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अंग-रचना (आंगी) विधि
अत्यन्त धैर्यपूर्वक, गम्भीरता से , स्थिर चित्त से तथा कोमलता •चांदी आदि के खोखा, मुगट, पांखडे आदि के उपर आंगी करते पूर्वक प्रभुजी की पूजा करनी चाहिए। समय मुखकोश बांधना जरूरी है। सुवर्ण, चांदी, हीरा, माणेक, • यदि किसी भाविक ने प्रभुजी की भव्य आंगी की हो तो केशर मोती आदि उत्तम द्रव्यो से आंगी हो सकती है। • सुवर्ण-चांदी व पूजा का आग्रह नहीं रखना चाहिए, बल्कि उसकी अनुमोदना ताबे के टीके से भी हो शकती है। मगर क्रोम-लोहा आदि हलकी
करनी चाहिए। धातु से नहीं। शुद्ध सुखड का पावडर, सुवर्ण व चांदी के बादले
मंदिर में मूलनायक की पूजा में देरी हो तथा अन्य प्रभुजी की और शुद्ध रेशम के धागे (लच्छी) से कर सकते हैं। सुवर्ण व चांदी
पूजा करनी हो तो थोड़ा सा केशर अलग से एक कटोरी में रख के शुद्ध वरख भी लगा शकते हैं। वरख को डबाने वाला कापूस (Cotton) शुद्ध व स्वच्छ होना जरुरी है । Cotton केशरवाला हो
कर पूजा करनी चहिए। जाए, गीला हो जाए, अपने शरीर को छु जाए, नीचे गिर जाए तो
केशर पूजा करते समय यदि परमात्मा के अंगों में केसर बह रहा उसका त्याग करना चाहिए।. केशर के प्रमाणोपेत तंतु से तैयार
हो तो उसे स्वच्छ वस्त्र से पोंछ कर उसके बाद पूजा करनी घीसा हुआ केशर व देशी कपूर से हो सकती है। किसीने नही पहेने चाहिए। हो ऐसे सुवर्ण-चांदी के अलंकार प्रभुजी को चढा सकते हैं । वह पूजा के क्रम में सर्व प्रथम मूलनायकजी, उसके बाद अन्य अलंकार वापस लेने की संकल्पना के साथ चढाया हो, तो उसे अपने परमात्मा, उसके बाद सिद्धचक्रजी यन्त्र-गट्टा, वीशस्थानक लिए वापस ले सकते हैं। संपूर्ण स्वच्छ थाली में अथवा स्वच्छ वस्त्र यन्त्र-गट्टा, प्रवचनमुद्रा में गणधर भगवंत तथा अन्त में शासन पर प्रभुजी को बीराजमान करके आंगी कर सकते हैं। . पूजा की
के अधिष्ठायक सम्यग्दृष्टि देव-देवियों के मस्तक पर अंगूठे से थाली आदि को उलटी करके उसमे प्रभुजी को नहीं बिठाना चाहिए।
तिलक करना चाहिए। बादला लगाने हेतु प्रभुजी को आगे या पीछे झूकाना नहीं चाहिए।
प्रभुजी की पूजा करने के बाद सिद्धचक्रजी की तथा सिद्धचक्रजी रुई (Cotton), मखमल (Welwet), उर्ण धागे (Woolen Thread), सूत्ती धागे (Cotton Thread), या मखमल के टीके
की पूजा करने के बाद प्रभुजी की पूजा कर सकते हैं। आदि अतिजघन्य कोटि की चीजों से और खाने लायक सामग्री से
प्रवचन मुद्रा वाले गणधर भगवंतों की करने के बाद उसी केशर कभी भी आंगी नहीं करनी चाहिए। बिना सुगंध के पुष्प, पुष्प की
से सिद्धावस्था वाले गणधर भगवंतों की तथा सिद्धचक्रजी की कलियाँ व पर्ण केशरवाले गिले पुष्प, पूर्ण अविकसित पुष्प और पूजा नहीं करनी चाहिए । शासनदेव-देवी को अँगूठे से मस्तक पुष्पो के पीछे व वरख के पीछे का कागज़ लगाकर आंगी नहीं करनी के ऊपर तिलक करने के बाद उस केशर से किसी की भी पूजा चाहिए। दूसरे दिन आंगी उतारने के बाद उसमें से 'निर्माल्य देवद्रव्य'
नहीं करनी चाहिए। का संचय हो, ऐसी भव्य आंगी करनी चाहिए।
• शासनरक्षक देव-देवी की पूजा 'धर्मश्रद्धा में सहायक बने तथा केशरपूजा की विधि
किसी भी प्रकार के विघ्नों में भी श्रद्धा अडिग बनी रहे ' ऐसा • हृदय के साथ सीधा सम्बन्ध रखनेवाले तथा नामकर्म को दूर आशीर्वाद प्राप्त करने के लिए ही पूजा की जा सकती है। इसके
करने की इच्छा रखनेवाली अनामिका ऊगली से ही प्रभुजी की अतिरिक्त अन्य आशय से नहीं। केशर पूजा करनी चाहिए। नाखून का स्पर्श नहीं होना चाहिए। प्रवचन मुद्रा में अथवा गुरु अवस्था में स्थित चरम भवीश्री के अंबर-कस्तूरी-केशर मिश्रित चंदन की कटोरी कुछ चौड़े गणधर भगवंतो की प्रभुजी के समक्ष वंदना कर सकते हैं। मुंहवाली होनी चाहिए । केशर न तो अधिक पतला और न ही • प्रभुजी के नव अंगों में क्रमशः पूजा करने से पहले उन उन अंगे अधिक गाढा होना चाहिए, बल्कि मध्यम कक्षा का (पानी नहीं के दोहे मन में दुहराकर उसके बाद उन अंगों की पूजा करन छूटे ऐसा) केशर होना चाहिए।
चाहिए। प्रभु के नव अंगों में पूजा करते समय दाहिने बांए अंगों में (पैर, घुटना, कुहनी, कंधा) ऊँगली को एक बार केशर में भिगोकर दोनों स्थलों पर पूजा हो सकती है। परन्तु दाहिने अंगों पर पूजा होने के बाद केसर नहीं बढ़े तो बांए अंगों पर पूजा करते समय केसर में ऊंगली भिगोई जा सकती है। प्रत्येक अंग में अपना केसर होना जरूरी है। • दोनों पैरों के अंगूठों पर एक ही बार पूजा हो सकती है। बार
बार अथवा अन्य ऊगली में पूजा नहीं की जा सकती है। पूजा करते समय सम्पूर्ण मौन धारण करना चाहिए । यहाँ तक कि किसी के साथ इशारे में भी बातें नहीं करनी । प्रभुजी पंचधातु के हो या बिल्कुल छोटे हो अथवा सिद्धचक्र का गट्टा हो, पूजा करते समय वह बिल्कुल नहीं हिलना चाहिए। अधिक भगवान की पूजा संक्षिप्त रूप से करने की बजाय थोड़े भगवान की पूजा विधिपूर्वक करने से विशेष लाभ होता हैं।
इस तरह प्रभुजी के अंगुष्ठ में पूजा करें। गुरु गौतम स्वामीजी की केशर पूजा केशर लालघूम नहीं होना चाहिए। १२४
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