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जावंति चेइआई, उड्ढे अ अहे अ तिरिअ लोए ए । सव्वाइं ताइं वंदे, इह संतो तत्थ संताई ॥ १ ॥
(एक खमासमण खडे होकर देना चाहिए ।) • जावंत के वि साहू सूत्र •
(मुक्तासुक्ति मुद्रा में यह सूत्र बोले ) जावंत केवि साहू, भरहेरवय-महाविदेहे अ । सव्वेसिं तेसिं पणओ, तिविहेण तिदंड विरयाणं ॥ १ ॥
• पंच परमेष्ठि नमस्कार सूत्र • ( योग मुद्रा में)
( यह सूत्र सिर्फ पुरूष ही बोले ) नमोऽर्हत्-सिद्धाचार्योपाध्याय - सर्व
साधुभ्यः ॥
• सामान्य जिन स्तवन ( योग मुद्रा में ) • चरण की सरण ग्रहुं... जिन तेरे.... चरण की सरण ग्रहुं ..... इस तरह चैत्यवंदन करे । हृदयकमल में ध्यान धरत हुं, शिर तुज आण वहुं.... जिन तेरे ॥१॥ तुम सम खोळयो देव खलक में, पेख्यो नाहि कबहुं... जिन तेरे ... ॥२॥
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Binteducation
तेरे गुणो की जपुं जपमाला, अहनिश पाप दहुं.... जिन तेरे ॥३॥ मेरे मन की तुम सब जानो, क्यां मुख बहोत कहूं... जिन तेरे... ॥४॥ कहे 'जस' विजय करो त्युं साहिब,
जयं भवदुःख न लहुं... जिन तेरे ॥५॥ (चैत्यवंदन में बताई बातें स्तवन में भी समजना । ) • शास्त्रीय शुद्ध राग में पूर्वाचार्यों के द्वारा रचित अथवा स्वयं द्वारा रचित स्तवन मंदस्वर में, दूसरों को अंतरायभूत न हो इस प्रकार सुमधुर कंठ से भावविभोर होकर गाना चाहिए ।
• मंदिर में प्रभुजी के समक्ष पर्युषण आदि पर्वों के स्तवन (जैसेसुणजो साजन संत.... अष्टमी तिथि सेवो रे... ) तथा तीर्थ की महिमा के (जैसे- विमलाचल नितु वंदिए... ) वर्णन करनेवाले स्तवन नही गाने चाहिए ।
• प्रभु गुण वैभव का वर्णन तथा स्वयं के दोषों का स्वीकार जिसमें हो, ऐसे अर्थ सहित स्तवन प्रभुजी के समक्ष गाना चाहिए । फिल्मी तर्ज वाले स्तवन गाने योग्य नहीं हैं। • मंदिर में पूजन, पूजा-मंडल अथवा संध्याभक्ति आदि कार्यक्रमों
में उपदेशप्रद गीत (जैसे- एक पंखी आवीने उडी गयुं.. मा-बापनो उपकार.. शोकगीत.. ) कभी नहीं गाने चाहिए ।
• जय वीयराय सूत्र (मुक्ताशुक्ति मुद्रा में ) • जय वीराय ! जग-गुरु ! होउ ममं तुह पभावओ, भयवं भवनिव्वेओ मग्गाणुसारिया इट्ठफलसिद्धि ॥ १ ॥ लोग विरुद्धच्चाओ, गुरुजणपूआ परत्थकरणं च, सुहगुरुजोगो तव्वयण सेवणा आभवमखंडा ॥ २ ॥ (अब यह शेष सूत्र 'योग' मुद्रा में) वारिज्जड़ जड़ वि, नियाण बंधणं वीयराय ! तुह समए, तह वि मम हुज्ज सेवा, भवे भवे तुम्ह चलणाणं ॥ ३ ॥ दुक्खक्खओ कम्मक्खओ समाहिमरणं च बोहिलाभो अ, संपज्जउ मह एअं, तुह नाह ! पणाम करणेणं ॥ ४ ॥
सर्व मंगल मांगल्यं, सर्व कल्याण कारणम् । प्रधानं सर्व धर्माणां, जैनं जयति शासनम् ॥ ५ ॥ ( अब खडे होकर योगमुद्रा में अरिहंत चेड्याणं सूत्र ) अरिहंत चेइआणं करेमि काउस्सग्गं ॥ १ ॥ वंदणवत्तियाए, पुअण-वत्तियाए, सक्कार - वत्तियाए, सम्माणवत्तियाए, बोहिलाभ-वत्तियाए, निरुवसग्ग-वत्तियाए ॥ २ ॥ सद्धाए, मेहाए, धिइए, धारणाए, अणुप्पेहाए, वड्ढमाणीए ठामि काउस्सग्गं ॥ ३ ॥
इस तरह अरिहंत चेइयाणं करें।
• अन्नत्थ सूत्र •
अन्नत्थ उससिएणं, नीससिएणं खासिएण छीएणं, जंभाईएणं, उड्डुएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए पित्तमुच्छाए ॥१॥ सुहुमेहिं अंग संचालेहिं, सुहुमेहिं खेल संचालेहिं, सुहुमेहिं दिट्टि संचालेहिं ॥ २ ॥ एवमाइ - एहिं आगारेहिं, अभग्गो, अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो ॥ ३ ॥ जाव अरिहंताणं भगवंताणं नमुक्कारेणं न पारेमि ॥ ४ ॥ ताव कार्य मोणेणं, ठाणेणं झाणेणं अप्पाणं वोसिरामि ॥ ५ ॥
• जिन मुद्रा में नीचे बताई विधि अनुसार एक बार श्री नवकार मंत्र का काउस्सग्ग पूर्ण करके (पुरुष नमोऽर्हत् बोल के ) स्तुति बोलनी चाहिए।
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