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听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听听FFFFFFFFFFFFFFFFFFFFF
B))))))))))))))5555555555555558 ॐ विवेचन : यहाँ आँसुओं के टपकने का या इसी प्रकार के जो अन्य कथन हैं, वे मात्र करुण दशात्मक 卐 आन्तरिक पीड़ा के द्योतक हैं, औदारिक शरीरधारियों (मनुष्यों) के शीघ्र ही समझ में आ जाता है, अतएव उनकी भाषा में समझाने की दृष्टि है।
Elaboration The trickling of tears and such like statement convey simply the inner trouble, seeking compassion. The living beings who have physical body (say human beings) understand it soon. So it is a method used by the author to explain it in their language.
२९. घेत्तूणबला पलायमाणाणं णिरणुकंपा मुहं विहाडेत्तुं लोहदंडेहिं कलकलं ण्हं वयणंसि छुभंति केइ जमकाइया हसंता। तेण दड्डा संतो रसंति य भीमाई विस्सराई रुवंति य कलुणगाइं पारेयवगा व एवं पलविय-विलाव-कलुण-कंदिय-बहुरुण्णरुइयसद्दो परिदेवियरुद्धबद्धय णारया-रवसंकुलो णीसिट्ठो।
रसियभणिय-कुविय-उक्कूइय-णिरयपाल तज्जिय गिण्हक्कम पहर छिंद भिंद उप्पाडेह उक्खणाहि कत्ताहि विकत्ताहि य भुज्जो हण विहण विच्छुडभोच्छुब्भ-आकड्ड-विकड्ड।
किं ण जंपसि ? सराहि पावकम्माइं दुक्कयाइं ! एवं वयणमहप्पगडभो पडिसुयासहसंकुलो तासओ + सया णिरयगोयराणं महाणगरडज्झमाण-सरिसो णिग्योसो, सुच्चइ अणिट्ठो तहियं णेरइयाणं जाइज्जंताणं जायणाहिं।
२९. वे अनुकम्पाविहीन यमकायिक (यमपुरुष) उपहास करते हुए इधर-उधर भागते हुए उन 5 नारक जीवों को जबर्दस्ती पकड़कर और लोहे के डण्डे से उनका मुख फाड़कर उसमें उबलता हुआ । ॐ सीसा डाल देते हैं। उबलते सीसे से दग्ध होकर वे नारक भयानक आर्तनाद करते हैं-बुरी तरह
चिल्लाते हैं। वे कबूतर की तरह करुणाजनक आक्रंदन करते हैं, खूब रुदन करते हैं-चीत्कार करते हुए ॐ अश्रु बहाते हैं। विलाप करते हैं।
नरकपाल उन्हें रोक लेते हैं, बाँध देते हैं। तब नारक आर्तनाद करते हैं, हाहाकार करते हैं, ऊ बड़बड़ाते हैं-शब्द करते हैं, तब नरकपाल कुपित होकर और कठोर उच्च ध्वनि से उन्हें धमकाते हैं
और अन्य नरकपालों को कहते हैं- "इसे पकड़ो, मारो, प्रहार करो, छेद डालो, भेद डालो, इसकी 5 चमड़ी उधेड़ दो, नेत्र बाहर निकाल लो, इसे काट डालो, खण्ड-खण्ड कर डालो, हनन करो, फिर से
और अधिक पीटो, इसके मुख में (गर्मागर्म) सीसा उँडेल दो, इसे उठाकर पटक दो या मुख में और ॥ सीसा डाल दो, घसीटो, उल्टा घसीटो।"
नरकपाल फिर उन्हें फटकारते हुए कहते हैं-“बोलता क्यों नहीं ! अपने पापकर्मों को, अपने ॥ कुकर्मों को स्मरण कर !" इस प्रकार नरकपालों की अत्यन्त कर्कश ध्वनि की वहाँ घोर प्रतिध्वनि होती है। नारक जीवों के लिए वह ऐसी त्रासजनक होती है कि जैसे किसी महानगर में आग लगने पर घोर शब्द-कोलाहल होता है, उसी प्रकार निरन्तर यातनाएँ भोगने वाले नारकों का अनिष्ट निर्घोष वहाँ सुना जाता है।
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(50)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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