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पच्चकखाण लेते समय की मुद्रा
पच्चक्खाण पारने की मुद्रा
श्री पच्चक्खाण सूत्र - अर्थ व जानकारी
पच्चक्खाण लेनेवाले को उस पच्चक्खाण के समय की मर्यादा १. नवकार-सहिअंपच्चक्खाण : सूर्योदय के बाद ४८ मिनट (दो घड़ी) तक। २. पोरिसि-पच्चक्खाण : सूर्योदय के बाद दिन के चौथे भाग (एक प्रहर) तक। ३. साढ-पोरिसि-पच्चक्खाण : सूर्योदय से दिन के छठे भाग (डेढ़ प्रहर) तक। ४. पुरिमङ्क-पच्चक्खाण : सूर्योदय से दिन के मध्यभाग (मध्याह्न) (दो प्रहर) तक। ५. अवडू-पच्चक्खाण : सूर्योदय से दिन के पौने भाग(तीसरे प्रहर) तक। (दिन जितने घंटे का हो, उसे चार से भाग देने पर जो समय निकलता हो, उसे एक प्रहर कहा
जाता है। जब १२ घंटे का दिन हो तब उसे चार से भाग देने पर ३ घंटे होते हैं।) : पच्चक्खाण लेनेवाले के (ज्ञान तथा अज्ञान के विषय में ) विशुद्धि आदि भेद : १. विशुद्ध : पच्चक्खाण सूत्र तथा उसके अर्थ को जाने तथा उसके जानकार के पास
ग्रहण करे। २. शुद्ध : पच्चक्खाण सूत्र तथा उसके अर्थ को जाने तथा अज्ञानी के पास ग्रहण करे।। ३. अर्धशुद्ध: पच्चक्खाण सूत्र तथा उसके अर्थ को न जाने परन्तु जानकार के पास ग्रहण करे। ४. अशुद्ध : पच्चक्खाण सूत्र तथा उसके अर्थ को न जाने तथा अज्ञानी के पास ग्रहण करे।
(पहली-दूसरी अवस्था उत्तम है, दूसरी अवस्था अच्छी है, तीसरी जानकार के पास ज्ञान प्राप्त करेगा, इस आशा से कुछ अर्थ में अच्छा है, परन्तु चौथी अवस्था सर्वथा अयोग्य कहलाती है।)
पच्चक्खाण लेते समय तथा उसकी महत्ता से सम्बन्धित जानकारी श्री अरिहंत परमात्मा के गुणों के स्मरण के रूप में पच्चक्खाण तथा मुट्टिसहिअं पच्चक्खाण सद्गति की इच्छा प्रातःकाल उठते ही १२ बार श्री नवकार मन्त्र का स्मरण करनेवाले प्रत्येक भाग्यशाली को अवश्य करना चाहिए । मन में करना चाहिए । उस समय यथाशक्ति आत्मसाक्षी में पंचमकाल में संघयणबल कम होने के कारण अनिवार्य संजोगों में पच्चक्खाण की धारणा करनी चाहिए । राइअ प्रतिक्रमण लिए गए पच्चक्खाण का भंग न हो, इसके लिए आगार (छूट) में तपचिंतवणी के कायोत्सर्ग के समय भी धारणा करनी पच्चक्खाण में बतलाया गया है। परन्तु उसका उपयोग करने की चाहिए। उसके बाद प्रातःकाल की वासचूर्ण (क्षेप) पूजा परमीशन नहीं है। यदि प्रमादवश दोष लग जाए तो गुरुभगवंत को करने जिनालय जाना चाहिए । वहा प्रभु की साक्षी में भी निवेदन कर उसका प्रायश्चित (=आलोचना) कर लेना चाहिए। धारण किए गए पच्चक्खाण को सूत्र के द्वारा ग्रहण करना नमुक्कारसहिअं (नवकारशी) आदि दिन से सम्बन्धित सारे चाहिए। उसके बाद उपाश्रय जाकर गुरुभगवंत की वंदना पच्चक्खाणों के साथ मुट्ठिसहिअं पच्चक्खाण भी अवश्य लिया कर उसके मुख से अर्थात् गुरुसाक्षी में पच्चक्खाण ग्रहण जाता है। पच्चक्खाण पारते समय अंगूठा अन्दर रहे इस प्रकार मट्टी करते समय मन में उन सूत्रों का उच्चारण करना चाहिए बांधकर पच्चक्खाण पारना चाहिए । पच्चक्खाण का समय बीत तथा 'पच्चक्खाइ-वोसिरह' के बदले 'पच्चक्खामि-जाने के बाद विशेष आराधना के निमित्त तथा किन्हीं संजोगों के वोसिरामि' अवश्य बोलें । इस प्रकार आत्म-साक्षी में, कारण शायद पच्चक्खाण नहीं पारा जा सके, फिर भी देवसाक्षी में तथा गुरुसाक्षी में हमेशा पच्चक्खाण करने पच्चक्खाणवाले महानुभाव को 'मुट्ठिसहिअं' का लाभ निश्चित ही का आग्रह रखें।
मिलता है। उदाहरण के लिए नवकारशी पच्चक्खाण करनेवाले __नवकारशी से साढपोरिसी तक का पच्चक्खाण भाग्यशाली प्रभुभक्ति अथवा जिनवाणी श्रवण अथवा सूर्योदय से पहले ले लेना चाहिए तथा पुरिमक-अवड्डू के व्यावहारिक संजोगों के कारण उस समय शायद पच्चक्खाण नहीं पच्चक्खाण सूर्योदय के बाद भी लिया जा सकता है। पारे, फिर भी उसे नवकारशी का समय हो जाने पर भी मुट्टिसहिअं चउविहार-तिविहार तथा पाणाहार का पच्चक्खाण सूर्यास्त पच्चक्खाण का लाभ मिलता है। से पहले ले लें अथवा धारण कर लें।
नमुक्कारसहिअं से तिविहार उपवास तक के पच्चक्खाण कम से कम नवकारशी का, रात्रिभोजन त्याग का विधिपूर्वक पारना चाहिए । उसमें 'श्री ईरियावहियं से लोगस्ससूत्र
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