________________
• अन्नत्थ सूत्र.
तो सेवक तर्या विना, कहो किम हवे सरसे ॥२॥ अन्नत्थ ऊससिएणं , नीससिएणं, खासिएणं, छीएणं
एम जाणीने साहिबाए, नेक नजर मोहे जोय; जंभाईएणं, उड्डएणं, वायनिसग्गेणं, भमलिए, पित्तमुच्छाए ॥१ 'ज्ञानविमल' प्रभु नजरथी ते शुं जे नवि होय? ॥३॥ ॥ सुहुमाह अग-सचालाह, सुहुमाह खल-सचालाह, सुहुमाह (जो भगवान हो उसका अथवा जिस दिट्ठि-संचालेहिं ॥ २ ॥ एवमाइ एहिं आगारेहि, अभग्गो,
भगवान के पांच में से कोई भी अविराहिओ हुज्ज मे काउस्सग्गो ॥३॥ जाव अरिहंताणं,
कल्याणक हो उसका अथवा सुद -१ से भगवंताणं, नमुक्कारेणं न पारेमि ॥ ४ ॥ ताव कार्य ठाणेणं,
दिन वृद्धि के हिसाब से संख्या गिनते मोणेणं, झाणेणं, अप्पाणं वोसिरामि ॥५॥
हुए, उस संख्यावाले (वद('जिनमुद्रा' में एक लोगस्स 'चंदेसु निम्मलयरा' तक, न आता
१=१५+१=१६ में भगवान, वदहो तो चार बार श्री नवकार मंत्र का काउस्सग्ग करके 'नमो
९,१०,११ को २३वे भगवान और १२ अरिहंताणं' बोलकर पार के प्रगट लोगस्स सूत्र बोलना
से अमावस्या तक २४ मे भगवान, चाहिए।)
प्रभुजी का चैत्यवंदन बोलना चाहिए । •लोगस्स (नामस्तव) सूत्र.
सामान्य जिन चैत्यवंदन किसी भी प्रभुजी लोगस्स उज्जोअगरे, धम्म तित्थयरे जिणे । अरिहंते कित्तइस्सं,
स्सा के समक्ष बोला जा सकता है।) चउविसं पि केवली ॥१॥ उसभमजिअंच वंदे, संभवमभिणं
•जं किंचि सूत्र. दणं च सुमई च । पउमप्पहं सुपासं, जिणं च चंदप्पहं वंदे ॥२॥
जं किंचि नाम तित्थं, सुविहिं च पुष्पदंतं, सीअल सिज्जंस वासुपुज्जं च ।
मुक्तासुक्ति मुद्रा। विमलमणंतं च जिणं, धम्म संतिं च वंदामि ॥ ३ ॥ कुंथु अरंच
सग्गे पायालि माणुस्से लोए। मल्लिं, वंदे मुणिसुव्वयं नमिजिणं च । वंदामि रिट्टनेमि, पासं तह
जाइं जिण-बिंबाई, वद्धमाणं च ॥ ४ ॥ एवं मए अभिथुआ, विहुयरयमला
ताई सव्वाई वंदामि ॥१॥ पहीणजरमरणा । चउवीसं पि जिणवरा, तित्थयरा मे पसीयंतु ॥
• नमुत्थुणं सूत्र. ५ ॥ कित्तिय वंदिय महिया, जे ए लोगस्स उत्तमा सिद्धा ।
नमुत्थुणं अरिहंताणं भगवंताणं ॥१॥ आइगराणं, तित्थयराणं, आरुग्ग बोहिलाभं, समाहि-वर मुत्तं दितु ॥ ६ ॥ चंदेसु
सयं-संबुद्धाणं ॥ २ ॥ पुरिसुत्तमाणं, पुरिससीहाणं, निम्मलयरा, आइच्चेसु अहियं-पयासयरा । सागर-वर-गंभीरा,
पुरिसवरपुंडरिआणं, पुरिसवर-गंधहत्थीणं ॥ ३ ॥ लोगुत्तमाणं, सिद्धा सिद्धि मम दिसंतु ॥७॥
लोगनाहाणं, लोगहियाणं, लोगपईवाणं, लोगपज्जोअ-गराणं ॥ ४ (फिर वापस तीन बार खमासमण देने है।)
॥ अभयदयाणं, चक्खुदयाणं, मग्गदयाणं शरणदयाणं, •खमासमण सूत्र.
बोहिदयाणं, ॥ ५ ॥ धम्मदयाणं धम्मदेसयाणं, धम्मनायगाणं, इच्छामि खमासमणो !॥१॥ वंदिउं जावणिज्जाए निसिहिआए
धम्म- सारहीणं, धम्मवर-चाउरंत-चक्कवट्टीणं ॥ ६ ॥ ॥२॥ मत्थएण वंदामि ॥३॥
अप्पडिहयवरनाण - दंसणधराणं विअट्ट-छउमाणं ॥७॥ जिणाणं -: चैत्यवंदन के प्रारंभ मे बोलने योग्य स्तोत्र :
जावयाणं, तिन्नाणं - तारयाणं, बुद्धाणं-बोहयाणं, मुत्ताणं सकल-कुशल-वल्ली, पुष्करावर्त- मेघो;
मोअगाणं ॥ ८ ॥ सव्वन्नूणं, सव्वदरिसीणं, सिव-मयल-मरुअ - दुरित-तिमिर-भानुः कल्पवृक्षोपमानः ।
मणंत - मक्खय - मव्वाबाह-मपुण-राविति-सिद्धिगइ-नामधेयं भवजल-निधि-पोतः, सर्व संपत्ति हेतुः,
ठाणं संपत्ताणं नमो जिणाणं जिअभयाणं ॥ ९ ॥ जे अ अईया स भवतु सततं वः; श्रेयसे शान्तिनाथः ॥
सिद्धा, जे अ भविस्संति णागए काले, संपइ अ वट्टमाणा, सव्वे ('श्रेयसे पार्श्वनाथः'आदि बोलना अनुचित है।)
तिविहेण वंदामि ॥१०॥ • सामान्य जिन चैत्यवंदन.
• जावंति चेइआई सूत्र. तुज मुरतिने निरखवा, मुज नयणा तरसे;
(ललाट प्रदेश मे हाथों को मोती की शीप की आकृति समान तुम गुणगणने बोलवा, रसना मुज हरखे ॥१॥
करके मुक्तासुक्ति मुद्रा में यह सूत्र बोले।) काया अति आनंद मुज, तुम युग पद फरसे;
१३३
mation
AASPORD
www.
til