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________________ किंचित् प्रास्ताविक ग्रन्थभंडारमा ए ग्रन्थनी एक खंडित (अपूर्ण) परंतु सुन्दर प्रति म्हारा जोवामां भावी जे निश्चित रूपे पंदरमा सैकामों - एटले के पाटणना ए भंडारना संस्थापक खरतर गच्छीय जिनभद्र सूरिना समयमां-लखाएली म्हने जणाई. ए प्रति जोईने म्हने ए ग्रन्थनी संपूर्ण प्रति मेळववानी उत्कंठा थई. कारण के एक तो ए ग्रन्थनु स्वरूप, पं. जुगल किशोरजीए जेनी परीक्षा करेली ते ग्रन्थ करतां, तद्दन जूहूँ ज जणायु; अने बीजें, ए प्रति जुगल किशोरजीने मळेली प्रति करता ओछामा ओछी लगभग २०० वर्ष जेटली जूनी देखाई. एटले तेथी एनी विशेष प्राचीनतानी पण म्हने कल्पना थई. ए प्रतिनुं विशेष अवलोकन करतां म्हने एम पण जणायु के ए प्रति तो वळी एथी य कोईक वधारे जूनी ताडपत्रनी प्रतिनी प्रतिलिपि रूपे छे. एटले मूळ ग्रन्थकृतिनी एथी पण विशेष प्राचीन होवानी म्हारी खातरी थई. तेथी म्हें एनी अन्य कोई तेवी संपूर्ण प्रति मेळववानो प्रयत्न आरभ्यो. तपास करतां पूनाना राजकीय ग्रन्थसंग्रहमांथी, (जे भांडारकर ओरिएन्टल रीसर्च इन्स्टीट्यूटमा सुरक्षित छे) एनी एवी ज एक बीजी जूनी प्रति मळी आवी जे संपूर्ण हती. पूनावाळी प्रति वि. सं. १५०४ मां लखाएली छे अने ते पण पाटणवाळी प्रतिनी जेम कोईक ताडपत्रनी जूनी प्रतिनी प्रतिलिपिरूपे छे. एटले म्हने एटली खातरी तो तरत थई के ए ग्रन्थनो जेटलो भाग ए बने प्रतिओमा लखेलो मळे छे तेटलो तो जरूर प्राचीन छे. अने 'प्रबन्धकोष'मा जे भद्रबाहुनी रचेली 'भाद्रबाहवीसंहिता' नो उल्लेख करवामां आव्यो छे ते घणुं करीने भा ज कृतिने उद्देशीने होवो जोईए. ग्रन्थना नाम, विषय, स्वरूप अने तेना कर्ता आदिना उल्लेखो तेम ज श्रुतिपरंपरा आदिने लगता केटलाक चर्चात्मक प्रश्नोने लक्ष्यमा लईने, म्हें आ ग्रन्थने 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला'मा प्रकट करवानो विचार को अने एर्नु संपादन कार्य म्हारा विद्वान् शिष्य अने सहकारी प्राध्यापक डॉ. गोपाणीने सुप्रत कयु. भाई श्री गोपाणीनुं ज्योतिष तेम ज वैद्यक शास्त्रोना विषयचं वाचन, अध्ययन अने मनन बहु ज विशाळ अने गंभीर प्रकारर्नु होई, एमणे ए ग्रन्थन संशोधन अने संपादन करवा माटे खूब ज परिश्रम उठाव्यो छे, अने एमना ए प्रयासना सुफळ रूपे ज आजे विद्वानोना कर कमलमा 'सिंघी जैन ग्रन्थमाला' ना एक नूतनविषयक मणि तरीके आ ग्रन्थ उपस्थित थाय छे. डॉ. गोपाणीए प्रस्तुत ग्रन्थना विषयमा जाणवा लायक घणीक बाबतोनी उपयुक्त चर्चा, पोतानी प्रस्तावनामा करी छे; तेम ज ग्रन्थनो सार भापी 'वाराही संहिता' साथेनी तेती योग्य तुलना पण सरस रीते करी बतावी छे. श्रीयुत गोपाणीए प्रस्तुत कृतिना फर्तृत्व आदि विषे जे विचारो प्रदर्शित कर्या छे ते उपरथी वाचकोने तेनी पण केटलीक कल्पना थई शकशे. प्रस्तुत ग्रन्थनी प्राचीनता विषेनी केटलीक विचारणा अध्यापक गोपाणीए प्रस्तुत कृतिनी रचना विषे एवो जे उल्लेख करेलो छे के 'विक्रमीय पंदरमी सदी पछी कोई साधारण बुद्धिसंपत्ति धरावनार माणसे एने रची काढी-'इत्यादि, ते विषे म्हारो अभिप्राय जरा जुदो छे. हैं एने पंदरमी सदीनी पछीनी रचना नथी समजतो. ओछामा ओछी १२ मी सदी जेटली जूनी तो ए कृति छे ज, एवो म्हारो साधार अभिमत थाय छे. म्हारा अनुमाननो आधार एप्रमाणे छे-पाटणना वाडीपार्श्वनाथ भण्डारमाथी जे प्रति म्हने मळी छे ते जिनभद्सूरिना समयमां-एटले के वि. सं. १४७५-८५ ना अरसामां-लखाएली छे, एम हुँ मार्नु छु. कारण के एप्रतिना आकार-प्रकार, लखाण, पत्रांक आदि बधा संकेतो जिनभद्रसूरिए लखावेला सेंकडो ग्रंथोने तद्दन मळता अने तेज स्वरूपना छे. जेम म्हें 'विज्ञप्ति त्रिवेणि'नी म्हारी प्रस्तावनामां जणाव्यु छे तेम जिनभद्रसूरिए खंभात, पाटण, जेसलमेर आदि स्थानोमा म्होटा ग्रन्थभण्डारो स्थापन कर्या हता अने तेमां, तेमणे नष्ट थतां जूनां एवां सेंकडो ताडपत्रीय पुस्तकोनी प्रतिलिपिओ कागळ उपर उतरावी उतरावीने नूतन पुस्तकोनो संग्रह को हतो. ए भंडारमाथी मळेली भद्रबाहुसंहितानी उक्त प्रति पण ए ज रीते कोई प्राचीन ताडपत्रनी प्रतिलिपि रूपे उतारेली छे. कारण के ए प्रतिमा ठेकठेकाणे एवी केटलीय पंक्तिओ दृष्टिगोचर थाय छे जेमां लहियाए पोताने मळेली आदर्श प्रतिमां, उपलब्ध थता खंडित के त्रुटित शब्दो अने वाक्यो माटे, पाछळथी कोई तेनी पूर्ति करी शके ते सारं, ............... आ जातनी अक्षरविहीन मात्र शिरोरेखाओ दोरी मुकेली छे. एनो अर्थ ए छे के ए प्रतिना लहियाने जे ताडपत्रीय प्रति मळी हती ते विशेष जीर्ण थएली होवी जोईए अने तेमां ते ते स्थळना लखाणना अक्षरो, ताडपत्रोनी किनारो खरी पडवाथी, जता रहेला के भुंसाई गएला होवा जोईए. ए उपरथी एबुं अनुमान सहेजे करी शकाय के ते जूनी ताडपत्रीय प्रति पण ठीकठीक जीर्ण अवस्थाए पहोंची गएली होवी जोईए. आ रीते जिनभद्रसूरिना समयमांजोए प्रति ३००-४०० वर्षो जेटली जूनी होय-अने ते होवानो विशेष संभव छ ज-तो सहेजे ते मूळ प्रति विक्रमना ११ मा १२ मा सैका जेटली जूनी होई शके, पाटण अने जेसलमेरना जूना भंडरोमां आवी जातनी जीर्ण-शीर्ण थएली ताडपत्रीय प्रतियो तेम ज तेमना उपरथी उतारवामां आवेली कागळनी सेंकडो प्रतियो म्हारा जोवामां आवी छे. तेवी ज रीते पूनावाली प्रति पण (जेनी प्रतिलिपि वि. सं. १५०४ मां थएली छे), तेवी ज कोईक अन्य प्राचीन ताडपत्रीय प्रति उपरथी उता. रवामां आवेली छे. कारण के तेमां पण ठेकठेकाणे आवी ज जातनी अक्षरविहीन शिरोरेखाओ आलेखेली दृष्टिगोचर थाय छे, ए बने प्रतियोना अवलोकनथी ए वात स्पष्ट जणाय छे के एमनी मूळाधारभूत भादर्श प्रतियो ठीकठीक जूनी Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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