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________________ भद्रबाहुसंहिता अभाव-नाश थाय छे. अथवा भ. सं. ना उपर्युक्त श्लोकनो अर्थ एवो पण काढी शकाय के पांचय ग्रहो अने नक्षत्रो परि वेषमां होय तो जगतमां प्रलय थाय. आ अर्थनुं समर्थन वा. सं. ( ३४; १७ ) मां मळी रहे छे. ८ दरेक ग्रहनो परिवेष होय तो ते जुदुं जुदुं फळ आपे छे ए बाबतनो विस्तार वा. सं. मां छे ज्यारे भ. सं. मां नथी. अमुक तिथिमां परिवेष थाय तो तेनुं फळ पण पृथक् पृथक् वा. सं. मां छे ज्यारे भ. सं. मां तेम नथी. भ. सं. मां अमुक अमुक रंगनो परिवेष होय तो तेनुं जुदुं जुदुं फळ तेमां जणावेल छे ज्यारे वा. सं. मां तेम नधी, आम अमुक वावतोनो विस्तार भ. सं. मांछे ज्यारे अन्य अमुक बाबतोनो विस्तार वा. सं. मां छे. आ बन्ने ग्रंथोनो फलादेश भेगो करवाथी फळादेशनुं एक आखुं चित्र उभुं करी शकाय छे कारण के एकनी पूर्ति बीजाथी अने बीजानी त्रुटि पहेलाथी दूर करी पूर्णता रची शकाय छे. मुख्य मुख्य बाबतोमां बन्ने ग्रंथोनी एकमति स्वतः सिद्ध छे. संध्या भ. सं ना सातमा अध्यायमां तथा वा. सं. ना त्रीसमा अध्यायमां संध्यानं विस्तृत वर्णन करवामां आवेल छे. निग्ध संध्या वरसाद लावनारी छे (भ. सं. ७; १३. घा. सं. ३०; ८ ). भ. सं. ( ७, १०, ११, १२ ) मां खास बाबत विस्तारथी वर्णववाने बदले संक्षिप्त रीते एम कही बताववामां आव्युं छे के संध्या वखते वादळानुं रूप जो सौम्य होय तो शुभ अने विकृत होय तो अशुभ फळ आपे ज्यारे एज बाबत वा. सं. (३०; २७, २८, २९ ) मां विशिष्ट पणे निर्देशीने कथन करवामां आव्युं छे के संध्या वखते ध्वज, छत्र, पर्वत, हस्ती, के घोडानुं रूप जो वादळा धारण करे तो ते जय सूचवनारूं छे अने वादळा राता देखाय तो ते युद्ध थशे एवं बतावे छे. उपरांत, एज ठोकोमां वधारामां जणान्युं छे के संध्या वतनो पालना धूमाडा जेवो स्निग्ध आकार वाळो मेघ, राजाना बळनी वृद्धि दर्शावनारो छे अने संध्या वखतनो नगरनी आकृति वाळो मेघ शुभकारी छे. आम एकंदरे बन्ने ग्रंथोमां आ घटना पूरतुं सादृस्य छे. आगळ जतां भ. सं. ( ७; (२३) मां वामां आव्युं छे के क्रूर द्विपदो, चतुष्पदो अने भयंकर पशुओ संध्या वखते जोवामां आवे तो ते संध्या भयने दर्शवनारी छे; ए ज कथननुं सादृश्य वा. सं. ( ३०; ३० ) साथे छे जेमां एनी एज बाबत अन्य खरूपे एवी रीते कहेवामां आवी छे के सूर्यनी सन्मुख थइने, संध्या वखते, पक्षी, गीध, अने मृग शब्द करे तो देश, राजा, अने सुभिक्षना नाशने करवा वाळी छे एम बतान्युं छे. वात भ. सं. ना नवमा अध्यायमा अने वा. सं. ना सत्तावीसमा अध्यायमां वात विषेनी घटनाओनुं वर्णन छे. भ. सं. मां वात विषे पांसठ अने वा. सं. मां केवळ आठ ज श्लोको छे. भ. सं. मां ए विषय कांइक विस्तारथी चर्चवामां आव्यो छे. आषाढी पूर्णिमा वातनुं लक्षण - जोवुं ए कथन बन्ने प्रथोमां स्पष्टपणे छे. ते दिवसे चारे य दिशामा अने चारे य खुणामां केवो पवन थाय तो केवुं फळ आवे ए लंबाणथी भ. सं. मां बताव्युं छे. फळादेशमां सुभिक्ष, दुर्भिक्ष, उत्तम - मध्यमकनिष्ठ वर्षा, अनावृष्टि के अतिवृष्टि, धान्यनी मोंघवारी, व्याधि, चोरनो उपद्रव, दंश-मशक तीड-देउकानो उपद्रव, क्षेम, आरोग्य, परचक्र भय, वगेरे वगेरे भ. सं. मां निःसंदेहपणे जणावेल छे ज्यारे वा. सं. मां एवं कांई नथी. आखो दिवस, अर्को दिवस, आखी रात्री, अने संध्याकाळे जो पवन वाय तेम ज मध्याह्ने अने मध्यरात्रिए पवन वाय तो शुं फळ आपे ते चोक्कस पणे जणाववामां आव्युं छे. अनुलोम वायु, प्रतिलोम वायु, पक्षीओना भयंकर अवाज साधे वहेतो वायु केतुं फळ आपे छे वगेरे घणी घणी बाबतो भ. सं. मा वर्णवी छे. केवळ आ एक ज अध्याय उपरथी आपणे जो अनुमान करवानुं होय तो अतिशयोक्ति विना एम कही शकाय के भद्रबाहुसंहिताकार पासे वराहमिहिर करता ज्ञाननी विपुलता, अनुभवनी विस्तीर्णता, अने परंपरानी सचोटता वधारे प्रमाणमां हती. प्रवर्षण भ. सं. ना दसमा अध्यायमा अने वा. सं. ना तेवीसमा अध्यायमा प्रवर्षण नुं निरूपण करवामां आव्युं छे. भ. सं. मां कछु छे के उपद्रव हीन चंद्र ( आ शब्दो अध्याहृत छे एम समजी में लीधा छे) पूर्वाषाढामा देखाय तो चोट आढक वर्षा ( १०, ३-४ ), धनिष्टामा देखाय तो बार आढक वर्षा ( १७; १० ), रेवतीमां देखाय तो चोसठ ( १०; १७ ), कृत्तिकामां देखाय तो एकावन ( १०; २३ ), गृगशिरमा देखाय तो एकाणु ( १०; २७ ), हस्तमां देखाय तो पंचासी ( १०, ४०), चित्रामां देखाय तो बावीस ( १०; ४३ ), खातीमां देखाय तो वत्रीस ( १०, ४५ ), अने ज्येष्टामा देखाय तो चोसठ आढक वर्षा थाय ( १०; ५० ) एम कहेवामां आव्युं छे. ज्यारे वा. सं. मां कहेवामां आव्युं छे के उपद्रव हीन चंद्र हस्तमां, पूर्वाषाढामां, मृगशिरमां, चित्रामां, रेवतीमां अने धनिष्ठामां देखाय तो सोळ द्रोण अने ज्येष्ठा, स्वाती तथा कृत्तिकामां उपद्रव हीन चंद्र देखाय तो चार द्रोण वर्षा थाय ( २३; ६ ). भ. सं. मां वली एम Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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