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________________ भद्रबाहुसंहिता गोपनीय बाबतोनो, रहस्योनो उचित पचाव नहि करी शके एवी आशंकाथी गुरुए उत्तरोत्तर पोताना उत्तराधिकारीने ए ज्ञान अविशकलित पणे न आप्यु होय अने एथी मुख्य परंपरा अखंडितपणे हस्तगत थवाने बदले समयानुसार लुप्तप्राय थती गई. आवा दाखलाओ जैन साहित्यना इतिहासमां घणा मळी आवे छे. कळी वैरथी, ईर्ष्याथी, राज्यनाशथी के राज्यपलटाथी, अनेक दिव्य उत्पातोथी ए भ. सं. नष्ट थई गई होय. एम बनवू तद्दन स्वाभाविक छे. भद्रबाहुए भ. सं. रची हती ए बाबतना ज्ञानवाळाए कोइए पोते जेम आवे तेम, टूटी छवाइ नोंध रूपे, एकाद ग्रंथ लखी काढी एने भ. सं. नुं नाम आपी दी, होय एम मने तो लागे छे. प्रस्तुत भ. सं. मां मूळ भ. सं. नो केटलो अंश जळवायो छे एनुं प्रामाणिक विश्लेषण करवू अशक्य छे छतां ज्यां ज्यां एनी विलक्षणताओ, वा. सं. नी तुलना करती वखते, मने जणाणी छे त्या त्या में एनो बराबर निर्देश को छे. अमुक बाबतोमां मने परंपरापार्थक्यमूलक अपूर्वताओ अने विशिष्टताओ नजरे पडी छे जे वा. सं. मां मने न मळी तेनुं पण में यथाप्रसंग बयान कयुं छे. तेम ज ए कोणे अने क्यारे रची ए पण कहे, लगलग असंभवित अने अनुपयुक्त छे. पूना वाली प्रतिमा तद्दन अंते जे लख्यु छे तेना उपरथी केवळ एटलुं कही शकाय के ग्रन्थमा (भ. सं. मां ) १५६४ श्लोको (जे बराबर साचुं छे) छे अने सं. १५०४ मां चैत्र सुदि पांचमने मंगळवारे आंबा नामना कोइए ए लखेली अने साह वाछाए लखावेली हती. आ उपरथी भ. सं. विक्रमीय सोळमी शताव्दि पछीनी तो न ज कही शकाय. आ ग्रंथ प्रसिद्ध करवामां बे निम्नोत्त हेतुओ मुख्य छे ए वातनुं फरी उच्चारण करी जणावं छं के प्रस्तुत भ. सं. नु उपलब्ध बधी प्रतिओ भेगी करी संपादन करवू जेथी कोई पण अभ्यासकने एनो विश्वस्त अने सांगोपांग अभ्यास करी अनुमान बांधवानी अने ऐतिहासिक सत्य तथा तथ्य जे कांई सांपडे ते मेळवी आविष्कार करवानी तक मळे. अत्यारसुधीमां, मात्र एक ज प्रति उपरथी जामनगर वाळा भाई श्री हिरालाले भ. सं. ने प्रसिद्ध करेल. त्यारवाद एना जबे अनुवादो गुजरातीमां थया. उपलब्ध प्रतिओ भेगी करी तेने सुयोग्य रीते संपादित करी, तज्ज्ञ विद्वानो समक्ष मुकवामां मारा आ प्रयत्ननुं औचित्य देखाशे. ए उपरांत, वा. सं. साथे प्रस्तुत भ. सं. नी संपूर्ण तुलना करी प्रस्तावनामां ते तुलना बतावी बन्ने ग्रंथोनुं आ दृष्टिए मूल्यांकन करवू ए बीजो हेतु छे. ए हेतु सिद्ध करवा जतां आनुषंगिक रीते भद्रबाहु विषे पण संपूर्ण विचार करायो छे. पाठकनी सुगमता अने सवड माटे ग्रंथने अंते लांबी शब्दसूची पण मूकेल छे. आरीते मारा आ विशिष्ट प्रयननी योग्यता तेम ज आवश्यकता अभ्यासीने समजाशे एवी आशा राखं तो ते वधारे पडतुं नथी. प्रस्तुत भ. सं. ना रचनार बे प्रख्यात भद्रबाहु नामधारी आचार्यो पैकीना कोई नथी ए प्रस्तावनामां शास्त्रीय रीते स्थिर करेलो निर्णय आ ग्रंथ संपादनना परिश्रमना औचित्य ने सिद्ध करे छे. ग्रंथमां कोई स्थळे छंदोभंगने निवारवा के व्याकरणनी अशुद्धिओने सुधारवा, संशोधवा में जाणी जोईने ज प्रयत्न कर्यो नथी कारण के एम करवा जतां संपादननी दृष्टिए अव्यवहार्य अने समग्र ग्रंथना शाब्दिक कलेवरनी पुनर्रचना करवानी अनुपयुक्त छुटनो विकट प्रश्न उभो थतो हतो तेथी तेम करवान जाणी बूझीने ज जतुं करवू पड्युं छे. अलबत्त, छंदोभंग वाळा अने व्याकरणना नियमोना भंग वाळा तमाम श्लोकोनो में आ प्रस्तावनामां अन्यत्र बराबर निर्देश करेल छे जेथी ए श्लोकोमांना दोषो मारा ध्यान बहार रही गया हता एम कोई न समझे. कोई कोई स्थळे मारी शंकाओ जणाववा में कौंस मुकी प्रश्नचिह्न पण मूकेल छे. वळी ज्योतिष, मंत्र, तंत्र, औषध, अने भेषजना ग्रंथोमां छेद अने व्याकरणनी छूट ओछे वत्त अंशे क्षेतव्य छे ए रूढिमां, में एने छंदनी अने व्याकरणनी दृष्टिए सुधारी-संस्कारी नथी ए आरोपनुं समाधान अभ्यासी वर्ग जुए एवी अभ्यर्थना छे. भद्रबाहु संहिता अने वाराही संहितानी तुलना उल्का भ. सं. मां उल्कानुं वर्णन बीजा तथा त्रीजा अध्यायमा अने वा. सं.२ मा तेत्रीसमा अध्यायमा करवामां आवेल छे. भौतिक शरीरो स्वर्गमांथी च्यवती वखते अंतरिक्षमा उत्पन्न थाय त्यारे तेमना शरीरनो जे आकार होय तेने उल्का कहे छे-ए कथन पूरतुं भ. सं (२; ५) अने वा. सं (३३; १) वच्चे साम्य ले. तारा, विष्य, विद्युत्, अशनि, अने उल्का ए पांच उल्काना भेदोना नाम भ. सं (२; ६) अने वा. सं (३३, २) मां एक सरखा छे. तारा चोथा भागर्नु, धिष्ण्य अर्धा भागनुं (भ. सं. २, ९), अने बाकीना त्रण पूरा भागनुं फळ आपे छे ( ३: १२) ए भ. सं. नी उक्ति साथे वा. सं (३३,३)नी उक्तिनो मेळ छे. अशनिनो आकार चक्रसमान छे ए बाबत बन्नेमा एकसरखी छे (भ.सं.२८ तथा वा. सं. ३३, ४). ऊल्कानो आकार पुरुष जेवो (भ. सं. २, ८ तथा वा. सं. ३३, ८), अने विद्युत्नो विशाळ १ आ माटे जुओ जै. सा. सं. इ.नु ३३ मुं. टिप्पण; म. जै. वि. नो रजत महोत्सव स्मारक अंक पृ. १९७ उपरनी पीनी पादनोंध तथा जुगलकिशोर मुख्तारनी वि. सं. १९७४ मा प्रकाशित भ. सं. ग्रन्थ नी समालोचना. २ वेंकटेश्वर स्टीम प्रेस प्रकाशित, मुंबई, वि.सं. १९९७ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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