अवश्य करते हैं। किए बिना बोलना उचित है। IN.SE पदम जिदिन श्री ऋषभदेव प्रभु दर्शन ज्ञान-चारित्र क्षमा आदि कल्याण लताओं के कंद के समान हैं। (प्रभु से ही सारे कल्याण की उत्पत्ति होती है)। उनके नीचे श्री शांतिनाथ भगवान तथा श्री नेमिनाथ भगवान हैं। उसके बगल में ज्ञानप्रकाश के रूप में श्री पार्श्वनाथ भगवान हैं, जो अज्ञान तिमिर को दर करते हैं। उनके नीचे सदगणों के अर्करूप तथा प्रातिहार्य के वैभवयुक्त श्री महावीरस्वामी हैं । १. सामने अनंत जिनेश्वर देव समवसरण में विराजमान हैं, तथा उनकी आत्मज्योत भवसमुद्र पार कर मोक्ष में पहुंच रही है। वे दोनों ओर देवताओं से वंदित होते हैं। तथा उनके (चिंतनादि के द्वारा) प्रभाव से अपने में कल्याण लताएँ विकसित हो रही हैं, जो हाथ जोड़कर | प्रभु से प्रार्थना करती है कि 'शिवं दिंतु सुइक्कसारं' हमें शास्त्रों के सारभूत तथा समग्र प प्रधान जो मोक्ष है, वह प्रदान करें। २. अपार समार रामरवार पत्तासित दिन सहककसारा सळी मिणदा सुर-विद पद सतिमि बदमाण SIM कुदिदु गोक्खीर तुसार-चन्ना सरोजहत्या कमले निसण्णा । 'वाईसरी पुत्थयवानहत्था सुहाय सा अम्ह सया पसत्या ।। जिनागम, यह मोक्षमार्ग =ज्ञान दर्शन-चारित्र में विहार करने के लिए जहाजरूप है। बुद्धिमान लोग अपना जीवनरूपी नौका इसके साथ बांधकर इसकी शरण ली है, जिनमत के इस जहाज के द्वारा मिथ्यावादियों के मद को तोड़ दिए जाने के कारण वह इनके सामने न देखते हुए कदाग्रह में डुब रहा है। ऐसे विश्व में श्रेष्ठ जिनमत को मैं सदा नमस्कार करता हूँ। ३. सामने सफेद वर्णवाली सरस्वती देवी कमल पर बैठी है, उनके एक हाथ में कमल तथा दूसरे हाथ में पुस्तकों का समूह है । और हम प्रार्थना करते हैं कि हमारे सुख के लिए हो । ४. १३९ Jain Education Inter For Private Use Only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy