SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 23
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ भद्रबाहुसंहिता थएली हती. वळी ए बने प्रतियोमा जे ढगलाबन्द पाठभेदो दृष्टिगोचर थाय छे ते पण ए वस्तु सूचवे छे के जूना समयमा ए ग्रन्थनां घणां प्रत्यन्तरो थयां होवां जोईये अने ते प्रत्यन्तरोनी पूर्व परंपरा, मूळ ग्रन्थनी रचनाने विशेष प्राचीन समयमा थएली सूचित करनारी होवी जोईए. आ उपरथी हुँ ए अनुमान उपर मायूँ छु के प्रस्तुत ग्रन्थ ११ मा १२ मा सैका करतां तो अर्वाचीन नथी ज. एनी प्रतियोमा मळता बहुविध पाठभेदो अने अपभ्रष्ट पाठो पण ए ग्रन्थनी सविशेष प्राचीनताना ज द्योतक होई शके. ग्रन्थनो कर्ता कोण ? आ ग्रन्थनी रचना कोणे अने क्यारे करीए विषेनुं कशुं पण अनुमान करवानें कोई ज्ञापक प्रमाण दृष्टिगोचर नथीथयु. ग्रन्थनी वर्णनशैली उपरथी एटलुं स्पष्ट जणाय छे के एनो रचयिता कहो के संकलन कर्ता कहो, कोई दिगम्बर संप्रदायानुयायी जैन विद्वान छे. भद्रबाहु आचार्यना नामथी श्रुत के ज्ञात थएली कोई कृतिना आधारे, तेणे प्रस्तुत ग्रन्थनी संयोजना करी छे. वळी प्रस्तुत ग्रन्थना उल्लेखोथी ए पण स्पष्ट जणाय छे के एना कर्ता स्वयं कोई भद्रबाहु नथी3B परंतु भद्रबाहुना उपदिष्ट के निबद्ध एवा कोई निमित्तशास्त्रना आधारे अन्य कर्ताद्वारा एनी संकलना करवामां आवेली छे, अने तेथी एनुं नाम 'भाद्रबाहुक निमित्त ग्रन्थ' आQ राखवामां भावेलुं छे. भद्रबाहु नामना एक अन्य आचार्य पूर्वे थई गएला छे जे निमित्तशास्त्रना विशिष्ट ज्ञाता होई 'नैमित्तिक' तरीके प्रसिद्धि पाम्या हता. तेमना विषेना केटलाक उल्लेखो ७ मा ८ मा सैका जेटला प्राचीन जैन ग्रन्थोमां मळी आवे छे. विद्वद्वर्य मुनिवर श्रीपुण्यविजयजीए 'छेदसूत्रकार अने नियुक्तिकार' ए नामना पोताना मौलिक अने प्रमाणभूत निबन्धमा जणाव्यु छे के - कल्प - व्यवहार -निशीथादि मूळ सूत्रोना कर्ता तथा आवश्यकनियुक्ति आदि अन्यान्य नियुक्तिग्रंथोना कर्ता बन्ने भिन्न भिन्न आचार्यो छे-अर्थात् कल्प-व्यवहारादि छेदसूत्रोना कर्ता जे चतुर्दशपूर्वज्ञानधारी भद्रबाहु छे, ते अन्य छ; अने आवश्यक सूत्रादिनी नियुक्तियोना रचयिता जे भद्रबाहु छे ते पण अन्य छे. आ पाछला भद्रबाहु ज निमित्तज्ञ भद्रबाहु छे अने ते ५ मा ६ ठा सैका करतां जूना नथी. तेमणे ज 'उवसग्गहर' स्तोत्र तथा 'भद्रबाहुसंहिता' नी मूळ रचना करेली होवी जोईए; तेम ज ते ज वराहमिहिरना पण भ्राता होवा जोईए. इत्यादि।. कोई भद्रबाहु नामनाजैन आचार्य अने सुप्रसिद्ध ब्राह्मण विद्वान् वराहमिहिर वच्चे सहोदरपणानो सम्बन्ध हतो के केम ते विषे आपणे कशो आधार नहिं आपी शकिये, अने तेमना समसामयिकत्व विषे पण विशिष्ट प्रकारना प्रमाणाभावे, आपणे कशो निर्णय नहिं करी शकिये; परंतु भद्रबाहु नामना एक जैन पूर्वाचार्य निमित्तशास्त्रना विशिष्ट ज्ञाता होवानी विख्याति वाळा पूर्वे थई गया छे, एटली हकीकत तो उक्त मुनिवर श्रीपुण्यविजयजीना निबन्ध उपरथी निश्चित रूपेमानी शकायतेम छे. ए भद्रबाहु आचार्य, जेम आवश्यकादि नियुक्ति ग्रन्थोनी रचना करी छे, तेम निमित्तशास्त्रविषयक कोई ग्रंथनी पण पद्यरूपे के गद्यरूपे, प्राकृतमा रचना करी होय ए सर्वथा संभव छे. निमित्तशास्त्र साथे सबन्ध धरावनारा 'अंगविद्या. प्रकीर्ण' आदि पूर्वाचार्योना रचेला बीजा पण जैन ग्रन्थो उपलब्ध थाय छे. निमित्तशास्त्र विषेनुं तेवं विशेष ज्ञान मेळववानी परिपाटी जैनाचार्योमा घणा प्राचीन समयथी चाली आवे छे, अने एवा विशिष्ट निमित्तज्ञानना प्रभावथी जैनाचार्योए पोताना धर्म अने संप्रदायनो सविशेष प्रभाव वधार्यों होवाना सेंकडो उल्लेखो पण जैन ग्रन्थोमां मळी आवे छे. एथी निमित्तशास्त्रज्ञ भद्रबाहु आचार्य आवो निमित्तविषयक कोई ग्रन्थ बनाव्यो होय तो ते सर्वथा संभवित छे. पाछळथी काळदोषने लईने ए ग्रन्थ नष्ट-भ्रष्ट थवाथी के पछी बीजी रीते विशेष दुर्बोध्य जेवो जणावाथी तेना उद्धाररूपे कोई विद्वाने प्रस्तुत ग्रंथनी रचना करेली होवानी संभावनानी मान्यतानां योग्य कारणो आपी शकाय. प्रस्तुत ग्रन्थमा ज्यां त्यां जे केटलीक अस्तव्यस्त स्वरूपनी संकलना तेम ज छन्दोभ्रष्ट आदि वाळी स्खलित रचना दृष्टिगोचर थाय छे तेन पण एक ए कारण होई शके के मूळ कृति प्राकृत भाषामां होय अने तेना आधारे आ संस्कृत रूपान्तर करवामां आव्युं होय. एम थवाथी व्याकरण अने छन्दोभ्रष्टताना केटलाक दोषो एमां स्वाभाविक रूपे ज उतरी भाव्या होय. केम के ग्रन्थ आखो पारिभाषिक शब्दोथी भरेलो छे. एमां एकना बदले बीजा प्रतिशब्दनो उपयोग करवा माटे अवकाश न होय ए तो स्पष्ट ज छे. ज्योतिष भने वैद्यक विषयना परिभाषात्मक ग्रन्थोमां आवं भाषाशैथिल्य अने गुम्फनशैथिल्य बहु ज सामान्य गणाय छे, ए पण विद्वानोने सुविदित ज छे. प्राचीन ग्रन्थोमा मळती आवी पाठभ्रष्टतार्नु एक विशेष कारण लहियाओनी लिपिविषयक अज्ञानता पण खास होय छे. भाषा अने विषयने जरा य न समजनार लहियो ज्यारे कोई जूनी प्रतिनो उतारो करवा बेसे छे अने तेने जो आधारभूत प्रतिनी लिपि सहेज पण अपरिचित के असामान्य जणाय छे, त्यारे ते पोतानी नकलमां अक्षरो संबंधी अनेक प्रकारनी विचित्र भूलो कर्या करे छे. पुस्तकोनी प्रतिलिपि करनारा लहियाओने आजना अभण कंपोजिटरो जेवा समजवा जोईए. जेम महावीर जैन विद्यालय, मुंबई तरफथी प्रकट थएल 'रजतमहोत्सव' नामना पुस्तकमा प्रकाशित. + मेघविजय उपाध्याये पोताना 'वर्षप्रबोध' अपरनाम 'मेघमहोदय' मां भद्रबाहुना नामथी केटलीक प्राकृत गाथाओ उद्धत करेली छे जे कदाचित् ए मूळग्रन्थमांथीज परंपराद्वारा उद्धृत थती चाली आवी होय. Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy