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किंचित् प्रास्ताविक
पण, आपणने प्रकृतिनी गति-स्थिति विषेनी कशी साची अस्वस्था जाणी शकाई नहिं अने तेथी समयसर लेवा लायक योग्य उपायो लई शकाया नहिं. परिणामे देशना पशुधननो थतो भयंकर नाश अने ते द्वारा तेना पालक खेडुतवर्गने थती म्होटी अर्थहानि जोवानो समय आपणी आगळ आवीने उभो रह्यो.
भावी जरीते आ निमित्तशास्त्रमा अतिवृष्टि, महामारी, धरतीकंप, विद्युत्पात, अग्निप्रकोप, वातोपद्व आदि जे उत्पातो, पृथ्वीना भिन्न भिन्न प्रदेशमा अवार नवार थयां करे छे; अने जेना लीधे मनुष्योना आयुष्य, आरोग्य, संपत्ति अने जीवित आदिनी अकल्पित हानि थयां करे छे, तेवा बधा ज प्राकृतिक उत्पातो अने उपद्रवोनां निमित्तो अने तेनां पूर्वचिह्नोन वर्णन करवामां आव्यु छे.
आधुनिक विज्ञानना प्रस्तुत विषय माटेना प्रयत्नो आधुनिक विज्ञानना विशेषज्ञो पण आ विषयोनां कारणोर्नु अने लक्षणोनुं विशिष्ट ज्ञान मेळववा माटे सतत प्रयत्न करी रह्या छे अने एमांनी केटली य बाबतोर्नु, विविध प्रकारचं नूतन ज्ञान, प्राप्त पण करवामां आव्युं छे. तेम छतां हजी आ विज्ञान प्राथमिक दशामां ज छे एम आपणे जाणिए छिए. वातावरणमां थता वायवीय परिवर्तनोनां विशेष स्वरूपोने जाणवानी, आजना युगनी एक प्रथम कोटिनी आवश्यकतावाळी वस्तु थई पडी छे. समुद्रोमा फरतां नौवाहनो अने आकाशमा उडतां वायुयानोनी समगति अने सुस्थितिनो घणो खरो आधार, वातावरणमा व्यापक बनेल वायुनी सानुकूळ अवस्था उपर रहेलो छे. जो ए वायु विकृतरूप धारण करीने प्रतिकूल अवस्थानो सर्जक थई जाय तो तेथी समुद्रगामी नौकाओ अने आकाशगामी विमानोनो क्षणभरमां विनाश ज थई जाय छ भने तेमा प्रवास करता मनुष्योना जीवित निमेषमात्रमा विनष्ट थई जाय छे. तेथी आजे प्रत्येक नौका-वाहक अने विमान - चालक यानाधिनायक माटे वातावरणगत वायुसंस्थानना परिज्ञाननी परम आवश्यकता होय छे. युरोप अने भमेरिकामां आ परिज्ञाननो अभ्यास करवा-कराववा माटे म्होटा म्होटां विद्यालयोनी स्थापना थएली छे तेम ज ए विषयना नूतन परिज्ञाननी वधारे शोधो करवा अने तेना परिणामो जाणवा माटे अनेक शोध प्रतिष्टानो निर्मित थएलां छे. वळी राज्यो तरफथी तदुपयुक्त स्थानोमां, ए विषयना स्वतंत्र कार्याधिष्ठानो स्थापन करवामां आव्यां छे अने ते उपर ए विषयना निष्णात अधिकारियोनी नियुक्तियो करवामां आवी छे. ए अधिकारियो वायुशास्त्रियो कहेवाय छे अने एमर्नु कार्य, प्रतिदिवस वातावरणमा थतां वायु-परिवर्तनोनी सूचनाओ आपवानुं होय छे. आपणा देशमां पण राज्य तरफथी मुंबई, पूना विगेरे स्थळोमा आवा वायुशास्त्रियोनां कार्यालयोनी स्थापना थएली छे जेमना तरफथी देशना भिन्न भिन्न भागोमा प्रवर्ततां वातप्रवर्तनो अने जलवर्षणो विषेनी खबरो प्रतिदिवस प्रकट करवामां आवे छे.
आ वातप्रवर्तन साथे संबन्ध धरावता अनेक विचारो प्रस्तुत निमित्तशास्त्रमा जणाववामां आव्या छे. वातप्रवर्तन अने जलवर्षण ए बनेनो परस्पर गाढ संबन्ध रहेलो छे. वायुनी गति अने स्थितिमा थतां परिवर्तनोने लीधे ज जलवृष्टिनो माविर्भाव थाय छे, तेना लीधे ज वर्षानुं न्यूनाधिक भावे पतन थाय छे अने तेना ज लीधे तेनो तिरोभाव पण थाय छे. एटले के वायु ए जलवर्षणनो सर्वथा नियामक छे. आ विचार प्रस्तुत शास्त्रकारे पण नीचेना श्लोकमां बहु स्पष्ट रीते व्यक्त को छ भने तेथी शास्त्रकारर्नु आ विषयर्नु तात्त्विक दर्शन अवश्य मननीय लागे तेवू छे.
आदानाञ्चावपाताच्च पचनाच्च विसर्जनात् । मारुतः सर्वगर्भाणां बलवान् नायकः स्मृतः॥ ९,३
अर्थात् -वायु ए सर्व प्रकारना मेघना गर्भोनो बलवान् नायक छे. कारण के ए ज मेघगर्भनो लावनार छे, ए ज तेनो पाडनार छे, ए ज तेनो पकवनार छे, अने ए ज तेनुं विसर्जन करनार छे. ___ मा रीते वायुने जलवृष्टिनो मुख्य नायक (नियामक) बतावी, आ शास्त्रकारे प्रकारान्तरथी ते ज कारणने
ना जीवोना भय भने क्षेमनो कर्ता तथा राजकीय जय-पराजयनो विधाता पण बताव्यो छे. यथावर्ष भयं तथा क्षेमं राज्ञो जय-पराजयम् । मारुतः कुरुते लोके जन्तूनां पुण्यपापजम् ॥ ९,२ वळी ए ज अभ्यायमां बीजे स्थळे वायुने जलनो जनक पण कहेवामां आव्यो छे, जेनो उल्लेख उपर करवामां आव्यो छे.
आ उल्लेखो परथी स्पष्टरीते व्यक्त थाय छे के प्रस्तुत शास्त्रकारनी दृष्टिए, वायु आ सृष्टिमां एक महान् बलवान् तत्त्व छे अने ते मनुष्योना आयुष्य, भारोग्य, सौख्य आदिना संरक्षण अने विनाश कार्यमा घणो महत्वनो भाग भजवे छे. वायु क्षणभरमां केवा भयंकर उपद्रवो सर्जी शके छे तेना अनुभवो पृथ्वीना सर्वे भागोमां वसता प्राणियोने मवार-नवार थयां ज करे छे. गत (सन् १९४८) नवेंबर मासनी १४ मी तारीखना सवारना समये, ५ थी १० वाग्या सुधीना ५ कलाकोमा, मुंबई अने तेनी आसपासना प्रदेशमा वायुदेवताए जे विकराळ रूप धारण करीने, वेबु भयंकर अकांड तांडव नृत्य कर्यु हतुं अने तेना लीधे केवी प्रलयकाळ जेवी परिस्थितिनो सर्वने अनुभव थयो हतो, तेनुं स्मरण थतां, आ शास्त्रकारे वायुदेवने, जगत्ना जीवोना क्षेम अने भयना एक बलवान् विधायक तरीके जे व्यक्त कर्यो छे, तेमां कशी अतिशयोक्ति करी होय एम जरा य लागतुं नथी.
भद्रबा.१२
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