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9 )))))))) )) ) ) ))) ) )) ) dreadful sins committed by them during earlier life-span are announced and they are dragged towards the place where scaffold is fixed. They are given hundreds of suchlike tortures as are given to those who are to be hanged.
विवेचन : क्षेत्र वेदना का वर्णन करने के बाद अब परमाधामी देवों द्वारा दी जाने वाली भयानक यातनाओं का दिग्दर्शन इस सूत्र में कराया गया है।
परमाधामी जीव जब नारकों को पीड़ा देते हैं तब वे उनके पूर्व कृत पापों की उद्घोषणा भी करते हैं, उन्हें अपने पूर्व कृत पापों का स्मरण कराते हैं और उन्हें प्रायः उसी कोटि की यातना दी जाती है। जैसे-जो लोग जीवित मुर्गा-मुर्गी को उबलते पानी में डालकर उबालते हैं, उन्हें कंदु और महाकुंभी में उबाला जाता है। जो पापी जीववध करके माँस को काटते-भूनते हैं, उन्हें उसी प्रकार काटा-भूना जाता है। जो देवी-देवता के आगे बकरा, पाड़ा आदि प्राणियों का घात करके उनके खण्ड-खण्ड करते हैं, उनके शरीर के भी नरक में परमाधामियों द्वारा तिल-तिल जितने खण्ड-खण्ड किये जाते हैं। अन्य वेदनाओं के विषय में भी इसी प्रकार जान लेना चाहिए।
Elaboration-In this Sutra, the tortures given by demon gods have been narrated after describing earlier the pains due to the nature of the area.
When the demon gods torture the hellish beings, they also announce the sins committed by them in earlier life and the punishment given is often of the same type as was the sin committed by them. For instance those who boil living chicken in water, they are boiled in a pot with wide mouth or one with narrow neck. Those people who, after killing animal, cut its flesh and bake it in fire, they are cut and burnt in the same manner. Those people who sacrifice goat, buffalo and the like before the idol of a god or goddess, and then cut their flesh into pieces, the demon gods cut their bodies in the same manner when they take birth in hell. One should understand about other troubles also in the same manner.
२६. एवं ते पुवकम्मकयसंचयोवतत्ता णिरयग्गिमहग्गिसंपलित्ता गाढदुक्खं महन्भयं कक्कसं असायं सारीरं माणसं य तिव्वं दुविहं वेएंति वेयणं पावकम्मकारी बहूणि पलिओवम-सागरोवमाणि कलुणं पालेंति ते अहाउयं जमकाइयतासिया य सहं करेंति भीया।
२६. इस प्रकार वे नारक जीव अपने पूर्व जन्म में किये हुए कर्मों के संचय के कारण दुःखों से व्याकुल रहते हैं। महा-अग्नि के समान प्रचण्ड नरक की अग्नि से जलते रहते हैं। वे पापकृत्य करने वाले जीव प्रगाढ़ दुःखमय, घोर भय उत्पन्न करने वाली, अतिशय कर्कश एवं उग्र शारीरिक तथा मानसिक दोनों प्रकार की वेदना का अनुभव करते रहते हैं। उनकी यह वेदना अनेक पल्योपम और सागरोपम काल तक रहती है। वे अपनी पूर्ण आयु के अनुसार अत्यन्त दीन व करुण अवस्था में रहते
श्रु.१, प्रथम अध्ययन :हिंसा आश्रव
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Sh.1, First Chapter : Violence Aasrava
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