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• न्हवण जल के विसर्जन हेतु ८ फुट गहरी व ३-४ फुट लंब-चोरस कुंडी ढक्कन के साथ बनानी चाहिए।
• पंचामृत व दूध से प्रक्षाल करते समय गर्भगृह से बहार योग्य अंतर मे खडे हुए महानुभाव प्रक्षाल करनेवाले भाग्यशाली की अनुमोदना करते हुए बोले...... (सिर्फ पुरुषो 'नमोऽर्हत्.....' बोले ) मेरु शिखर न्हवरावे, हो सुरपति ! मेरु शिखर न्हवरावे जन्मकाल जिनवरजी को जाणी,
पंचरूपे करी आवे... हो रत्न प्रमुख अडजातिना कलशा,
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औषधि चूरण मिलावे... हो... खीर-समुद्र तीर्थोदक आणी,
स्नात्र करी गुण गावे ... हो ..... एणि परे जिन पडिमा को न्हवण करी, बोधि-बीज मानुं वावे ... हो . अनुक्रमे गुण रत्नाकर फरसी,
जिन उत्तम पद पावे ... हो प्रक्षाल करनेवाले खुद ही 'सुरपति' बनकर जन्माभिषेक कर रहे होने से अपने आप के लिए 'सुरपति आए' ऐसा संबोधन करे, यह उचित नही हैं। प्रक्षाल करते समय अपने कर्म मल इस से दूर हो रहे, ऐसी भावना जरुर भाए । अन्य भाग्यवान प्रक्षाल करनेवाले को 'सुरपति' का संबोधन कर सकते हैं। • निर्मल जल से अभिषेक करते समय मन मे खुद और गर्भगृह के बाहर खड़े महानुभाव उच्चारपूर्वक दुहा बोले...... (सिर्फ पुरुष पहले 'नमोऽर्हत्' बोलें ) ज्ञानकलश भरी आतमा,
समता रस भरपूर । श्री जिन ने नवरावतां, कर्म थाये चकचूर ॥ १॥ जल - पूजा जुगते करो, मेल अनादि विनाश । जल - पूजा फल मुज होजो, मांगु एम प्रभु पास ॥ २ ॥ ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय जलं यजामहे स्वाहा ॥ (२७ बार डंका बजाएँ)
अंगलुंछन करते समय ध्यान रखने योग्य बातें
• अंगलुंछन दशांग आदि सुगन्धित धूप से सुवासित करना चाहिए तथा अपने दोनों हाथों को सुगन्धित करना चाहिए ।
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प्रभुजी का इसी समय साक्षात जन्म हुआ हो, ऐसे भावों के साथ कोमलता पूर्वक अंगलुंछन करना चाहिए ।
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प्रभुजी के परिकर को पबासन को पाटलंछना सें ।
• पहला लुंछन थोड़ा मोटा, दूसरा उससे थोड़ा पतला 18 ( पक्के मलमल का) तथा तीसरा लुंछण सबसे अधिक पतला (कच्चे मलमल का) रखना चाहिए । • अंगलुंछन शुद्ध सूती, मुलायम, स्वच्छ, दाग तथा छिद्र से रहित रखना चाहिए।
अंगलुंछन करते समय अपने वस्त्र - शरीरमुखकोश - नाखून आदि किसी का भी स्पर्श न होने अंगलुंछना को सुवासित करे पाए, इस का खास ध्यान रखना चाहिए। अगर हो जाए तो हाथ पानी से शुद्ध करने चाहिए ।
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काफी ध्यानपूर्वक अंगलुंछना करने पर भी यदि अंगलुंछना अपने शरीर-वस्त्र-पबासन अथवा भूमि को स्पर्श कर जाए तो उसका उपयोग प्रभुजी के लिए कभी नहीं करना चाहिए। यदि उसका स्पर्श पाटलुंछना - जमीनलुंछना आदि के साथ हो जाए तो उसका उपयोग नहीं किया जा सकता है । उसी प्रकार पबासन को साफ करने में उपयोगी पाटलुंछना का स्पर्श यदि फर्श को साफ करने के लिए उपयोगी लुंछना से हो गया हो तो उसका उपयोग पाटलुंछन के रूप में नहीं किया जा सकता । पहली बार अंगलुंछना करते समय प्रभुजी के ऊपर रहे हुए विशेष पानी को ऊपर-ऊपर से साफ करना चाहिए तथा दूसरी बार अंगलुंछना करते समय सम्पूर्ण शरीर को साफ करने के बाद अंग- उपांग, पीछे, हथेली के नीचे, कन्धे के नीचे आदि अंगों पर अंगलुंछना की ही लट बनाकर उसके आर-पार विवेकपूर्वक साफ करना चाहिए ।
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• यदि उस लट से साफ होना सम्भव न हो तो सुयोग्य - स्वच्छ सोने-चांदी तांबा अथवा पित्तल अथवा चन्दन के सूए से हल्के हाथों से साफ करना चाहिए ।
• तीसरी बार अंगलुंछना करते समय सम्पूर्ण रूप से स्वच्छ हो चुके प्रभुजी को हल्के हाथों से सर्वांग को स्पर्श कर विशेष रूप से स्वच्छ करना चाहिए । • अष्ट प्रातिहार्य सहित परमात्मा को अंगलुंछना करते समय प्रभुजी की अंगलुंछना करने के बाद अष्ट प्रातिहार्य आदि परिकर ( देव-देवी-यक्ष-यक्षिणीप्रासाददेवी आदि) की भी अंगलुंछना की जा सकती है।
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नीचे जमीन को जमीन लुंछना से
पहला अंगलुंछन, ऐसे करें ।
दुसरा अंगलुंछन, ऐसे करें ।
सुए से अंगलुंछन, ऐसे करें
तीसरा अंगलुंछन, ऐसे करें ।
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