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________________ किंचित् प्रास्ताविक ११ पाठोद्धार करवो सर्वथा शक्य नथी. तेम ज, आ ग्रन्थनी जे बे जूनी प्रतियो ( पाटणवाळी अने पूनावाळी जेमने A अने C संज्ञा आपवामां आवी छे ) मळी छे ते बन्नेनी पाठ परंपरा घणी जग्याए तद्दन जुदा प्रकारनी जणाय छे. ए बेमां जेकेटलाक महत्त्वना भने मौलिक पाठभेदो दृष्टिगोचर थाय छे, ते परथी एवी पण एक कल्पना थाय छे के आ पाठभेदो पाछळथी प्रतिलिपि करनारा लेखको के अभ्यास करनारा पाठको द्वारा उप्तन्न थएला न होई, मूळ ग्रन्थकार द्वारा ज तेनी सृष्टि थएली होवी जोईए. ते आ रीते के ग्रन्थकारे प्रथम एक आदर्श तैयार कर्यो हशे अने तेनी केटलीक प्रतिलिपियो थई गई हशे ते पछी तेना पाठोमां केटलाक सुधारावधारा करीने पाछळथी वळी तेमगे एक अन्य नूतन संशोधित परिवर्तित आदर्श तैयार कर्यो हशे अने ते पछी तेनी पण प्रतिलिपियो थती रही हशे अने ए रीते बन्ने आदर्शोनी प्रतिलिपिओनी परंपरा भविष्यमां चालू रही हशे . आ रीते स्वयं ग्रन्थकार द्वारा ज थएला मौलिक पाठभेदोवाळी बन्ने भिन्न भिन्न आदर्श परंपरानी ए बन्ने प्रतियो होवी जोईए-एम ए बन्नेनी भिन्न प्रकारनी वाचना जोतां स्पष्ट जणाय छे. ए सिवाय, एटला बधा मौलिक पाठभेदो होवानुं अन्य कारण जणातुं नथी. स्वयं ग्रन्थकार द्वारा ज आवी रीते सर्जाला पाठभेदोवाळा अनेक ग्रन्थो म्हने दृष्टिगोचर थया छे. एथी प्रस्तुत ग्रन्थनां ज्यां सुधी अन्य वधारे शुद्ध प्रत्यन्तरो उपलब्ध न थाय त्यां सुधी आनो सर्वथा शुद्ध पाठोद्धार थवो शक्य नथी. योग्य विद्वानो आ दिशामां विशेष प्रयत्न करे तेमज प्रस्तुत संस्करणनो मात्र ते दृष्टिए ज अवलोकन अने अध्ययन करी एनुं मूल्यांकन करे. तथास्तु. पौपी पूर्णिमा, संवत् २००५ ( ता. १४- १ - १९४९ ) भारतीय विद्या भवन, मुंबई Jain Education International For Private & Personal Use Only - जिन विजय www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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