________________
तक...' फिर खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! आसपास करनेवाले) तथा एकलठाणा-ठाम चउविहार चैत्यवंदन करूं?' इच्छं कहकर जगचिंतामणि से पूर्ण जयवीयराय ! आयंबिल-एकासणा के बाद चौविहार का पच्चक्खाण सूत्र तक बोलकर चैत्यवंदन करना चाहिए। उसके बाद खमासमण उसी समय करना चाहिए । शाम को गुरु की साक्षी में देकर 'इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! सज्झाय करूं?'इच्छं, कहकर तथा देवसाक्षी में भी चौविहार का पच्चक्खाण लेना गोदोहिका आसन (गाय दुहने की मुद्रा) में बैठकर श्री नवकारमंत्र चाहिए । एक साथ चार प्रकार के आहार का त्याग करने तथा 'श्री मन्नह जिणाणं' (पू. साधु-साध्वीजी भगवंत के लिए श्री के कारण विशिष्ट तप (आयंबिल-एकासणा आदि) दशवैकालिक सूत्र का प्रथम अध्ययन) बोलकर खड़े होकर होने पर भी 'पाणाहार के बदले 'चौविहार' का ही खमासमण देकर इच्छाकारेण संदिसह भगवन् ! मुहपत्ति पडिलेहुं ?' पच्चक्खाण लेना चाहिए। इच्छं, कहकर ५० बोल से मुहपत्ति-शरीर की पडिलेहणा करनी छट्ट-अट्ठम या उससे अधिक उपवास का चाहिए । फिर दूसरी बार खमासमण देकर 'इच्छाकारेण संदिसह पच्चक्खाण एक साथ लिया हो तो उसके दूसरे दिन पानी भगवन् ! पच्चक्खाण पारूं?' 'यथाशक्ति' बोलकर सत्रह संडासा पीने से पहले दूसरी बार पच्चक्खाण लेनेवालों को सूत्र पूर्वक खमासमण देकर खड़े होकर योगमुद्रा में 'इच्छाकारेण संदिसह के अनुसार पाणाहार पोरिसि...' का पच्चक्खाण अवश्य भगवन् ! पच्चक्खाण पार्यु ?''तहत्ति' कहकर घुटने के सहारे पंजे लेना चाहिए। चउविहार उपवास का पच्चक्खाण लिया के बल पर बैठकर चरवला/रजोहरण/जमीन पर दाहिने हाथ की मुट्ठी हो तो उस दिन शाम को गुरुसाक्षी में तथा देवसाक्षी में बांधकर बाए हाथ की हथेली में मुहपत्ति (बंद किनारे दिखे, इस दूसरी बार पच्चक्खाण का स्मरण करना चाहिए। एक प्रकार) मुख के पास रखकर श्री नवकारमंत्र बोलकर पच्चक्खाण | साथ कई उपवास का पच्चक्खाण एक ही दिन में लेने पारने का सूत्र उसी प्रकार बोलें, जिस प्रकार पच्चक्खाण लेने का के बाद अथवा मन में मात्र धारण करने के बाद दूसरे - सूत्र बोला जाता है।
तीसरे आदि दिनों में दूसरी बार पच्चक्खाण नहीं लेने से ___पूज्य साधु-साध्वीजी भगवंत, पौषधव्रतधारी श्रावक- उपवास का लाभ नहीं मिलता है। पानी मुंह में डालने के श्राविकागण तथा श्री नवपदजी की ओली की विधिपूर्वक आराधना बाद सुबह में कोई भी पच्चक्खाण नहीं लेना चाहिए। करनेवाले आराधकवर्ग उपरोक्त पच्चक्खाण पारने की विधि करते हैं वर्तमान में, नवकारशी आदि पच्चक्खाण में कुछ । उसके अतिरिक्त प्रतिदिन नवकारशी से तिविहार उपवास आदि तप अज्ञानता तथा देखादेखी के कारण पच्चक्खाण पारने के करनेवाले आराधक श्रावक-श्राविकागण में पच्चक्खाण पारने की बाद तुरन्त कुल्ला करने, दांत साफ करने अथवा थोड़ा विधि आज विस्मृत हो गई है, यह उचित नहीं है । इस हेतु यथा पानी पीने की प्रवृत्ति विधिरूप में प्रारम्भ हो गई है, यह सम्भव प्रयत्न करना चाहिए । शायद प्रतिदिन नवकारशी में उचित नहीं है। पहले नंबर पर तो पच्चक्खाण पारने की अनुकूलता न रहे, परन्तु जब विशेष तप करने का अवसर हो तब विधि का आग्रह रखना आवश्यक है। फिर भी यदि (पौषध में न हो, फिर भी) पच्चक्खाण पारने की विधि का आग्रह सम्भव हो तो मुट्ठी बांधकर तीन बार श्री नवकारमंत्र अवश्य रखना चाहिए । नवकारशी का पच्चक्खाण करनेवाले गिनकर पच्चक्खाण पारने की प्रथा प्रचलित है। भाग्यशाली को सारा दिन पूर्ण मुखशुद्धि हो, उस समय याद करके सूर्योदय के बाद दो घड़ी (४८ मिनट) के बाद 'मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण' करना चाहिए। साथ ही पहला बियासणा नवकारशी का पच्चक्खाण आता है, इसी प्रकार सूर्यास्त करके उठते समय तथा तिविहार उपवास में जब-जब पानी का से पहले दो घड़ी (४८ मिनट) के बाद चारों प्रकार के उपयोग (पीना) हो जाने के बाद याद करके मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण आहार के त्याग के रूप मे चौविहार का पच्चक्खाण करना चाहिए । हमेशा कम से कम नवकारशी तथा चौविहार का करने की प्रथा जैनशासन में प्रचलित थी तथा आज भी पच्चक्खाण करने के साथ ही मुखशुद्धि हो, तब याद करके मुट्ठिसहिअं चतुर्विध श्री संघ में कुछ वर्ग इसके अनुसार सूर्यास्त से पच्चक्खाण करनेवाले महानुभाव को २५ से २८ उपवास का लाभ पहले दो घडी के बाद आहार-पानी का त्याग करते हैं, एक महीने में होता है। वह लाभ छोड़ने जैसा नहीं है।
वह अनुकरणीय है। आयंबिल, एकासणा तथा बियासणा करके उठते समय, उन यदि वह (दो घडी पहले पच्चक्खाण करना) महानुभावों को तिविहार तथा मुट्ठिसहिअं का पच्चक्खाण करना सम्भव न हो, तो बारह महीने चउविहार का पच्चक्खाण चाहिए । दूसरी बार जब पानी पीने की आवश्यकता हो तो मुट्ठी (सूर्यास्त से पहले) भोजन कर लेना चाहिए । रात्रिभोजन बांधकर श्री नवकार मंत्र तथा मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण पारने का सूत्र नरक का प्रथम द्वार है। रात्रि में आहार-पानी कुछ भी नहीं बोलकर पानी का उपयोग किया जा सकता है । शायद किसी लिया जा सकता है । फिर भी धर्म में नया प्रवेश आराधक को मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण पारना नहीं आता हो तो शीघ्र करनेवाले महानुभाव को थोड़ा लाभ मिले, इस आशय ही गुरुभगवंत के पास सीख लेना चाहिए। वह जब तक न आता हो से तिविहार का पच्चक्खाण दिया जाता है। उसमें पानी तब तक तिविहार का पच्चक्खाण तो अवश्य करना चाहिए। | कितना कितनी बार तथा कितने बजे तक पीना चाहिए,
आयंबिल-एकासणा तथा दूसरा बियासणा (सूर्यास्त के इसका निर्णय नहीं कर पाते हैं । प्यासे रहने की शक्ति न
१०५
in cui
PEED Use Only
www.jainelibrary.org