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भद्रबाहुसंहिता
छ एम सचोटपणे कहे छे, आ बाबतमा भ.सं. ना कर्त्तार्नु औदार्य खास ध्यानमा लेवा जेवू छे कारण के तेओ 'विप्र'ने पण (१४; १८०) पूज्यनी कोटिमां मुके छे ज्यारे वा. सं. मां तो केवळ ब्राह्मण परंपरा ज अभिमत राखवामां आवी छे. कारण के तेमां कहेवामां आव्यु छ के जो उत्पात अग्निजनित होय तो अग्निनी, जलजनित होय तो वरुणनी, पूजा करवान कडुं छे अने गो-महिष-अन्न वगेरेनु दान देवानुं लख्युं छे (वा. सं. ४६; २४ अने ५०). परंतु त्यां 'प्रवजित'ने पूजवाभ. सं. नी जेम नथी कहेवामां आव्युं कारणके 'प्रव्रजित' मां जैन साधुओ पण आवी जाय. वा. सं. ना रचनारनी आ संकुचित मनोदशा खास साले तेवी छ. शिशिरमां खूब ठंडी, ग्रीष्ममां खूब गरमी, वर्षामां खूब वरसाद थाय एटले के खऋतुप्रभव उत्पात होय तो ते खास उत्पात न गणाय एवी मतलबना विशिष्ट विधानो वा. सं. (४६, ८२) मां मळे छे ज्यारे भ. सं. मां तेम नथी.
शुक्रचार भ. सं. ना पंदरमा अध्यायमा तेम ज वा. सं. ना नवमा अध्यायमा शुक्रचार विस्तृत वर्णन करवामां आव्युं छे. ग्रहोना चारमा शुक्रचार सौथी अगत्यनो छे.
उल्का, संध्या, वात, गंधर्वनगर, परिवेष अने उत्पातो हमेशा बनता होता नथी. ए क्वचित् बनता होय छे तेथी एनी असर केवळ आकस्मिक होय छे. ए विपर्यासो ज्यारे थाय त्यारे ज एनो प्रभाव अनुभवातो होय छे. ग्रहचारनी घटना तो हरहमेशनी होय छे. एटले एनी असर सचराचर विश्व उपर दिन, रात पडती होय छे. आ जगतनी दरेक नानी, मोटी वस्तु ग्रहोना नियंत्रणने निरंतर अधीन होय छे ए अभ्युपक्रम उपर ज्योतिष अने खगोळ विषयक संहिता ग्रंथो प्रतिष्ठापित होय छे. ए ग्रंथोना रचयिताने मते ए अभ्युपक्रम अनुभव सिद्ध छे. आपणे पण एम मानीने ज आ विभागमा चर्चवामां आवेली ग्रहचार विषयक बाबतोने लक्ष्यमा लेवानी छे. राष्ट्रविद्रव, राजभय, नागरभय, पशु-पक्षी गणनो भय, संग्राम, मारी, विप्लव, अनावृष्टि, सुभिक्ष-दुर्भिक्ष, सोंघवारी-मोघवारी, कर्मकरवर्गनो भय, मणि-मुक्ता-प्रवाल-कपास-तेल-धीअन्नादिनुं न्यूनाधिक्य, बंग, अंग, बाल्हिक, काशी, कंबोजादिक अनेकानेक देशो उपर आगंतुक आपत्ति वगेरे वगेरे तमाम हकीकतो ग्रहोना चारना आडकतरा अंकुश नीचे ज छे. वास्तवमां, सूर्य, चंद्रना उदयास्तना प्रभावनो अने सूर्य, चंद्रना ग्रहणनी असरोनो आपणे साक्षात्कार करता होइए ज छीए..
आ रीते विचारतां प्रहचारनी तुलना अति आवश्यकीय छे. तेमा वळी शुक्रचार अन्य ग्रहोना चारनी अपेक्षाए विशेष उपयोगी छे तेथी तेने अही या सर्व प्रथम चर्यो छे. ग्रहनी गतिने अनुलक्षीने तेना पंथ विशेषने खास नाम आपवामां आव्या होय छे. आने संहिता ग्रंथोमा वीथि कहे
ओ नव ले. अने सत्तावीस नक्षत्रोमां विभक्त छे. तेना नामो-नाग, गज, ऐरावत, वृषभ, गो, जरदव, मृग, अने दहन छे (वा. सं. ९,१). नामो पूरतुं वा. सं. अने भ. सं. बच्चे साम्य छे. भ. सं. मां ऐरावतने बदले ऐरावण (१५, २१२) अने दहनने बदले वैश्वानर ( भ. सं. १५, २१५) शब्द प्रयोग करेल छे; तेम ज नामना क्रममां फेर छे एटले के वा. सं. मां सातमी वीथि मृग छे ज्यारे भ. सं. (१५, ४७) मा सातमी वीथि अज छे; भ. सं. (१५, ४७) मां आठमी मृग छे ज्यारे वा. सं. मां आठमी अज छे. नक्षत्रोनी वहेंचणीमां पण आटला पूरतो तफावत आवशे ज. भ. सं. (१५, ४४ थी ४८) प्रमाणे ते वीथिओनो क्रम आ प्रमाणे छः-नाग, गज, ऐरावण, वृषभ, गो, जरद्गव, अज, मृग, अने वैश्वानर. भ. सं. (१५, ४४ थी ४८) प्रमाणे नक्षत्रोने अश्विनीथी गणी नवे य वीथिओमां वहेंचवाना छे. वा. सं ( ९,२) मां बेमत टांक्या छः-एक भ. सं. ने मळतो अने बीजो तेनाथी जुदी जातनो.
भरणीथी लईने चार नक्षत्र सुधी पहेलं मंडळ एम अनुक्रमे छ मंडळो छ (भ, सं. १५, ७. वा. सं. ९, १०). आ बाबतमा भ. सं.मां थोडो घोटाळो छे, कारण के तेमां तो एम ज कही देवामां आव्युं छे के भरणीथी मांडी चार नक्षत्र पहेला मंडळना अने तेवी रीते छ मंडळो गणी वाळवा. परंतु शंका अहीयां ए थाय छे के नक्षत्रो छे सत्तावीस अने मंडळ छे छ तो पछी चार, चार, नक्षत्र एक मंडळमां गणीए तो पण नक्षत्रो वधे तेनुं शुं? आ बाबतनो कोई उकेल भ. सं. मां नथी (१५, ७ थी ४३ ) ज्यारे वा. सं. मां नक्षत्रोनी वहेंचणी बराबर छे एटले के कोई मंडळमां चार तो कोई मां चारथी ओछां तो कोईमां चारथी वधारे एम वहेचणी करी सत्तावीस नक्षत्रोनो अने छ मंडळोनो मेळ बराबर मेळवी आप्यो छे (९, १० थी २१). परंतु भ. सं. मां एक बीजी ज विशिष्टता छे अने ते मंडळोना नाम पूरती. तेमां मंडळोना नाम अनुक्रमे आप्या छे जेवां केः-सर्वभूतहित, रक्त, परुष, रोचन, चंड, तीक्ष्ण (१५, ८) तेम ज ते मंडळोना फळो पण ढूंकामां आपी दीधा छे जेवां के शुक्रनुं प्रथम अने बीजु मंडळ मध्यम, त्रीजु तथा पांचमुं निंदित, अने चोथु तथा छटुं प्रवर (१५, ९ थी ११). आवी कोई योजना वा. सं. मां नथी, बीजी विशिष्टता ए छे के मंडळोनुं फळ सामान्यपणे भ. सं. मां उपर का तेम कही दीधा पछी विस्तार पूर्वक पण कहेवामां आव्यु छे. भ. सं. प्रमाणे प्रथम मंड
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