________________
प्रभुजी को सर्वांग पर विलेपन करें।
यदि परिकर रहित सिद्धावस्था के प्रभुजी हों तथा
विलेपन करने की विधि मूलनायक प्रभुजी के अधिष्ठायक देव-देवी तथा
अंगलुंछना हो जाने के प्रासाददेवी को अलग से प्रतिष्ठित किया गया हो तो उनकी
बाद सुगन्धित धूप को अंगलुंछना करते समय प्रभुजी में प्रयुक्त अंगलुंछना का
प्रभुजी के समक्ष ले प्रयोग नहीं करना चाहिए।
जाकर उन्हें सुगन्धित अंगलुंछना का उपयोग करने से पहले उसे रखने के लिए
करना चाहिए। उपयोगी एक थाल साथ में रखना चाहिए और उसी में उसे
देशी कपूर तथा चंदन रखना चाहिए । पबासन, दरवाजा, पाईप आदि में अंगलुंछना
मिश्रित सुगन्धित करने के बाद या पहले नहीं रखना चाहिए।
विलेपन को सुयोग्य अंगलुंछना करते समय एक हाथ को प्रभुजी से, दीवाल से,
थाली में धूप देकर परिकर से या अन्य किसी वस्तु से नहीं टिकाना चाहिए। गर्भगृह में ले जाना पाटलुंछणा करने वाले को अंगलुंछना का स्पर्श नहीं करना चाहिए। चाहिए । प्रभुजी के पीछे का हिस्सा अथवा पबासन साफ
आठ-पड-मुखकोश करते समय प्रभुजी के किसी भी अंग से पाटलुंछना का
का सम्पूर्ण उपयोग स्पर्श हो जाए तो महान आशातना (पाप) लगती है।
करते हुए दाहिने हाथ प्रक्षाल करने के बाद अंगलुंछना करने से पहले पंचधातु के की पाँचों ऊँगलियों से, नाखून न लगे, इस प्रकार प्रभुजी के प्रभुजी अथवा सिद्धचक्रजी आदि यन्त्रों में से पाणी साफ सर्वांग में विलेपन करना चाहिए ।(विलेपन करने से पहले दोनों करने के लिए उसे आड़ा-टेढ़ा, ऊँचा-नीचा अथवा एक हाथों को सम्पूर्ण स्वच्छ करना जरूरी है।) दूसरे के ऊपर नहीं रखना चाहिए । ऐसा करने से घोर विलेपन पूजा का नव-अंग के साथ कोई सम्बन्ध नहीं होता है। आशातना का पाप लगता है।
समस्त अंगों का विलेपन करना होता है। अंगलुंछना करते समय स्तुति-स्तोत्रपाठ करने से अथवा
विलेपन करनेवाले एक व्यक्ति के अतिरिक्त अन्य भाविकों को एक दूसरे को इशारे आदि करने से आशातना लगती है। एक दूसरे के स्पर्श दोष से बचने के लिए थोड़ी सी प्रतीक्षा करनी • अंगलुंछना का कार्य पूर्ण होने के साथ ही सम्पूर्ण स्वच्छ
चाहिए। तथा अंगलुंछना सुखाने के लिए टगी हुई रस्सी पर इस
विलेपन करनेवाला भाग्यशाली मन में दुहा बोलते हुए तथा प्रकार फैलाना चाहिए कि किसी के मस्तक आदि का
गर्भगृह के बाहर खड़े भाविक (सिर्फ पुरुष) 'नमोऽर्हत् स्पर्श न हो।
सिद्धाचार्योपाध्याय सर्व-साधुभ्यः' बोलें अंगलुंछना, पाटलुंछना तथा जमीनलुंछना के लिए डोरी
___ 'शीतल गुण जेहमा रह्यो, शीतल प्रभु मुख रंग। अलग-अलग सुरक्षित रखनी चाहिए। अंगलुंछना को धोते समय योग्य थाल में अन्य वस्त्रों का
आत्म शीतल करवा भणी, पूजो अरिहा अंग.. ॥१॥' स्पर्श न हो, इसका ध्यान रखना चाहिए।
"ॐ ह्रीं श्रीं परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु-निवारणाय पाटलुंछना को धोते समय भी यही सावधानी रखनी चाहिए।
श्रीमते जिनेन्द्राय चंदनं यजामहे स्वाहा" (२७ डंका बजाएँ) जमीनलुंछना उचित रूप से अलग ही धोना चाहिए।
अर्थ : जो प्रभुजी शीतल गुणों से युक्त हैं तथा जिनका मुख यदि हो सके तो प्रभुजी की भक्ति में प्रयुक्त वस्त्र-बर्तन
भी शीतल रंग से परिपूर्ण है, ऐसे श्री अरिहंत परमात्मा के अंग आदि का धोया हुआ पानी गटर या नाले में न जाए, इस
की अपनी आत्मा की शीतलता के लिए चंदन-कपूर आदि बात का ध्यान रखना चाहिए।
शीतल द्रव्यों से पूजा करे। अंगलुंछना सूख जाने के बाद दोनों हाथों को स्वच्छ कर विलेपन (चंदन) पूजा पूर्ण होने के बाद अंगलंछना के सिवाय मौन धारण करते हुए मात्र दो हथेलियों के स्पर्श से उसे
अत्यन्त स्वच्छ वस्त्र (पक्के मलमल के कपड़े) से प्रभुजी के मोड कर रखना चाहिए।
सर्व-अंग में विलेपन दूर करना चाहिए। पाटलुंछना भी उसी प्रकार मोडकर तथा जमीनलुंछना को
विलेपन करने के बाद तुरन्त ही यदि किसी भाग्यशाली को भी यथायोग्य तरह से रखना चाहिए।
सोने-चांदी के वरख से भव्य अंगरचना करने की भावना हो तो अंगलुंछना को सुरक्षित रखने के लिए अलग से एक स्वच्छ
विलेपन दूर करने की आवश्यकता नहीं है। थैली रखनी चाहिए । पाटलुंछना उससे अलग सुरक्षित विलेपन उतारने के लिए जिन वस्त्रों का उपयोग किया जाता है, रखना चाहिए।
उसको उपयोग के बाद तुरन्त योग्य स्थान पर सूखने के लिए जमीनलुंछना का स्पर्श अन्य किसी भी वस्त्र अथवा रख देना चाहिए। उपकरण से न हो, इसका ध्यान रखते हुए, उसे मोड़कर. विलेपन वस्त्र को स्वच्छ पाणी से धोने के बाद अंगलूछना के रखना चाहिए।
साथ धोकर व सुखाकर रखना चाहिए। Forte Personal Use Only
womant923