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________________ प्रस्तावना कना फळ अने वा. सं. ना प्रथम मंडळना फळ वच्चे काईक साम्य छ (भ. सं. १५, १३, १७. वा. सं. ९, १०). फेर बन्ने वच्चे एटलो छ के भ. सं. मां विस्तार छे ज्यारे वा. सं. मां मात्र सुभिक्ष थाय छे एटलं कही पतावी देवामा आव्युं छे. ए उपरांत, भ. सं. प्रमाणे प्रथम मंडळy फळ मध्यम गणवामां आव्युं छे ज्यारे वा. सं. मां निश्चयात्मक रीते उत्तम कहेवामां आव्युं होय एम देखाय छे. आ तफावत कांई ओछो न कहेवाय. द्वितीय मंडळनु फळ भ. सं. प्रमाणे मध्यम छ एम सामान्यपणे (१५, ९) व युं छे ज्यारे ते मंडळना फळनुं विस्तार पूर्वक वर्णन करती वखते (१५; १९ थी २३) मध्यम फळ करतां निंदित फळ होय एम स्पष्ट मालुम पडे छे. आ रीते एकना एक ज ग्रंथमां विरोध छे. वा. सं. मां (५१२) द्वितीय मंडळना फळादेशमां अने भ. सं. ना फळादेशमां आसमान जमीननो फरक छे. भ. सं. मां एने अनिष्टफळदायी तरीके ज गणाववामां आव्युं छे ज्यारे वा. सं. मां तेथी विपरीत छे. तेमां चोक्खं कथन छे के जल बहु वरसे छे. भ. सं. प्रमाणे तृतीय मंडळ निंदित फळने आपनारूं छे (१५, ९, २३-२६) ज्यारे वा. सं. मां पण तेम ज, एक या अन्य रीते, कहेवामां आव्युं छे (९, १४). चौरभय तथा क्षुधाभय ए बन्ने पद पण बन्ने संहितामा सामान्य छे. चोथा मंडळना फळनी बाबतमा बन्ने संहिताओमां सादृश्य छे. चोथु मंडळ भ. सं. मां प्रवर गणवामां आव्युं छे (१५ ११, २७-३१); वा. सं. मां पण प्रवर ज गणवामां आव्युं होय एम देखाय छे ( ९, १६). शुक्राचार्या अन्य ग्रहोथी आ मंडळमां आक्रान्त थाय तो ऐश्वाकु राजानुं मृत्यु थाय छे ए उक्ति पण बन्ने संहिताओमां समान छे (भ. सं. १५, ३१. वा. सं. ९, १७), पांचमा मंडळचें फळ बन्ने संहिताओमां सदृश छे. भ. सं. मां पांचमा मंडळने निंदित गण्यु छे (१५, ९) अने ते प्रमाणे विस्तार पूर्वक वर्णन करती वखते तेने निंदित तरीके ज तेमां ओळखाववामां आवेल छे (१५; ३२-३८). वा. सं. मां पण बीजा शब्दोमा ए ज वस्तुने समर्थित करवामां आवी छे (९, १८). क्षुधा अने रोगनी बाधा थाय छे. ए कथन अक्षरशः बन्नेमां छे. सौराष्ट्र, सिंधु, सौवीर, अने अंबष्ठादि देशो के जेना उपर भय आबी पडे छे ते देशना नामो पण बन्नेमा समान छे. छठ्ठा मंडळना फळादेश संबंधे भ. सं. मां छठे मंडळ प्रवर छ एम कहेवामां आव्यु छ (१५; ११) ज्यारे तेनुं विस्तार पूर्वक वर्णन करती वखते (१५; ३९ थी ४३) तेथी उलटुं ज तेना ते ज ग्रंथमां कहेवामां आव्युं छे. आवा एक ज ग्रंथमा अने एक ज अध्यायमा आवता पारस्परिक विरोधो ग्रंथर्नु मूल्य खूब घटाडे छे ए तो निःसंदेह कही देवू जोइए. वा. सं. मां तो ते मंडळने एटले के छठ्ठा मंडळने स्पष्टपणे प्रवर ज (९, २०) गणाववामां आव्युं छे; जो के कोई कोई स्थळे सभय पण बने छ एम उमेरवामां आव्युं छे. भयथी आक्रान्त थनार देशोना नाम तेमा जणाववामां आव्या छे. ए नामो पैकीना गांधार, विदर्भ अने अवंती, ए नामो बन्ने संहिता ग्रंथोमां समान छे. मंडळोना फळादेश संबंधेनी आ वातो पछी बीजी बाबतोमा ते बन्ने संहितामां क्या क्यां सादृश्य छे अने क्यां क्या विरोध छे ते हवे जोइए. प्रत्येक नक्षत्रमा शुक्रचार थाय त्यारे शुं फळ आवे? तेनुं वर्णन बन्ने संहिताओमां केवा प्रकारचें छे ते जोइए. फळोना शुभ अने अशुभ एवा बे मोटा वर्गो पाडी बन्नेमां कयां संगति छे अने कयां विसंगति छे तेज तपासवू उचित छे, कारण के भ. सं. मां सामान्यपणे विस्तार होय छे ज्यारे वा. सं.मा संक्षेप होय छे. फळोनो विस्तार एकमां भले वधारे होय अने बीजामां भले ओछो होय. एथी बन्ने संहिताओ वच्चे विरोध छे एम न कही शकाय. परंतु फळ पूरतुं एकमां शुभ कां होय-सिधी के आडकतरी रीते-अने एज फळने बीजामा अशुभ कहेवामां आव्युं होय तो ए मेद मौलिक थयो भने एटले खास नोंधने पात्र थयो एम कहेवू जोइए. भ. सं. मां कहेवामां आव्युं छे के शुक्र रोहिणीने मेदे तो ते अशुभ फळदायी छे (१५, ९७). वा. सं. मां पण एम ज अन्य रीते कहेवामां आव्युं छे (९; २५). तेवी ज रीते मृगशिराना शुक्रभेदने बन्नेमां अशुभ (भ. सं. १५; १०२. वा. सं. ९, २६), आमां अशुभ फळदायी कह्यु छे परंतु वृष्टि थाय तेम पण कर्तुं छे ( भ. सं. १५; १०३, १०५ वा. सं. ९; २६), पुनर्वसुमां अशुभ फळदायी (भ. सं. १५; १०६. वा. सं. ९, २७) गण्डे छे जो के भ. सं. मां एटलं विशेषपणे कहेवामां आव्यु छ के ए जो जमणी बाजु गमन करे तो द्रोण मेघ थाय अने डाबी बाजु गमन करे तो सर्व कर्मजीवीओने पीडा करे (भ. सं. १५; १०८); आ स्थळे एटली नोंध लेवी घटे के शुक्रचारने जमणी बाजु अने डाबी बाजु एम बे रीते गणावी ते बन्नेना फळने पण जुदा, जुदा जणाववामां आव्या छे ए एक भ. सं. नी खास विलक्षणता छे; पुष्यना फळमां बन्ने संहिता ग्रंथोमां विरोध छ; अर्थात् भ. सं. अशुभ गणावे छे । १५, १०९ ) ज्यारे वा. सं. ए भेदने वृष्टिदायक तरीके गणावे छे ( ९,२७), आश्लेषा (आ नामने बदले भ. सं. मां भूलथी आद्रो शब्द वापरेल छे) मां अशुभ फळ (भ. सं. १५; ११०. वा. सं. ९; २८), पूर्वाफाल्गुनीमां अशुभ फळदायी (भ. सं. १५, ११६. वा. सं. ९; २९) गणाव्यो छे जो के वा. सं. मां एने घणो वरसाद देनार पण क्ह्यो छे, उत्तराफाल्गुनीमां भ. सं. अशुभ फळ बतावे छे (१५; ११७) ज्यारे वा. सं. एने शुभ गणावे छे अर्थात् वृष्टिद जणावे छे (९; २४), भ. सं. हस्त तथा रेवतीमांना शुक्रचारने, जमणी बाजुनो होय तो चोरोनो घात करनार अने डाबी बाजुनो होय तो चोरोनो जय करनार कहे छे (१५, Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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