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________________ १४ भद्रबाहुसंहिता ११८) ज्यारे वा. सं. एने अशुभ फळदायी जणावे छे (९, ३०), चित्रामा अशुभ फळदायी (भ. सं. १५; ११८१२१. वा. सं. ९,३०) छे जो के वा. सं. मां एने वरसाद पूरतो सारो गणाव्यो छे, स्वातीमां अशुभ (भ. सं. १५ १२२. वा. सं ९,३१) जो के वा. सं. मां वरसाद पूरतो तेने सारो गणवामां आव्यो छे, विशाखामां भ. सं. मां अशुभ गणाव्यो छे ( १५; १२३)ज्यारे वा. सं. मां एने वृष्टि दायक गणाव्यो छे (९,३१), अनुराधा, ज्येष्ठा, मृळ, पूर्वाषाढा, उत्तराषाढा, श्रवण, धनिष्ठा, पूर्वाभाद्रपद, उत्तराभाद्रपद, अश्विनी अने भरणीना शुक्रचारनुं फळ बन्ने संहिताओमा लगभग समान छे (भ. सं. १५; १२६, १२८, १३०, १३२, १३४, १३९, १४०, १४४, १४६, १५०, १५२. वा. सं. ९; ३२, ३२, ३२, ३३, ३३, ३३, ३३, ३४, ३५, ३५, ३५). शुक्रना उदय अने अस्त वखते एनी आगळ जो बुध होय तो ते सुभिक्ष अने क्षेम करनार छे एम भ. सं. मां (१५; १७०) कहेवामां आव्युं छे ज्यारे वा. सं. (९; ४३) मां तेने वर्षा तेम ज रोग बन्नेनो करनार कह्यो छे. आ एक तफावत थयो. काळा रंगनो शुक्र देखाय तो बलक्षोभ, भ. सं. १५, १७२) प्रमाणे थाय, ज्यारे वा. सं. (९, ४४) प्रमाणे वरसाद न थाय एम कर्तुं छे. पीळा रंगनो देखाय तो व्याधिनु सामान्य फळ बन्नेमां कहेवामां आव्युं छे (भ. सं. १५, १७३. वा. सं. ९, ४४), मांजिष्ठ वर्णनो देखाय तो, भ. सं. (१५, १७३) प्रमाणे, वाताक्षिरोग अने वा. सं. (९; ४४) प्रमाणे शस्त्रकोप करनार बताववामां आवेल छे. आवो नानो मोटो भेद बन्ने वच्चे छे. उत्तर, मध्य, अने दक्षिण एवा त्रण विभागो दरेक वीथिना छे अने तेना फळ उत्तम, मध्यम, अने कनिष्ठ छे एम बन्ने संहिता ग्रंथोमां कहेवामां आव्यु छ (भ. सं. १५, ७२. वा. सं. ९८). उपर बतावी ते बाबतो बन्ने संहिता ग्रंथोमा चर्चवामां आवेल छे-बन्नेनी लाक्षणिक ढबे. कोई कोई बाबतोमा फेर छे तो कोई कोई वच्चे साम्य छे. ते बधु आपणे उपर जोयं. भ. सं. मां शुक्रना पांच वक्रचार, अतिचार, शुक्रनो पूर्व प्रवास अने पृष्ठतः प्रवास ए बाबतो तथा प्रत्येक वीथिना विस्तृत फळो विशेषपणे वर्णववामां आव्या छे अने तेनुं फळ पण कहेवामा आवेल छे. आ बाबतोनुं वर्णन घा. सं. मां मुद्दल नथी. शनैश्चरचार शनैश्चरचारनुं वर्णन भ. सं. ना सोळमा तथा वा. सं. ना दसमा अध्यायमा पूरेपूरु करवामां आव्यु छे. भ. सं. अने वा. सं. मां आवता शनैश्चरचारना वर्णनो तद्दन निराळा छे. प्रत्येक नक्षत्रमां शनैश्चर विचरण करे तो शुं फळ आवे एनुं वर्णन वा. सं. मां संपूर्ण रीते करवामां आव्युं छे ज्यारे भ. सं. मां एवं वर्णन बिलकुल नथी बल्के एमां तो शनैश्चर एक वर्षमा एक नक्षत्र भोगवे, बे भोगवे, त्रण भोगवे, तो शुं फळ आवे, क्या देशो उपर आपत्ति उतरे अने क्या देशो समृद्ध बने एनुं वर्णन करवामां आव्युं छे. एटले आ बन्ने संहिता ग्रंथोमां आवता शनैश्चरचारना वर्णननी तुलना करवी शक्य नथी. कृत्तिकामां शनैश्वर अने विशाखामां गुरु होय तो चारे तरफ दारुणता व्यापे अने वरसाद खूब वरसे आम भ. सं. (१६; २४) मां कहेवामां आव्युं छे ज्यारे वा. सं. मां (१०; १९) एम कहेवामां आव्युं छे के प्रजाओमां अनीति अत्यंत वधी पडे अने बन्ने ग्रहो एक ज नक्षत्रमा होय तो बधा नगरोनो भेद थाय छे एम पण का छे फळादेशना आ भेदने भेद ज कहेवो जोइए. बीजी वाबतनोमोटो मेद बन्ने संहिता ग्रंथोमा जे छे ते शनैश्चरना वर्णना फळ संबंधेनो छे. भ. सं. (१६, २६) मां कहेवामां आव्युं छे के शनैश्चर सफेद रंगनो देखाय तो सुभिक्ष, श्वेत-रक्त (मिश्रित ) देखाय तो भय, पीळो देखाय तो व्याधि अने दारुण शस्त्रकोप, काळो देखाय तो अनावृष्टि, अने रुक्ष देखाय तो प्रजानुं शोषण उत्पन्न करे छे; वा.सं. (१०; २१) मां जु९ ज कहेवामां आव्यु छे अने ते ए के शनैश्चर सफेद, लाल, पीळो, काळो अने विविध रंगनो देखाय तो ते ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र, अने वर्णसंकर जातिने माटे नाशकारक छे. आ तफावत नोंधवा योग्य छे. बृहस्पतिचार कार्तिक नामक वर्ष, सौम्य नामक वर्ष, पौष नामक वर्ष कोने कहेवू ते वा. सं. (८; १ थी २) मां कहेवामां आव्युं छे ज्यारे भ. सं. मां ते विषे कांई कहेवामां नथी आव्यु. परंतु कार्तिकादि नामक वर्ष होय तो शुं फळ आवे ते हकीकत बन्ने संहिता ग्रंथोमां छे. भ. सं. मां कार्तिक नामक, सौम्य नामक, पौष नामक वर्षना फळनो कशो य निर्देश नथी. ज्यारे मघादि वर्षना फळनो उल्लेख छे. माघ नामक वर्षमा भ. सं. ( १७, २९) मां अल्पोदक थाय एम कर्वा छे ज्यारे वा. सं. (८; ६) मां सुवृष्टि थाय एम कर्दा छेफाल्गुन नामक वर्षनुं फळ बन्नेमां बराबर सरखुं छे ( भ. सं. १७; २९. वा. सं.८७); चैत्र नामक वर्षनुं फळ, शुभाशुभतानी दृष्टिए बन्नेमा लगभग सर छे (भ. सं. १७; वा. सं. ८, ८); ज्यारे वैशाख नामक वर्षनी बाबतमां तफावत छे-भ. सं. (१७; ३०)मां अशुभ जेवं फळ कडं छे अने वा. सं. (८; ९) मां संपूर्ण शुभ फळ कयुं छे; ज्येष्टा नामक वर्षमा प्रथम जळ थाय अने पाछळथी मित्रभेद थाय एम भ. सं. (१७; ३०) मां कडं छे ज्यारे वा. सं. (८; १०) मां कंगनी अथवा शमी सिवायर्नु बधुं धान्य Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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