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प्रस्तावना
अने कुटिल छे (भ. सं. २; ७ तथा वा. सं. ३३, ५) ए कथनो पूरतुं बन्ने ग्रंथो वचे साम्य छे. प्रेत, शस्त्र, खर, करम, मगर, वांदरो, दाड वाळा जीव, मृग, घो, सर्पना आकार वाळी तथा बेमाथा वाळी उल्का पाप फल देवा वाळी छे (भ. सं.३; ७ थी ११ अने वा. सं. ३३; ९). ध्वज, मत्स्य, हाथी, पर्वत, कमल, चंद्र, अश्व, हंस, श्रीवत्स, वज्र, शंख, अने खस्तिकनी आकृति वाळी उला शुभफळ दायिनी छे (भ. सं. ३; ३१ थी ३३ अने वा. सं. ३३, १०). चंद्र अने सूर्यने स्पर्श करी उल्का जो एमाथी पडे तो परराजनो अधिकार थाय अने नृपवध, दुर्भिक्ष, अवृष्टि, अने भय उपजावे छे (भ. सं. ३, २८२९ अने वा. सं. ३३, १२). शुक्ल, रक्त, पीत, अने काळा रंगनी उल्का अनुक्रमे ब्राह्मणादिवर्गनो नाश करे छे (भ. सं. ३; १८ तथा वा. सं. ३३, १४). उत्तर, पूर्व, दक्षिण, अने पश्चिमादि दिशामा उल्का पडे तो ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, अने शुद्र माटे अपायकारक छे (भ. सं. ३; १९ तथा वा. सं. ३३, १५). श्याम, अने लोहित वर्ण वाळी उस्का शत्रुन आगमननो भय उत्पन्न करे छे ( भ. सं ३, १६ तथा वा. सं. ३३; १६). अने पुष्य, स्वाति अने श्रवण नक्षत्रनु उल्का हनन करे तो ब्राह्मण अने क्षत्रियोने पीडाकारी छे (भ. सं.३ ३९ तथा वा. सं. ३३, १८). आ बधी बाबतोमा बन्ने ग्रंथो वच्चे पूरेपूरुं साहश्य छे.
रोहिणी, त्रणे य उत्तरा, मृगशिर, चित्रा, अनुराधाने उल्का हणे तो राजाओने भयकारी छे एम वा. सं (३३, १९) मां जणाव्युं छे ज्यारे भ. सं. (३; ३८) मां एम निर्देश कर्यो छे के राजाने भयकारी नथी निवडती परंतु राजा तरफथी भय थाय. उदय अथवा अस्त वखते सूर्य अथवा चंद्रने उल्का हणे तो वनवासीओ (पोरेतर) नो वध करे छ एम वा. सं. (३३, १७) मां जणाव्युं छे ज्यारे भ. सं. (३, ४२-४३) मा ए स्थावरोने भय जनक छ तेमज आगंतुक सेनानुं बंधन थाय छे तेम जणाव्युं छे.
वा. सं. मा बीजी बाबतो जणावी छे अने भ. सं. मां पण अन्य बाबतो अन्य स्वरूपे अन्य फळ साथे वर्णवी छे
सुओए ते ते ग्रंथोमांथी जोई लेवी जोईए. अहिंआ तो जे बाबतो समान छे तेनुं ज ढूंकू आलेखन कर्य छे. सारांश रूपे कहीए तो एम कही शकाय के बन्ने ग्रंथो मुख्य मुख्य बाबतोमा अने तेना फळनिर्देशना संबंधमां एकमत छे. एक ग्रंथकारे अमुक बाबतमां हूंकाणमां पताव्युं छे तो बीजा ग्रंथकारे ए ज बाबतोने विस्तृतरूपे वर्णवी छे. एके अमुक बीजी घटनाओने ध्यानमां लई वर्णन कयु छे तो बीजाए बीजीने ध्यानमा लईने. आ उपरथी अनुमान एम थाय छे के अमुक बावतोनुं प्रभवस्थान वन्ने परिपाटीने साधारण हतुं ज्यारे अमुक बाबतोमा बन्ने ग्रंथकारो जुदा पडी परिपाटी अने सांप्र. दायिक वारसानु भिन्नत्व दावे छे. बधी बाबतोर्नु अवलोकन अमुक एक संप्रदायनी शक्ति बहार होय एम पण संभवे. एटले बन्ने ग्रंथकारोए रजू करेली जूदी जूदी घटनाओर्नु मूळ एक ज होय एम मानवा मन ललचाय. परंतु ते तो त्यारे ज बने के जो फळसाम्य होय तो; परंतु एक ज घटनाना फळनी बाबतमा बन्ने ग्रंथकारो जूदा पडता होय तो तो आपणे परिपाटी, तथा सांप्रदायिक मान्यताना मूळ जुदा जुदा ज मानवा पडे,
परिवेष परिवेषन वर्णन भ. सं. ना चोथा अध्यायमा अने वा. सं. ना चोत्रीशमा अध्यायमा करवामां आव्यं छे.
रूक्ष अने खडित परिवेष अनिष्टकारी छे (भ. सं.४३ तथा १६. वा. सं.३४, ५).जे परिवेष चांदी अने तेलना रंग जेवा रंग वाळो होय ते सुभिक्ष अने मंगळनो करनारो छे (भ. सं.४६-७.वा.सं.३४४) एम जणाव्यु छ जो के भ.सं. मां ए परिवेष महामेघने करनारो छे एम विशेषमा जणाव्युं छे. इन्द्रधनुषना जेवो जो परिवेष होय तो युद्ध थाय छे (भ.सं.४% ८.वा.सं.३४,६). आखो दिवस सूर्यनो परिवेष रक्त वर्णनो होय तो राजानो वध थाय छे (भ. सं.४; १४.वा.सं.३४,९). एम निर्देश को छ भ. सं.मां अहिंआ 'रक्तवर्ण' शब्दो नथी लख्या अने फलादेशमा भूखमरो, रोगचाळो अने शस्त्रकोप थाय ए वधारानुं जणाव्युं छे. आखी रात्री चंद्रनो रक्तवर्णो परिवेष रहे तो राजानो वध थाय (भ. सं. ४; १४. वा. सं.३४.). परंतु भ. सं. मां आ स्थळे 'रक्तवर्ण' शब्दो नथी लख्या अने फळादेशमा जनक्षय थाय एम सविशेष जणाव्यं छे. अनेक वर्णवालो परिवेष नृपवध सूचवे छ ( भ.सं.४, २०. वा. सं. ३४; ६) जो के भ. सं. मां सूर्यनो अनेक रंग वाळो परिवेष एम जणाव्यु छे. भ. सं (४,२८-२९)मा जणाव्युं छे के त्रण मंडळ वाळो परिवेष त्रण भागनुं निकंदन शस्त्रथी थशे एम बतावे छे अने चार मंडळ वाळो परिवेष क्षुधा अने व्याधिथी चार भागर्नु निकंदन थशे एम जणावे छे ज्यारे वा. सं. (३४; १०) मांत्रण मंडळ वाळो के एथी विशेष मंडळ वाळो परिवेष शस्त्रकोप, युवराजभय, अने नगररोध दर्शावे छे. कोई ग्रह, चंद्र, अने नक्षत्र-त्रणे य एक ज परिवेषमा होय तो त्रण दिवसमां वरसाद अथवा एक मासमां सं. (४३८) मां विधान करेलुं छे ज्यारे वा. सं.(३४, ११) मा भयने बदले युद्ध थवानो संभव जणाव्यो छे. वा. सं. (३४१२, १३, १४, अने १५) मां जेम भौमादि ग्रहोनो परिवेष होय तो जुदा, जुदा खराब फळो मळे एम जणाव्य छ तेम भ. सं. मां नथी जणाव्यु परंतु तेमां एक ज श्लोकमां (४,३७) पतावी देवामां आव्युं छे के एवा परिवेषथी देशनो
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