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वेदना
protection or support. There is no one to provide them shelter or to safeguard them. In view of dreadful troubles that the hellish beings undergo, they suffer miserably. The feeling of pain is continuously there, they do not feel comfort even for a moment. Fifteen types of demons, the paramadhami gods surround them. They give extreme torture to the hellish beings (which shall be described later).
विवेचन : नरकभूमियाँ केवल लम्बाई-चौड़ाई की दृष्टि से ही नहीं, किन्तु नारकों के आयुष्य की दृष्टि से भी विस्तृत हैं। मनुष्यों की आयु की अपेक्षा नारकों की आयु बहुत लम्बी है। वहाँ कम से कम आयु भी दस हजार वर्ष और अधिक से अधिक तेतीस सागरोपम है। सातों नरकभूमि की संक्षिप्त तालिका इस प्रकार है
सात नरक भूमियाँ नाम | गोत्र पृथ्वी पिण्डमान मोटाई | आयु-जघन्य : उत्कृष्ट नरकावास १. घम्मा | रत्नप्रभा १,८०,००० योजन | १० हजार वर्ष १ सागर | ३० लाख क्षेत्रजा; अन्योन्या, परमाधामी कृत २. वंशा शर्कराप्रभा |१,३२,००० योजन |१ सागर ३ सागर | २५ लाख | क्षेत्रजा; अन्योन्या, परमाधामी कृत ३. शीला | बालुकाप्रभा | १,२८,००० योजन |३ सागर
| १५ लाख | क्षेत्रजा; अन्योन्या, परमाधामी कृत ४. अंजणा पंकप्रभा | १,२०,००० योजन |७ सागर १० सागर | १० लाख क्षेत्रजा; अन्योन्या ५. रीट्ठा धूमप्रभा १,१८,००० योजन | १० सागर १७ सागर | ३ लाख क्षेत्रजा; अन्योन्या ६. मघा तमःप्रभा | १,१६,००० योजन | १७ सागर २२ सागर | ९९,९९५ क्षेत्रजा; अन्योन्या ७. माधवइतमस्तमःप्रभा | १,०८,००० योजन |२२ सागर ३३ सागर । ५ क्षेत्रजा; अन्योन्या
८४ लाख ___ नरकभूमि अत्यन्त कर्कश, कठोर और ऊबड़-खाबड़ है। उस भूमि का स्पर्श ही इतना कष्टकर होता है, मानो हजार बिछुओं के डंकों का एक साथ स्पर्श हुआ है।
नरक में वेदना ___ नरक में उत्पन्न होने वाले पापी जीव तीन प्रकार की वेदना भोगते हैं-(१) क्षेत्रजनित वेदना, (२)
वेदना-एक-दूसरे के द्वारा दी जाने वाली. तथा (३) परमाधामी (यम परुषों द्वारा दी गई) वेदना। क्षेत्र वेदना मुख्यतः १० प्रकार की है-(१) अत्यन्त शीत, (२) अत्यन्त उष्ण, (३) अति क्षुधा, (४) अत्यन्त तृष्णा, (५) घोर खुजली, (६) पराधीनता, (७) जरा (वृद्धत्व), (८) अत्यन्त दाह, (९) शोक, (१०) भय। ये दसों वेदना उस क्षेत्र में अत्यन्त उग्र असहनीय रूप में होती हैं।
क्षेत्र वेदना सातों नरकों में क्रमशः अशुभ, अशुभतर होती हैं। परस्परोदीरित वेदना दो प्रकार की हैं। परस्पर शरीर से दी जाने वाली तथा शस्त्र आदि प्रहारों से नारक जीव परस्पर झगड़ते रहते हैं। नरक में जो मिथ्यादृष्टि जीव होते हैं वे अज्ञान आदि के कारण परस्पर उग्र रूप में लड़ते-झगड़ते हैं। दूसरों को पीड़ा देते हैं। सम्यक दृष्टि जीव अपने पूर्व कर्मों को निमित्त मानकर उस वेदना को समभाव के साथ वेदते हैं। अतः मिथ्यादृष्टि जीवों की वेदना उग्र-उग्रतर होती है, सम्यक् दृष्टि की वेदना अल्प होती है।
श्रु.१, प्रथम अध्ययन : हिंसा आश्रय
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Sh.I, First Chapter : Violence Aasrava |
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