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________________ भद्रबाहुसंहिता ते पछीना तेना 'वक्रचार' अध्यायना प्रारंभर्नु सूचक 'अत ऊर्दू प्रवक्ष्यामि वकं चारं निबोधत' आq नवीन प्रतिज्ञाकथन करवामां आवेलुं छे, तेथी ए अध्याय तद्दन जुदोज होवो जोईए ए अर्थात ज स्पष्ट थई जाय छे. मा उपरथी ए वात पण स्पष्ट थाय छे के पूनावाळी प्रति अने पाटणवाली प्रति बन्ने बहु जूना अने जुदा प्रत्यन्तरो वाळी आदर्शभूत कोई भिन्न प्रतियोनी प्रतिलिपियो छ, भने ए वस्तु पण प्रस्तुत ग्रन्थनी निःसंशय प्राचीनतानी घोतक छे. ग्रन्थगत विषयनी विचारणा प्रस्तुत ग्रंथमा जे विषयोनुं वर्णन करवामां आव्युं छे, ते बधा विषयोनुं वर्णन, ब्राह्मण विद्वान् वराहमिहिरनी रचेली वाराही संहितामां पण करेलु मळे छे अने तेथी ए बन्ने ग्रन्थोना वर्णनोमा परस्पर केटलुं साम्य छे अने केटलुं वैषम्य छे तेनी बह ज झीणवट भरेली अने विस्तार पूर्वकनी तुलना, अध्यापक गोपाणीए पोतानी प्रस्तावनामा, घणी ज सरसरीते करीने बतावी छे. अध्यापक गोपाणीनी ए तुलनाना वाचनथी ए वस्तु स्पष्ट थाय छे के प्रस्तुत ग्रन्थ करतां 'वाराही संहिता'नी संकलना, रचना अने वर्णनशैली वधारे व्यवस्थित अने वधारे प्रौढताभरेली छे; त्यारे आनी रचना, संक. लना भने शैली अव्यवस्थित, व्याकरण अने छन्दोभंगना दोषोथी व्याप्त तेम ज पुनरुक्ति भादिना प्रयोगोथी निकृष्ट प्रकारनी छे. एथी मर्मज्ञ विद्वानोनो सहेजे एवो मत बन्धाय के कोई अर्वाचीन अर्धविदग्ध जैन विद्वाने 'वाराही संहिता' उपरथी आनी संकलना करीने भद्रबाहुना नामथी एने प्रसिद्धि आपवानो क्षुल्लक अने हास्यास्पद प्रयत्न करेलो होवो जोईए. उपर, पं. जुगल किशोरजीए करेली प्रस्तुत कृतिनी विस्तृत परीक्षानो जे उल्लेख करवामां आव्यो छे तेमा तेमणे ए ज विचार स्पष्टपणे प्रतिपादित कर्यो छे. अल्बत् पं. जुगल किशोरजीए जे ग्रन्थकृतिनी परीक्षा करी छे ते कृति, समग्रभावे तो निःसंशयरीते अर्द्धदग्ध अने अप्रामाणिक पंडितम्मन्यनी क्षुल्लक रचना ज छे. परंतु प्रस्तुत ग्रन्थकृति ते कोटीनी रचना नथी एवो म्हारो अभिमत छ; अने ते उपर आलेखेली विचारसरणीथी फलित थाय छे. म्हारा अभिमत प्रमाणे १ प्रस्तुत ग्रन्ध कृति 'वाराही संहिता' ना आधारे रचवामां आवेली नथी तेम ज कोई अर्वाचीन अर्द्धदग्ध पंडितम्मन्यनी बनावेली नथी. आनी रचना करनार कोई प्राचीन कालीन जैन विद्वान् छे जेणे भद्रबाहुनां कहेलां के ग्रन्थेलां निमित्तशास्त्र विषयक वचनोनो सारसंग्रह करवानो प्रयल को छे. २ प्राचीन काळथी जैन विद्वानोमां आ ग्रन्थन खूब वाचन अने अध्ययन थतुं रहुं छे अने तेथी एमां घणा पाठभेदो तेमज भ्रष्टपाठो प्रविष्ट थई गया छे. ३ प्रस्तुत ग्रन्थमा क्यां य एवो निर्देश थएलो नथी मळतो के जेथी ए स्वयं भद्रबाहुनी कृति छे एवो कोईने भ्रम उत्पन्न थाय. छतां केटलाक जैन पंडितोए एने भद्रबाहुनी कृति तरीके मानवा-मनाववानोभ्रान्त प्रयत्न कर्यो छे त्यारे केटलाके ए भद्रबाहुनी कृति नथी ए सिद्ध करवामाटे बहु ज उत्साहपूर्वक अतिरेकी श्रम सेप्यो छे. ४ आ ग्रन्थगत उल्लेखोथी जे कांई फलित थाय छे ते एटलुंज के भद्रबाहुनां वचनोना आधारे आनी संकलना के रचना करवामां आवी छे, अने ए ज वस्तु एनो कर्ता आपणने मानवाचें कहे छे. ५ ग्रन्थकारे प्रारंभमां, प्रस्तावनारूपे जे जणाव्युं छे के द्वादशांगवेत्ता भद्रबाहु भाचार्य मगधदेशना राजगृह नगरना पांडुगिरि पर्वत उपर आवीने रह्या ते वखते शिष्योए तेमने राजाओना, भिक्षुओना अने श्रावकोना हितनी दृष्टिए दिव्य ज्ञाननो उपदेश आपवानी प्रार्थना करी अने तेथी तेमणे 'जिनभाषित निमित्त' ज्ञाननो पोताना शिष्योने उपदेश आप्यो-इत्यादि. आ जातनो ग्रन्थारंभ करवो ते तो जैन ग्रन्थकारोनी एक सामान्य शैली ज छे. अनेक प्राचीन अर्वाचीन ग्रन्थोनो प्रारंभ आ शैलीए करवामां आव्यो होय छे. पोताना वर्ण्यविषयने भगवान महावीरना वचनरूपे निरूपित करवानो ग्रन्धकारनो ज्यारे उद्देश होय छे त्यारे ते उपदेशने महावीरना मुखेथी कहेवडावानी पद्धतिए ग्रथित करे छे तेम ज ज्यारे कोई विषयने गणधर के अन्य तेवा आचार्यना उपदेश तरीके निर्दिष्ट करवानो ग्रन्थकारनो उद्देश होय छे, तो त्यारे ते उपदेशने, ते ते व्यक्तिना मुखेथी उच्चराववानी शैलीए आलेखित करे छे. तेथी एवा प्रारंभिक के प्रास्ताविक कथनोमां कोई ऐतिहासिक के विशेषवस्तु सूचक घटनानी कल्पना करवी नकामी छे. ६ प्रस्तुत ग्रन्थना ए प्रारंभिक कथनमाथी जे काई विशिष्ट विचार तारवी शकाय छे, ते ए छे, के आ ग्रन्थनी संकलना करवामां ग्रन्थकारनो प्रधान उद्देश नृपतिओ, भिक्षुओ अने श्रावकोना हितविषेनो छे. एमां राजाओगें हित ए रीते सूचववामां आव्यु छे के आ शास्त्रोक्त निमित्तज्ञानना आधारे राजाओ पोताना जीवनमां तथा पोताना राज्यमांथनारां शुभाशुभ फळो विषेनं ज्ञान मेळवी तदनुसार प्रवृत्ति करीशके भने तेथीतेभो विजिगिषु अने स्थिरमति थईने सुखपूर्वक पृथ्वीन अर्थात् पोताने अधीन भूमिर्नु पालन करी शके. भिक्षुमोर्नु हित ए रीते जणाववामां आव्यं छे के भिक्षुओ पासेथी राजाओ आशास्त्रोक्त रहस्यनो उपदेश प्राप्त करीने पोताना Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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