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भद्रबाहुसंहिता
नामनो लेख जे महावीर जन विद्यालय रजत महोत्सव अंक (इ.स. २०.१२.४१ मां प्रकाशित) मां प्रसिद्ध थयो छे तेना खास करीने पृ. १९७ थी २०१ जुओ.
भद्रबाहु पछी थई गयेल फल्गुरक्षितादि अर्वाचीन आचार्यानो तथा एवी बीजी अर्वाचीन गणाती बाबतोनो नियुक्तिओमा उल्लेख अने निर्देश आवतो होवाथी तेम ज बीजी दलीलो योजी एम निःसंदेह पुरवार थई शके तेम छे के छेदसूत्रवार अने नियुक्तिकार बन्ने जुदा छे. अर्थात छेद ("दशा", "व्यवहार", "कल्प" अने "निशीथ") सूत्रकार भद्रबाहुए, जे चौदपूर्वधारी स्थविर हता, नियुक्तिओ नथी रची. त्यारे ए नियुक्तिओ रची कोणे अने क्यारे?
छेदसूत्रकार भद्रबाहु ए ज नियुक्तिकार भद्रबाहु एवी परंपरानुं अने मान्यतानुं मूळ समान नाममां ज होय तो एवं ज अनुमान उचित छे के छेदसूत्रकार भद्रबाहु करतां कोई बीजा ज भद्रबाहु थई गया होवा जोईए जेमणे नियुक्तिओ रची होय.
चार छेदसूत्रो, आवश्यकादि दश नियुक्तिओ, "उवसग्गहर स्तोत्र" अने “भद्रबाहु संहिता" ए सोळ ग्रन्थो भत्रबाहु कर्तृक छे एवी मान्यता श्वेतांबर जैन परंपरामा प्रचलित छे. चार छेद सूत्रो ज चौदपूर्वधारी भगवाह ना छे तो दश निर्यक्तिओ, "उयसग्गहर स्तोत्र," अने "भद्रवाह संहिता"-आ बारेय ग्रन्थो वीजा एक ज भगवाहना होवा जोहए अने ते वीजा भद्वबाहु कोई नहि परंतु जे वा. सं. ना रचयिता ज्योतिषाचार्य वराहमिहिरना पूर्वाश्रमना भाई तरीके अने महान नैमित्तिक तरीके जैन संप्रदायमां जाणीता छे ते ज होवा जोइए. सरखावो
पावयणी धम्मकही वाई णेमित्तिओ तवस्सी य । विज्जासिद्धो य कई अद्वेव पभावगा भणिया ॥१॥ अज्जरक्ख नंदिसेणो सिरिगुत्त विणेय भद्दबाहू य । खवगजखवुड समिया दिवायरो वा इहादरणा ॥२॥
नियुक्तिकार भद्रबाह अने "उवसग्गहर" तथा "भद्रबाहु संहिता"दिना कर्ता भद्रबाहु-बन्ने एक ज अने ते पण नैमित्तिक भद्रबाह ए विधानने "आवश्यक निर्यक्ति" गाथा १२५२ थी १२७० मां वर्णवायेल कथानक, जेमां सर्पनुं झेर उतारवा माटे क्रिया, प्रकिया, बतावामां आवी छे, तेना तरफथी पुष्टि मळे छे. खास करीने जुओ "आवश्यक नियुक्ति"नी १२६९मी निम्नोक्त गाथा:
सिद्धे नमंसिऊणं, संसारत्था य जे महाविजा। वोच्छामि दंड किरियं सम्वविसनिवारणिं विजं ॥ १२६९ ॥ अष्टांगनिमित्त अने मंत्र विद्यामां विशारद होय एवा भद्रबाहु वराहमिहिरना भाई सिवाय बीजा कोई जैन साहित्यना इतिहासमां जाणीता नथी.
नियुक्तिकार भद्रवाहु महान् नैमित्तिक हता तेनी समर्थना तेमणे रचेल "सूर्य प्रज्ञप्ति" उपरनी नियुक्ति पण करे छे. ते बतावे छे के तेमनो ज्योतिष अने खगोळ उपर सारो काबु हतो. ए उपरांत, अन्य प्रमाण "आचारांग" उपरनी एमनी नियुक्तिमाथी पण मळी आवे छे. तेमा 'दिक्' पदनुं व्याख्यान करवाना प्रसंगमा तेओ कहे छे:
जत्थ य जो पण्णवओ, कस्स वि साहइ दिसासु य णिमित्तं । जत्तोमुहो य ठाइ सा पुच्छओ अवरा ॥५१॥ चरणकरणानुयोगनी तात्त्विक चर्चा जे ग्रन्थमां गंभीर पणे करवामां आवी रही होय १ वखते उपर्युक्त निमित्त ज्ञाननी परिचायिका गाथा लखवी ते तेना प्रणेताना ते बाबतना सविशेष शोखने नथी बतावती ?
कोई विद्वानो एम दलील करे के छेदसूत्रकार, "उवसग्गहरस्तोत्र", नियुक्ति अने “भद्रबाहु संहिता"ना रचनार एक ज भद्रबाह थया अने ते वराह मिहिरना भाई हता तो ते दलील हवे टकी शके तेम नथी. कारण के वराहमिहिर तो तेमनी ज रचेली "पंचसिद्धान्तिका"-श्लो. ८ ने आधारे वि. सं. ५६२मां थया ए निश्चित ज छे. एटले छेदसूत्रकार भद्रबाहु अने नियुक्तिकार भद्रबाहु ए बन्ने जुदा ज. आगळ आपणे जोयुं के छेदसूत्रकार भद्रबाहुए नियुक्तिओ तथा “उवसग्गहर" रचेला एम परंपरा माने छे परंतु त्यां आगळ तेमणे "भद्रबाहुसंहिता" रचेली ए बाबत नथी ज लखवामां आवी. अर्थात् परंपरा पण भले छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार भद्रबाहुने एक गणे तो पण एने “भद्रबाहुसंहिता"कार तरीके तो नथी ज स्वीकारती. उलटुं परंपरा “भद्रबाहुसंहिता"कार भद्रबाहुने वराहमिहिरना सहोदर तरीके जाणे छे ए निश्चित छे. तो पछी छेदसूत्रकार भद्रबाहु अने नियुक्तिकार भद्रबाहु बन्ने जुदा एम जो आपणे सिद्ध करी शकीए-जेवं के हमणां ज आपणे सिद्ध कयु-तो नियुक्तिकार भद्रबाहुए “भद्रबाहुसंहिता" रचेली अने ते वराहमिहिरना सहोदर हता एम कशी पण आपत्ति विना स्वीकारी शकाय.
जेनो सर्वप्रथम निर्देश चौदमी शताब्दिथी प्राचीन नथी तेवी “उवसग्गहरस्तोत्र"ना कर्त्ता भद्रबाहु अने वराहमिहिरना संबंधे आख्यायिकामां जो कांई पण तथ्य होय तो ते ऐटलुं के "उवसम्गहरस्तोत्र"कार भद्रबाहुने चोदपूर्वधारी भद्रबाहु तरीके ओळखाववामां ऐतिहासिक दृष्टि जोखमाशे. एवी जरीते “भद्रबाहुसंहिता"कार भद्रबाहने चौदपूर्वधारी कहेवामां जोखम अने अज्ञान रहेला छे ."भद्रबाहुसंहिता" अने “वाराही (बृहत्) संहिता"-बन्ने ग्रंथो समाननामक छे अने ए पारस्परिक
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