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________________ भद्रबाहु संहिता आ उपरथी मात्र एटली वस्तु सिद्ध थाय छे के 'प्रबन्धकोष' ना कर्ताना समयमां, एटले के वि. सं. १४०५ माँ, भद्रबाहुना रचेला 'भद्रबाहु संहिता' नामना ग्रन्थनी प्रसिद्धि थपली हती. २ प्रस्तुत ग्रन्थनी उपलब्धि अने प्रसिद्धि वि.सं. १९५९ मां, मुंबईना प्रसिद्ध जैन ग्रन्थप्रकाशक शा. भीमसिंह माणिकने त्यांथी 'भद्रबाहुसंहिता' नामना ज्योतिषना ग्रन्थनुं, पण्डित श्रावक हीरालाल हंसराजनुं करेलुं, गुजराती भाषान्तर प्रकट थयुं तेनी प्रस्तावनाम एम लखवामां आव्युं हतुं के “आ भद्रबाहु संहिता ग्रंथ जैनना ज्योतिष विषयमां आद्य ग्रन्थ छे. तेना रचनार श्री भद्रबाहु स्वामी चौद पूर्वघर श्रुतकेवली हता. तेमनां वचनो जैनमां आप्तवचनो गणाय छे." इत्यादि. आ भाषान्तर करनार विद्वाने मेळवेल ते मूळ संस्कृत ग्रन्थ केटलो म्होटो तेम ज केटलो जूनो हतो; ए विगेरेनी कशी माहिती तेमां आपेली नथी. ते पछी घणा वर्षो बाद जामनगरथी ए ज पण्डितना प्रकाशन कार्यालय खातेशी ते ग्रन्थनी मूळ नकल छपावी प्रकट करवामां आवी हती, परंतु ते एटली बधी अस्तव्यस्त अने अपभ्रष्ट रूपमा हती के जेथी ए ग्रन्थनी संकलना के स्वरूपनी उपलब्धिनी दृष्टिए तनो कशो ज उपयोग थाय तेम नथी. ए दरम्यान, दिगम्बर समाजना एक सुप्रसिद्ध पण्डित गोपालदासजीए 'जैनमित्र' नामना पत्रमा 'भद्रबाहुसंहिता' नामना ग्रन्थमांथी 'दायभाग' नामना एक प्रकरणना केटलॉक उद्धरणो प्रकट कर्या. ए उद्धरणोमां जैन शैलीथी तद्दन विलक्षण लागता केटलाक विचारो जोईने, सुप्रसिद्ध ग्रन्थपरीक्षक अने विवेचक दिगम्बर विद्वान् पण्डित श्री जुगल किशोरजी मुख्तारने, ए ग्रन्थने मूळ रूपमां जोवानी अने अवलोकवानी उत्कट इच्छा थई. तेथी तेमणे ए ग्रन्थनी मूळ नकल मेळवावा खूब ज प्रयास कर्यो. केटलीक मुस्केलियो पछी तेमने ए ग्रन्थनी एक नकल मळी आवी अने तेना आधारे तेमणे ए ग्रन्थनुं, पोतानी सूक्ष्म परीक्षक दृष्टिए, सविशेष अवलोकन कयूँ. परिणामे तेमने जणायुं के जे ग्रन्थनी नकल तेमने मळी छे ते भाखो ग्रन्थ बनावटी अने विक्रमना सत्तरमा सैकामां थएल कोई धर्म भूषण भट्टारक नामना दिगम्बर जैनगुरुना क्षुल्लक प्रयत्लनी कृतिरूपे छे. पण्डित श्री जुगल किशोरजी मुख्तारे, ए उपर विस्तृत परीक्षात्मक २-३ म्होटा निबन्धो ज लखी काढ्या हता जे मुंबईना सुप्रसिद्ध ग्रन्थप्रकाशक अने इतिहासविज्ञ विद्वान् पं. श्री नाथूरामजी प्रेमीद्वारा संपादित 'जैनहितैषी' पत्रमां क्रमथी प्रकट थया हता अने पछीथी स्वतंत्र पुस्तिका रूपे पण प्रसिद्ध करवामां आव्या हता. पण्डित जुगल किशोरजीए, ए ग्रन्थनी जूनी प्रतो आदिना विषयमां म्हने पण पत्र लखीने पूछान्युं हतुं. परंतु ते वखते म्हारा जोवामां एनी कोई प्रति आवी न हती अने तेथी में श्वेताम्बर भंडारोमां तेनी अनुपलब्धि लखी जणावी हती. ए उपरथी पं. जुगल किशोरजी एवा निर्णय ऊपर आव्या हता के ए ग्रन्थ जेम दिगम्बर संप्रदायमां खास प्रसिद्ध नथी तेम श्वेताम्बर संप्रदायमां पण अधिक प्रचलित नथी. तेमणे ए माटे मारा उक्त पत्रनी केटलीक पंक्तिओनो उतारो पण पोताना प्रबन्धमां आ प्रमाणे आप्यो छे: - "इसी लिये श्रीयुत मुनि जिनविजयजी अपने पत्र में लिखते हैं कि - 'पाटन के किसी नये या पुराने भण्डारमें भद्रबाहु - संहिता की प्रति नहीं है । गुजरातके या मारवाडके अन्य किसी प्रसिद्ध भण्डारमें भी इसकी प्रति नहीं है । श्वेताम्बरोंके भद्रबाहुचरितों में उनके संहिता बनाने का उल्लेख मिलता है; परंतु पुस्तक अभीतक नहीं देखी गई ।” (ग्रन्थपरीक्षा, पृ. १५) पं. जुगल किशोरजीने भद्रबाहु संहितानी जे नकल मळी हती अने जेनी तेमणे विस्तृत परीक्षात्मक समालोचना करो छे ते ग्रन्थ, प्रस्तुत ग्रन्थनी सरखामणीमां परिमाणमां घणो म्होटो छे. ए ग्रन्थ 'पूर्व' 'मध्यम' भने 'उत्तर' एम ३ खंडोमां व्हेंचाएलो छे भने त्रणे खंडोमां मळीने लगभग ७ हजार जेटली एनी लोकसंख्या छे. एना 'पूर्व' अने 'उत्तर' खंडमां ज्योतिषना विषय करतां केटलाक तद्दन जुदा ज विषयोनुं वर्णन करवामां आवे छे अने आखा य ग्रन्थनी संकलना बहु ज अस्तव्यस्त रूपमां थएली छे. एना 'मध्य' खंडमां अत्र मुद्रित समग्र ग्रंथनो समावेश करी लेवामां आव्यो ले अने ते उपरांत बीजा पण केटलाक वधाराना विषयो एमां आपेला छे. एना 'पूर्व' खंडमां केटलाक एवा श्लोको मळे छे जे 'ताजिक नीलकंठी' अने 'मुहूर्तचिन्तामणि' नामना प्रसिद्ध ज्योतिष ग्रन्थोमांथी लीवेला के. ए ग्रन्थोनो रचनासमय विक्रमना सत्तरमा सैकानो पूर्वार्द्ध होवाथी पं. जुगल किशोरजी ए निर्णय उपर आव्या हता के 'आ संहिता विक्रम संवत् १६४० ना पछी बनेली छे.' तेम ज ए प्रन्थनी मूळ नाल ते 'झालरा पाटण' ना दिगम्बर जैन भंडारमां छे तेना अन्ते लखेला पुष्पिकारूप उल्लेख उपरथी तेमणे एनी रचना के संकलनानो निश्चित समय पण सिद्ध कर्यो छे अने ते वि. सं. १६५७ थी १६६५ नी वच्चेनो छे. (जुओ, उक्त परीक्षा ग्रन्थ, पू. ३९ ). पं० जुगल किशोरजीनी लखेली 'भद्रबाहु संहिता' नी परीक्षा वांची म्हारी पण एवी धारणा बंधाई हती के ए ग्रन्थ तद्दन बनावटी होई कशापण मूल्य वगरनो- निरुपयोगी छे; अने तेथी म्हने एना विषय मां कशी विशेष जिज्ञासा उत्पन्न न थई. ई. स. १९३१ मां हुं ज्यारे 'सिंधी जैन ग्रन्थमाला' ना कामना अंगे पाटण गयो त्यारे, म्हने वाडीपार्श्वनाथना प्रसिद्ध पुरातन Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002917
Book TitleBhadrabahu Samhita
Original Sutra AuthorBhadrabahuswami
AuthorA S Gopani
PublisherBharatiya Vidya Bhavan
Publication Year1949
Total Pages150
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari & History
File Size13 MB
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