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भद्रबाहुसंहिता ए दृष्टिए आ शास्त्रनो विचार करतां आपणने जणाशे के मनुष्यजीवन साथे आनो केटलो निकटनो अने हितभरेलो संबन्ध रहेलो छे.
आ शास्त्रनी आधुनिक दृष्टिए संशोधन थवानी आवश्यकता आ निमित्तशास्त्रना ज्ञानना प्रदेशमा कया कया विषयोनो अन्तर्भाव थाय छे तेनी सूचि प्रस्तुत ग्रन्थना 'अंगसंचय' नामना प्रथम अध्यायना श्लोक १५-१६ मा आपेली छे. अने तेनु ज विस्तृत वर्णन ते पछीना अध्यायोमा क्रमसरथी आपवामां आव्युं छे. आ बधुं ज वर्णन तथ्यभरेलुं छे अने एमां कहेली बधी हकीकतो सर्वथा साची ज छे, एम तो कोई न ज मानी शके. कारण के आमांनी केटली य हकीकतो स्पष्टरूपे एवी जणाशे के जे केवल कल्पनाप्रसूत होई आपणने कोई पण रीते बुद्धिगम्य प्रतीत नहिं थाय; परंतु ते साथे बीजी अनेक हकीकतो एवी पण जणाशे के जे अविसंवादी फळ बतावनारी अने कथित परिणामनी अनुभूति करावनारी छे.
पूर्व कालना जे ऋषि-मुनिओए आ ज्ञाननो उपदेश कर्यो छे अने जे विद्वानोए आ विषयना शास्त्रोनी संकलना के रचना करी छे, ते काई मात्र तेमना पोताना ज अनुभवना फळना परिणामरूपे छे एम नथी. सेंकडोहजारो वर्षो जेटला व्यतीत थएला सुदीर्घ कालमां, तेम ज हजारो योजनो जेटला व्यापेला विस्तीर्ण भूप्रदेशमा, उत्पन्न थएल असंख्य विचारशील अने अवलोकनप्रिय व्यक्तियोना विविध अनुभवो अने ते उपरथी थएलां अन्वय व्यतिरेकात्मक अनुमानोना परिणामरूपे आ शास्त्रनो प्रादुर्भाव अने विकास थयो छे. अल्बत्त, आपणा शास्त्रकारोनी मान्यता तो एवी रही छे के आ शास्त्रोना मूळ उपदेष्टा ऋषि-मुनियो अलौकिक अने इन्द्रियातीत एवा दिव्यज्ञानना धारक हता अने तेमणे पोताना ए दिव्यज्ञानना प्रभावे ज प्रकृतिनां बधां रहस्यो संपूर्ण पणे जाणी लीधां हता. परंतु आधुनिक विज्ञाने साधेली विद्याना सर्वप्रदेशोनी अद्भुत सिद्धिओ उपरथी आपणे जाणी शकिए छिए के आपणा प्राचीन शास्त्रकारोनी ए मान्यता, प्रायः पूर्वपुरुषोनुं माहात्म्य बताववा पुरती ज हकीकत सूचवनारी छे. एथी विशेष कोई महत्व, ए मान्यताने आपवा माटे आपणने कशुं य विशिष्ट प्रमाण प्राप्त थतुं नथी. परंतु ते साथे एटलुं आपणे जरूर मानी शकिए के ए ऋषि-मुनियोमा एवी पण केटलीक विशिष्ट आध्यात्मिक शक्तियो खीलेली हशे जेना प्रभावे प्रकृतिनी केटलीक निगूढ रचनाओ अने तेना कार्य-कारणभावोर्नु रहस्यज्ञान तेमने वधारे स्पष्टताथी आकलित थतुं हशे.
आ निमित्तशास्त्रगत विषयो अने विचारोनुं संशोधन दृष्टिए ज्यारे आपणे अध्ययन अने मनन करिए छिए त्यारे आपणने जणाय छे के-एमांनां केटलांक सिद्धान्तो अने मन्तव्यो अनुभवज्ञानना आधारे प्रतिपादित थएला छे, केटलांक अनुमानज्ञानना आधारे आलेखित थएला छे अने केटलांक कल्पना अने भ्रमणाना आधारे पण प्रसूत थएला छे. पूर्वकाळमां आ बधां सिद्धान्तो अने मन्तव्योनुं तथ्यातथ्यपणुं जाणवा के तेमनुं पृथक्करण करवा माटेनां तेवां कशां विशिष्ट प्रकारनां अन्य साधनो उपलब्ध न हता. परंतु आजे विज्ञाने यंत्रविद्यानी जे अद्भुत रचना निर्मित करी छे, ते द्वारा प्रकृतिना असंख्य अज्ञेय अने अनुमेय रहस्योनां आकलन, उद्घाटन, प्रस्फोटन आदि कार्यों खूब सरल अने सुगम बन्यां छे अने प्रतिदिन तेमां अकल्पित एवी वृद्धि थती ज जाय छे. तेथी आपणा आ प्रकारना प्राचीन शास्त्रोना विषयो भने विचारोनुं अध्ययन अने संशोधन पण, नूतन विज्ञानना मन्तव्यो, संशोधनो अने उपकरणोनी सहायता साथे आरंभावां जोईए; अने एमांथी केटलुं ज्ञान तथ्यभूत छे तेनु पृथक्करण थर्बु जोईए. संभव छे के एम करता, एमाथी आपणने केटलांक एवां तथ्यो पण मळी आवे के जे हजी सुधी तत्तद्विषयक विज्ञानविशारदोनी कल्पनामां पण नहिं आव्यां होय.
प्रस्तुत ग्रन्थने 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला'मां प्रकट करवानो म्हारो मुख्य हेतु पण ए ज रहेलो छे के आ विषयमां रस धरावनारा विद्वानो, आ जातना साहित्यनुं विशेष अध्ययन, अवलोकन, मनन अने संशोधन आदि करवा प्रेराय अने आपणा पूर्व पुरुषो जे कांई ज्ञानसंपत्ति संचित अने संकलित करीने आपणा माटे मूकता गया छे, तेनो योग्य उपयोग थाय.
जो के आ ग्रन्थन पाठसंशोधन करवामां अध्यापक गोपाणीए खूब ज श्रम उठाव्यो छे अने एनो शुद्ध पाठोद्धार करवा एमणे यथाशक्य अथक प्रयत्न कर्यो छे; छतां आ वाचना मात्र मार्गदर्शक पूरती ज उपयोगी समजवानी छे एम विद्वान् वाचकोने म्हारं विनम्र सूचन छे. कारण के एना संपादनकार्य माटे जे ३-४ प्रतियो प्राप्त करवामां आवी छे अने जेमनो परिचय संपादके पोतानी प्रस्तावनामा आप्यो छे, ते बधी प्रतियोनी प्रत्येक पंक्ति एटली बधी भ्रष्ट अने समग्र वाचना परस्पर एटली बधी विसंवादी छे के तेना आधारे ए ग्रन्थनो विशुद्ध
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