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(१) दो अँगूठों की पूजा :
जल भरी संपुट पत्रमा, युगलिक नर पूजंत । ऋषभ चरण अँगूठडे, दायक भवजल अंत ॥ १ ॥ (२) दो घुटनों की पूजा :
जानुबले काउस्सग्ग रह्या, विचर्या देश-विदेश । खडा-खडा केवल लघुं, पूजो जानु नरेश ॥ २ ॥ (३) दो हाथों की पूजा :
लोकांतिक वचने करी, वरस्या वरसी दान । कर कांडे प्रभु पूजना, पूजो भवी बहुमान ॥ ३ ॥ (४) दो कन्धों की पूजा :
मान गयुं दोय अंशथी, देखी वीर्य अनंत । भुजा बले भवजल तर्या पूजो खंध महंत ॥ ४ ॥ (५) शिरशिखा मस्तक की पूजा :
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सिद्धशिला गुण ऊजली, लोकांते भगवंत । वसिया तिणे कारण भवि, शिरशिखा पूजंत ॥ ५ ॥ (६) ललाट की पूजा :
तीर्थंकर पद पुण्यथी, त्रिभुवन जन सेवंत । त्रिभुवन तिलक समा प्रभु, भाल तिलक जयवंत ॥ ६ ॥ (७) कंठ की पूजा :
सोल पहोर प्रभु देशना, कंठे विवर वर्तुल ।
मधुर ध्वनि सुरनर सुने, तेणे गले तिलक अमूल ॥ ७ ॥ (८) हृदय की पूजा :
हृदय कमल उपशम बले, बाल्या राग ने रोष ।
हिम दहे वन खंड ने, हृदय तिलक संतोष ॥ ८ ॥
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सम्यग्दष्टि देव-देवी को अंगुष्ठ से कपाल पर तिलक करें। (९) नाभि की पूजा :
नत्रयी गुण कजली, सकल सुगुण विश्राम ।
नाभि कमल नी पूजना, करतां अविचल धाम ॥ ९ ॥
(१०) दोनों हाथ जोड़कर गाने योग्य नव-अंग पूजा का उपसंहार :उपदेशक नवतत्त्वना, तेणे नव-अंग जिणंद ।
पूजो बहुविध रागशुं, कहे शुभवीर मुनिंद ॥ १० ॥
• अधिष्ठायक देव - देवियों को अक्षत (चावल) चढाने या खमासमण देने का भी विधान नहीं है। उनके भंडार में उनके नाम से नगद रुपये पैसे आदि डाला जा सकता है। परमात्मा की आशातना हो, इस प्रकार अधिष्ठायक देव-देवी की आराधना-उपासना नहीं करनी चाहिए तथा प्रभुजी की दृष्टि गिरे, इस प्रकार सुखड़ी आदि न चढ़ाना चाहिए बाँटना चाहिए।
पुष्पपूजा की विधि
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सुगंधि, अखंड, जीवजंतु रहित, धूल, मलिनता आदि से रहित तथा ताजा फूल चढ़ाना चाहिए ।
• मूलविधि के अनुसार सहज भाव से योग्य स्वच्छ वस्त्र में (जमीन से ऊपर स्थित ) फूलों को चढ़ाना चाहिए । यदि फूल तोड़ना पड़े तो खूब कोमलता पूर्वक ऊँगलियों के ऊपर सोने, चांदी अथवा पित्तल की खोल चढ़ाकर तोड़ना चाहिए।
• मलिन शरीर तथा दुर्गन्ध युक्त हाथों से तोड़े हुए पुष्प जहाँ तक सम्भव हो, प्रभु पूजा में प्रयोग नहीं करना चाहिए।
इस तरह कुसुमांजली द्वारा पुष्प पूजा करें।
स्नानादि से स्वच्छ हुए शरीर वाले खुले पैर ( जूते-चप्पल आदि पहने बिना) फूल तोड़ना चाहिए।
फूल तोड़ने के बाद छाने हुए स्वच्छ पानी हल्के हाथों से छिड़ककर उसके ऊपर जमी हुई धूल साफ करनी चाहिए। फूलों को सोने-चांदी अथवा पित्तल की स्वच्छ डलिया में खुले रखने चाहिए। बांस या बेंत की बनी डलिया का प्रयोग नहीं करना चाहिए ।
स्वच्छ वस्त्र धारण कर, मौन रहकर, सुन्दर भावना से युक्त हृदय के साथ, योग्य मनोहर फूलों को धागे में गूंथकर माला बनानी चाहिए । सुई-धागे से गूथी हुई माला अयोग्य तथा हिंसक होती है।
• माला गूथते समय सूत के धागे या फूलों का शरीर - वस्त्र अथवा अन्य किसी से स्पर्श न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए । यदि स्पर्श हो जाए तो उन फूलों का त्याग करना चाहिए। • प्रभुजी को चढाया हुआ पुष्प दुबारा नहीं चढ़ाना चाहिए। दिन में चढाए हुए फूलों को एकत्र कर आंगी चढ़ाते समय पुनः उसी ढेर में से चुनकर प्रभुजी के अंग पर नहीं चढाना चाहिए । प्रभुजी की शोभा के लिए उन फूलों का प्रभुजी का स्पर्श न हो, इस प्रकार आगे रख सकते हैं।
• प्रभुजी का मुखकमल ढंक जाए अथवा भाविकों को नवांगी पूजा करने में असुविधा हो, इस प्रकार फूल नहीं चढ़ाना चाहिए
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