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________________ । यदि ऐसे अनुचित स्थानों पर फूल चढाए गए हों तो उन्हें वहाँ से उठाकर यथोचित स्थान पर चढाया जा सकता है। परन्तु दूसरी बार चढ़ाने के लिए उन्हें संग्रह नहीं करना चाहिए। • फूल अपने शरीर वस्त्र, पबासन, भूतल अथवा अयोग्य स्थानों से स्पर्श हो गए हो अथवा नीचे गिर गए हो तो उन फूलों को प्रभुजी को चढाने से बहुत बड़ी आशातना लगती है। • फूलों को कभी भी प्लास्टिक की थैली में, अखबार में, रही कागज में, अन्य अयोग्य साधन में अथवा डिब्बी के अन्दर बन्द कर के भी नहीं लाना चाहिए। ऐसे फूल चढाना अयोग्य है । • फूलों की पंखुड़ियां अथवा केशर चंदन मिश्रित चावल, पुष्पपूजा अथवा कुसुमांजलि में प्रयोग नहीं करना चाहिए । • यदि फूल मिलना सम्भव न हो तो सोने-चांदी के फूलों से पुष्पपूजा की जा सकती है। • प्रभुजी को एक-दो फूल चढाने के बदले दोनों हाथों की अंजलि में फूल लेकर चढ़ाना चाहिए । (कुसुम - पुष्प, अंजलि - अंजलि - कुसुमांजलि ।) • प्रभुजी की पुष्पपूजा करते समय मन में गाने योग्य तथा प्रभुजी से थोड़ी दूरी पर खड़े भाविकों के द्वारा ● सुमधुर स्वरों में गाए जाने योग्य दोहे:(पुरुष पहले 'नमोऽर्हत्... ' बोले ) सुरभि अखंड कुसुम ग्रही, पूजो गत संताप । सुमजंतु भव्य ज परे, करीए समकित छाप ॥ १ ॥ 'ॐ ह्री श्री परमपुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु- निवारणाय श्रीमते जिनेन्द्राय पुष्पाणि यजामहे स्वाहा' (२७ डंका बजाए) अर्थ : जिनके संताप मात्र नष्ट हो गए हैं, ऐसे प्रभुजी की आप सुगन्धित अखंड पुष्पों से पूजा करो। प्रभुजी के स्पर्श से फूलों का जीव भव्यता को प्राप्त करता है, उसी प्रकार आप भी समकित की प्राप्ति करनेवाले बनो । • यहाँ गर्भगृह के अन्दर प्रभुजी के बिल्कुल नजदीक में उतारने योग्य निर्माल्य से लेकर पुष्प पूजा तक की पूजा को अंगपूजा कही जाती है। उसमें सर्वथा मौन का पालन करना चाहिए तथा दोहे आदि मन में ही गाना जरूरी है। • प्रभुजी से कम से कम साढ़े तीन हाथ दूर (अवग्रह) में रहकर करने योग्य अग्रपूजा है। • स्वद्रव्य से अष्ट प्रकारी पूजा करनेवाले भाग्यशाली भी प्रभुजी से साढ़े तीन हाथ की दूरी पर रहकर ही अग्रपूजा करें। Ducation Internationa • सुगंधरहित अथवा जिसके जलाने से आँखें जलने लगे, ऐसे धूप का प्रयोग नहीं करना चाहिए । धूप-पूजा की विधि मालती - केशर-चंपा आदि उत्तम जाति की सुगन्ध से मिश्रित दशांगधूप प्रभुजी के समक्ष करना चाहिए । • • धूप प्रभुजी के नजदीक नहीं ले जाना चाहिए। थाली में धूप-दीप आदि रखकर प्रभुजी की अंगपूजा (= पक्षाल, केशर, पुष्पपूजा) नहीं करनी चाहिए । • मंदिर की धूपदानी में यदि धूप सुलग रहा हो तो दूसरा धूप नहीं सुलगाना चाहिए । यदि स्वद्रव्यवाला धूप हो तो उसे जलाया जा सकता है। • धूप जलाते समय उसका अग्रभाग घी में नहीं डुबाना चाहिए तथा धूपकाठी की लौ को फूक से बुझानी नहीं चाहिए । स्वद्रव्य से धूपपूजा करने वाला धूपकाठी के छोटे-छोटे टुकड़े कर जलाने की बजाय यथाशक्ति बड़ी धूपकाठी जलानी चाहिए । • धूपपूजा करते समय उसी थाली में दीपक भी साथ नहीं रखना चाहिए। उसी प्रकार दीपपूजा मे भी। पुरुषों को धूपपूजा प्रभुजी की बाई ओर तथा महिलाओं को भी बाई ओर खड़े रखकर करनी चाहिए। धूपकाठी जलाने के बाद उसे प्रदक्षिणा के समान गोलाकार घुमाने के बजाय अपने हृदय के नजदीक रखकर धूम्रसेर को उर्ध्वगति की ओर जाती देखनी चाहिए। • धूपकाठी हाथ में न रखकर ठीक तरह से धूपदानी में रखकर पूजा करनी चाहिए। धूपपूजा करते समय बोलने योग्य दुहा ( पुरुष पहले नमोऽर्हत्... बोले ) अमे धूपनी पूजा करीए रे, ओ मनमान्या मोहनजी । अमे धूपघटा अनुसरीए रे, ओ मनमान्या मोहनजी । प्रभु नहि कोई तमारी तोले रे, ओ मनमान्या मोहनजी । प्रभु अंते के शरण तमासं रे, ओ मनमान्या मोहनजी। "ध्यान घटा प्रगटावीए, वाम नयन जिन धूप । मिच्छत्त दुर्गन्ध दूर टले, प्रगटे आत्म स्वरूप ॥" • "ॐ ह्रीं श्रीं परम पुरुषाय परमेश्वराय जन्म-जरा-मृत्यु- निवारणाय श्रीम जिनेन्द्राय धूपं यजामहे स्वाहा " (२७ डंका बजाएँ) प्रभुजी की बाई ओर धूपदानी स्थीर रखकर इस तरह धूपपूजा करें। : अर्थ प्रभुजी की बांई आंख की ओर धूप को रखकर उस धूप में निकलनेवाले धुए की घटा के समान हम सब ध्यान की घटा प्रगट को जिससे ध्यान घटा के प्रभाव से मिथ्यात्व रूपी दुर्गन्ध नष्ट हो तथा आत का शुद्ध स्वरूप प्रगट हो । ( धूपपूजा करते समय नवकार - स्तुति-स्तो आदि कुछ भी नहीं बोलना चाहिए । ) धूपपूजा करने के बाद धूपदानी को प्रभुजी से उचित दूरी पर रखे । (www.jainelibrary.org • For Private & Personal Use Only
SR No.002927
Book TitleAvashyaka Kriya Sadhna
Original Sutra AuthorN/A
AuthorRamyadarshanvijay, Pareshkumar J Shah
PublisherMokshpath Prakashan Ahmedabad
Publication Year2007
Total Pages274
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ethics, Spiritual, & Paryushan
File Size66 MB
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