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________________ प्रस्तावना विशिष्ट स्पर्धाना द्योतक छे. तेथी वराहमिहिरनुं अने भद्रबाहुनु समसामयिकपणं विशेष विश्वसनीय बने छे. आ रीते बे भद्रबाहु थयानो निचोड निकळे छे:- एक चौद पूर्वधारी छेदसूत्रकार स्थविर आर्य भद्रबाहु अने बीजा जैनपरंपरामान्य महान नैमित्तिक तरीके प्रख्यात थयेल भद्रबाहु जेमणे निर्युक्तिओ, “भद्रबाहुसंहिता”, अने “ उवसग्गहरस्तोत्र" रच्यां. “तित्थोगालि प्रकीर्णक", "आवश्यकचूर्णि”, “आवश्यक" उपरनी “हारिभद्रीया" वृत्ति, "परिशिष्ट पर्वा "दि प्रामाणिक ग्रंथोमां ज्यां ज्यां चौदपूर्वधारी भद्रबाहुनुं चरित्रालेखन करवामां आव्युं छे त्यां त्यां साथ साथ, बारवर्षी दुकाळ, नेपालप्रयाण, महाप्राण ध्याननुं आराधन, स्थूलभद्रने आपेल वाचना, छेदसूत्रनी रचना वगेरेनो पण सविस्तार निर्देश छे; परंतु तेओ वराहमिहिरना पूर्वाश्रमी भाई हता तेम ज तेमणे नियुक्तिओ, “उवसग्गहरस्तोत्र", अने “भद्रबाहुसंहिता " आदिनी रचना करी होवानो तेम न तेओ महान नैमित्तिक हता एवो मत दर्शाव्यानो कशोय ईशारो नथी. आथी हवे ए असंदिग्धपणे स्पष्ट थाय छे के छेदसूत्रकार भद्रबाहु अने निर्युक्तत्यादिना रचयिता भद्रबाहु बन्ने जुदा जुदा प्रभावक पुरुषो हता. छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार बन्ने स्थविरो जुदा होवाना तेम ज भद्रबाहु एक करता वधारे थयाना सुस्पष्ट अने सचोट निर्देशो के वर्णनो जैन ऐतिहासिक साहित्यगां भले न मळता होय, ते छतां आजे आपणी पासे जे प्रमाणो, पुरावाओ, अने सामग्री तथा साधनो मोजुद छे ते उपरथी आपणे एका निश्चित अनुमान उपर जरूर आवी शकीए के छेदसूत्रकार अने निर्युक्तत्यादिकार स्थविरो एक नथी परंतु विभिन्न छे, आटलं निर्णीत होवा छतां छेदसूत्रकार अने निर्युक्तत्यादिकार ए बन्नेना एककर्तृत्वनी भ्रमणा समाननाममूलक होय - एटले आजे अनेक विद्वानो छेदसूत्रकार भद्रबाहु अने निर्युक्तिकार भद्रबाहु बन्ने एक ज एवा अनुमान तरफ स्वाभाविक रीते ज दोरवाय छे. छेदसूत्रकार भद्रबाहु ते चौदपूर्वधारी स्थविर आर्य भद्रबाहु अने निर्युक्तत्यादिकार भद्रबाहु ते नैमित्तिक अने वराहमिहिरना सहोदर भद्रबाहु ए एक ज अनुमान प्रमाणसिद्ध, इतिहाससिद्ध अने परंपरासिद्ध छे. वराहमिहिरना पूर्वाश्रमी सहोदर आचार्य भद्रबाहुए भ. सं. जेवी असाधारण प्रतिभानी परिचायिका ज्योतिष् उपर एक संहिता रची हती ए अवाधित अनुमान उपर स्थिर थया पछी हवे ए विचारवानुं प्राप्त थाय छे के जे भ. सं. तेमणे रची हती ते ज भ. सं. आ छे के कोई बीजी ? आ प्रश्नना उत्तरमा पहेले ज तबक्के ए स्पष्ट रीते अने असंदि पणे कही देवं जोईए के एमणे रचेली भ. सं. ते प्रस्तुत भ. सं. नथी. आपणे आगळ जोई गया के वराहमिहिरने अने भ. सं. कार भद्रबाहुने स्पर्धा जागी हती. सामा पक्ष करतां प्रतिस्पर्धी घणी ज उतरती कोटिनो होय ए वात जीवनमां, जोवामां, देखवामां आवती नथी. बनतां सुधी हरिफो तो एक बीजाथी च्हडे एवा होय छे. एमांय, भद्रबाहुए उत्कृष्ट ज्ञान, पारदर्शी अनुभव, सफळ प्रतिपादन, अने सर्वतोमुखी मेधाना चमकाराथी जाज्वल्यमान एवी निर्युक्तिओ अने " उवसग्गहरस्तोत्र" रच्या हता. तेओ तुलनामां वराहमिहिर कृत वा. सं. थी दरेक रीते अनेक गणी उतरती प्रस्तुत भ. सं. न ज रचे. कारण के एमणे जे भ. सं. रची हती ते वराहमिहिर कृत वा. सं. ने पडकार रूपे लखी हती. वा. सं. मां जे विशाळ ज्ञान, विशद निरूपण, उदात्त कवित्व शक्ति, सूक्ष्मातिसूक्ष्म अवलोकन अने प्रकांड विद्वत्ता वराहमिहिरे हालवी छेतेना करतां च्हडी जाय एवी भ. सं. भद्रबाहुए लखी होवी जोईए एम ज आपणे मानवुं जोईए. उपलब्ध साहित्य कहे छे के वराहमिहिर ज्योतिर्विदोमां अग्रणी हता. तो पछी जैन साहित्यमां मळी आवता सीधा के आडकत रा उल्लेख, निर्देशो, प्रमाणो वर्णनो, जे बधानी ट्रंकी नोंध आपणे आगळ जोई गया ते उपरथी आपणे एम ज मानवुं पडे के एमनी लखेल भ. सं. कोई अपूर्व ग्रंथ ज होवो जोईए. प्रस्तुत भ. सं. एमनो ग्रंथ न होई शके. आपणे एम मानीए तो आपणे एमने पूरो अन्याय कर्यो कहेवाय. तो पछी प्रस्तुत भ. सं. शुं छे ? कोणे लखी ? क्यारे लखी ? इत्यादि इत्यादि प्रश्नो स्वाभाविक ज उत्पन्न थाय. आ बधानो संक्षिप्त जवाब आ प्रमाणे छे: सेनजित् राजा अने पांडुगिरि, 'प्रोवाच' अने "भद्रबाहुवचो यथा" वगेरे बाबतोनो आपणे आगळ विचार करी गया. ए उपरथी स्पष्ट छे के प्रस्तुत भ. सं. भद्रबाहुए लखेल भ. सं. नथी. छंदोभंग, व्याकरणोना अविचलित नियमोपनियमोनुं खून, पूर्वापर विरोध, वस्तुगुंथणीनुं शैथिल्य, कमबद्धतानो अभाव, निस्तेज निरूपण इत्यादि इत्यादि अक्षम्य दोषोथी दूषित आ भ. सं. भद्रबाहु कृत भ. सं. नथी ज. तो पछी प्रस्तुत भ. सं. शुं छे ? मारूं एम मानयुं छे के जेम भद्रबाहुकृत “सूर्यप्रज्ञप्तिनियुक्ति" लुप्त थई गई छे तेम तेमणे रचेली भ. सं. पण लुप्त थई गई होय. बने ग्रंथो विलक्षण चमत्कृतिओथी परिप्लुत होवा जोईए. एमां वर्णवेली बाबतोनो, एमां ठालवेल ज्ञाननो शुभ भने निस्पृह आशयथी उपयोग करवामां न आवे तो शासननी प्रभावनाने बदले शासननी कुसेवा करवानो डर दिवसे दिवसे वृद्धिंगत थतो जतो होवो जोईए. आ डर पडता काळना हिसाबे प्रबळतर बनतो गयो अने मानवीनी क्षुद्र बुद्धि आ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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