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________________ किंचित् प्रस्तावना अभीष्ट कर्तव्यमा सफलता मेळवे तो तेओ भिक्षुओ तेम ज धर्मचारियो तरफ विशेष आदर सत्कार वाळा थईने रहे अने तेथी तेमना संरक्षण नीचे भिक्षुओ निरुद्विद्मभावे सर्वत्र विचरी शके. वळी भिक्षुओने ज्यारे आ शास्त्रना ज्ञानथी देशमां उत्पात आदि थवानी आशंका थाय, तो तेओ प्रथमथी ज सावधान थई देशान्तरमा चाल्या जवानो प्रयत्न करे अने तेवा सुस्थितिसंपन्न देशमां वसीने सुखपूर्वक पोतानी जीवनयापना करी शके. श्रावकोनुं हित ए दृष्टिए बताववामां आव्युं छे के आवा दिव्यज्ञानना प्रभावथी प्रभावित थने तेओ सर्वज्ञभाषित धर्ममां अनुरक्त थाय अने अन्यधर्मनो आश्रय करवा न इच्छे. आवी रीते राजा, भिक्षु अने श्रवकोना हितनी सूचना करीने पछी ग्रन्थकार एम पण फरी जणावे छे, के जो के क्षा दिव्यज्ञान, सामान्य रीते बधा ज जीवोने हितकारी छे तेम छतां भिक्षुओना माटे तो ए विशेने करीने उपकारक छे. कारण के भिक्षुओनुं जीवन सदा परपिंड उपर अवलंबित होवाथी जो तेमने ए शास्त्रनुं ज्ञान होय, तो तेमनी जीवनयात्रा वधारे सरळता साथे व्यतीत थई शके. ग्रन्थकारे सूचवेलो ए हेतु तद्दन वास्तविक अने कार्यसाधक छे एम कशी ज अत्युक्ति नथी. जैन भिक्षुओए ए हेतुनो जे रीते यथेष्ट उपयोग कर्यो छे तेनां निदर्शक ऐतिहासिक तेम ज साहित्यिक प्रमाणो जैन ग्रन्थोमांथी जोईए तेटलां मळी आवे तेम छे. निमित्तज्ञान विषयनुं अन्य साहित्य भारतवर्ष कृषिप्रधान देश होवाथी भने कृषिनी निष्पत्तिनो आधार जलवर्षा उपर रहेलो होवाथी आपणा देशना कोकोने ठेठ प्राचीन काळथी ज वृष्टिना योगायोगो अने निमित्तोनुं विशिष्ट परिज्ञान मेळववानी परम आवश्यकता जाती रही छे अने तेथी आपणा पूर्वजोए ए परिज्ञान प्राप्त करवा अर्थे आध्यात्मिक अने भौतिक बने प्रकारनी शक्तिओ द्वारा मळता अनुभवोनो यथाशक्य उपयोग करवा सतत प्रयत कर्यो छे. ए प्रयत्लना फळरूपे वर्षाना योगायोग विषेनुं ज्ञान करावनारा नाना म्होटा घणा य ग्रन्थो भारतीय साहित्यमां उपलब्ध थाय छे. संस्कृत अने प्राकृत भाषामां terror केलाय ग्रन्थो उपरांत देश्य भाषामां पण आ विषयनी नानी म्होटी केटली य रचनाओ थएली मळी आवे छे. एरचनाओमा 'भडलीनां वाक्यो तरीके प्रसिद्ध प्राचीन राजस्थानी के प्राचीन हिंदीना मनातां दोहात्मक पद्यो सर्वत्र सुज्ञात छे. ग्रामीण कृषिकारो पण ए 'भडली' नां थोडां घणां वचनोथी परिचित होय छे अने वर्षाकाळना पहेलाना एक बे मासमा आकाशमां थतां वादळ, गाज-वीज अने हवानां आन्दोलनोनी क्रिया विगेरेनां अवलोकनो उपरथी, आवतुं चोमासु के नीवडशे तेनी कांईक कल्पना तेओ करता रहे छे. राजपूतानामां ए वचनोनो प्रचार म्होटा प्रमाण मां जोवामां भाग्यो छे. वर्तमान युगना नवा वातावरणने लीधे हवे ए वस्तुना जाणकारो बहु विरल थता जाय छे. परंतु जूना जमानामां दरेक गाममां एना एक बे ज्ञाता अवश्य मळी आवता हता. ज्योतिषी ब्राह्मणो अने जैन साधु-यतियो ए बाबani वधारे अनुभवी मनाता. चोमासाना दिवसोमां सहेज वर्षाद खैचाय के वधारे ओछो पडे, तो लोको ए ब्राह्मणो भने साधु-‍ - यतियोनी पासे जाय अने ते विषेनी उत्सुकतापूर्वक पूछताछ करे. लोकोना म्होटा भागनी एवी श्रद्धा थएली इती के ज्योतिषियो अने यतियो ए विषयनुं जरूर सारुं ज्ञान धरावनारा होय छे. जो के लोकोनी श्रद्धा जेटलं सारं ज्ञान धरावनार तो बहु ज विरल व्यक्ति थती हशे, परंतु केटलं क सामान्य ज्ञान धरावनार व्यक्तियो जरूर ज्यां त्यां मळी भावती खरी. म्हारा स्वर्गवासी गुरुवर्य यतिप्रवर श्री देवीहंसजी ए विषयना विशिष्ट ज्ञाता हता तेनो म्हने प्रत्यक्ष अनुभव छे. सं. १९५६ नी सालमां मारवाड विगेरेमां जे भयंकर दुष्काळ पड्यो हतो तेनी जे आगाही तेमणे ४-६ सहीना पूर्वे ज करी दीधी हती तेनुं म्हने खास स्मरण छे, तेमनी भविष्यसूचनाने लक्ष्यमां लई, म्हारी जन्मभूमिना शासक स्व० ठाकुर श्री चतुरसिंहजी पोतानी आर्थिक संपत्ति अनुसार, अगाउथी ज पुष्कळ अनाजनो संग्रह करी लीधो हतो, जेना लीधे उग्र अन्नसंकटना समये पोतानी जागिरीना गरीब जनोने तेनुं वितरण करीने तेमनां प्राणो बचाववामां सारी रीते सफळ थया हता. वर्षा विषेनी आयी आगाहीना बीजा पण बे-चार प्रसंगोनुं म्हने स्पष्ट स्मरण छे जे गुरुजीना कथनानुसार अविसंवादी रूपे अनुभवमां आव्या हता. आथी, आपणा शास्त्रकारोए आ वर्षाविज्ञान विषेनां जे निमित्तो भने सूचनो ग्रन्थस्थ कर्या छे तेमां केटलुक महत्त्वनुं तथ्य अवश्य रहेलुं छे एवी म्हारी सानुभव मान्यता थएली छे. निमित्तशास्त्र मानव समाजने अत्यन्त उपकारक होवानी मान्यता ७ खरी रीते भानिमित्तशास्त्रविषयक ज्ञान मनुष्य जातिना ऐहिक जीवन व्यवहार साथे अत्यंत निकटनो संबन्ध धरावे छे, भने तेथी भा शास्त्र मनुष्य समाज माटे अत्यंत उपकारक, मार्गदर्शक अने संरक्षणसूचक छे. प्रस्तुत ग्रन्थकारे आ शास्त्रनुं माहात्म्य समजावता जे विचारो नीचेना श्लोकोमा प्रकट कयी छे ते तद्दन वास्तविक स्वरूपना ज ज्ञापक छे एम कहेवामां जरा य अतिशयोक्ति नथी लागती. ग्रन्थकार कहे छे के न वेदा नापि चाङ्गानि न विद्याश्च पृथक् पृथक् । प्रसाधयन्ति तानर्थान् निमित्तं यत् सुभाषितम् ॥ १३, ३८ अतीतं वर्तमानं च भविष्यद् यश्च किञ्चन । सर्व विज्ञायते येन तज्ज्ञानं नेतरं मतम् ॥ १३, ३९ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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