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श्री अरिहंतचेइआणं सूत्र की तीन संपदा तथा श्री अन्नत्थ सूत्र की पाँच संपदा से सम्बन्धी १. अभ्युपगम संपदा : एक चैत्य (मंदिर) में स्थित । ५. बहुवचनांत आगार संपदा : कायोत्सर्ग में अनिवार्य छूट प्रतिमाओं की आराधना करने के लिए कायोत्सर्ग करना (आगार) बहुवचनांत वाले ३ पदों में 'सहमेहि... से दिट्रिस्वीकार करने से इन दो पदोंवाली ('अरिहंत चेइआणं संचालेहिं तक वर्णित होने के कारण वह बहुवचनांत आगार से...काउस्सग्गं' तक की) अभ्युपगम संपदा है।
संपदा है। २. निमित्त संपदा : कायोत्सर्ग करने का निमित्त ६. आगंतुक आगार संपदा : एकवचन तथा बहुवचन के अंत में (प्रयोजन) इन छह पदोंवाली संपदा में ('वंदण- वर्णित आगार के अतिरिक्त उपलक्षण से अन्य चार आगारवाली वत्तियाए से...निरुवसग्ग वत्तियाए' तक में) वर्णित होने तथा ६ पदोंवाली अन्य (एवमाइ एहि... से... काउस्सग्गं तक) के कारण निमित्त संपदा है।
संपदा को आगंतुक आगार संपदा कही जाती है। ३. हेतु संपदा : श्रद्धादि के बिना किया गया कायोत्सर्ग ७. उत्सर्ग अवधि संपदा : काया का उत्सर्ग (त्याग) कितने इच्छितफल को प्रदान करने में समर्थ नहीं होता है । समय तक करना है, उस अवधि (मर्यादा) को जाननेवाली कायोत्सर्ग के हेतु ७ पदोंवाली ('सद्धाए से....ठामि चार पदोंवाली ('जाव अरिहंताणं...से...न पारेमि' तक की) काउस्सग्गं' तक की) हेतु संपदा है।
संपदा को उत्सर्ग अवधि संपदा कही जाती है। ४. एकवचनांत आगार संपाद : कायोत्सर्ग में अनिवार्य ८. स्वरूप संपदा : कायोत्सर्ग कैसे करें, उसका स्वरूप छूट (आगार) एकवचनांत वाले ९ पदों में 'अन्नत्थ बतलानेवाली छह पदोंवाली संपदा को ('ताव कायं...से... से...भमलीए पित्तमुच्छाए' तक वर्णित होने के कारण अप्पाणं वोसिरामि' तक की) संपदा 'स्वरूप - संपदा' वह एकवचनांत आगार संपदा है।
कहलाती है। इस सूत्र में आनेवाले क्रम सम्बन्धी रहस्य श्री अरिहंतभगवंत के चैत्य (प्रतिमा अथवा चित्त की स्वस्थता) रखी जाए, धारणा (पदार्थ के दृढ जिनमंदिर) का आलंबन लेकर कायोत्सर्ग किया जाता है। संकल्परूप) का अभ्यास किया जाए तथा अनुप्रेक्षा (बारंबार उनका आलंबन (सहारा-आधार) लेने से मन स्थिर होता तत्त्वचितंन) का आश्रय लिया जाए, तो चित्त एक निश्चित है । अत: पहले उनके वंदन का निमित्त लेकर (वंदण विषय में एकाग्र हो सकता है। वत्तियाए) चित्त को एकाग्र किया जाता है । फिर पूजन ऐसी चित्त की एकाग्रता के साथ किया गया कायोत्सर्ग का निमित्त लेकर(पूअण वत्तियाए), सम्मान का निमित्त कर्मनिर्जरा में अपूर्व सहायक बनता है। लेकर (सम्माण वत्तियाए), बोधिलाभ का निमित्त लेकर इस सूत्र को लघु चैत्यवंदन सूत्र भी कहा जाता है। अनेक (बोहिलाभ वत्तियाए) तथा मोक्ष का निमित्त लेकर जिनालयों के दर्शन-वंदन का अवसर एक साथ हो, तब (निरुवसग्ग वत्तियाए) के द्वारा चित्त को एकाग्र किया प्रत्येक स्थान पर चैत्यवंदन करना सम्भव न हो तो सत्रह जाता है। उससे (वंदनादि से) जो लाभ मिलता है, वह संडासा (प्रमार्जना) के साथ तीन बार खमासमणा देने के मिले, ऐसी इच्छा की जाती है।
बाद योगमुद्रा में यह सूत्र बोलकर, एक बार श्री नवकारमंत्र साथ ही यदि श्रद्धा (आस्था) विकसित की जाए, का कायोत्सर्ग कर स्तुति =थोय बोलकर पुनः एक ज्ञान (मेधा-बुद्धि) विकसित किया जाए, धैर्य (वृत्ति, खमासमणा देने से लघु चैत्यवंदन का लाभ प्राप्त होता है।
J१९२०
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