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________________ 5 फ्र SS*******************************55 卐 १५ प्रकार के परमाधामी (असुर जाति के) देव हँसी, खेल, मनोरंजन के निमित्त उन्हें भयंकर यातनाएँ देते हैं। वह केवल तीसरे नरक तक ही होते हैं। सूत्र २३ में केवल क्षेत्रजनित वेदना का वर्णन किया है 卐 नरक में घोर अंधकार सदैव व्याप्त रहता है। चन्द्र, सूर्य, ग्रह, नक्षत्र आदि का लेशमात्र भी प्रकाश नहीं है। माँस, रुधिर, पीव, चर्बी आदि घृणास्पद वस्तुएँ ढेर की ढेर वहाँ बिखरी पड़ी हैं, जो अतीव उद्वेग तथा 5 घृणा उत्पन्न करती हैं। यद्यपि माँस, रुधिर आदि औदारिक शरीर में ही होते हैं और वहाँ औदारिक शरीरधारी 5 मनुष्य एवं पंचेन्द्रिय तिर्यंच नहीं हैं, तथापि वहाँ के पुद्गल अपनी विचित्र परिणमन शक्ति से इन घृणित वस्तुओं के रूप में परिणत होते रहते हैं। इनके कारण वहाँ सदैव दुर्गन्ध-सड़ांध फैली रहती है जो दुस्सह त्रास उत्पन्न करती है। फ्र नरकों के कोई स्थान अत्यन्त शीतमय है तो कोई अतीव उष्णतापूर्ण है। जो स्थान शीतल हैं वे हिमखण्ड से भी असंख्यगुण शीतल हैं और जो उष्ण हैं वे खदिर की धधकती अग्नि से भी अत्यधिक उष्ण हैं । १. अम्ब - ये नारकों को ऊपर आकाश में उछालकर एकदम नीचे पटक देते हैं। २. अम्बरीष - छुरी आदि शस्त्रों से नारकों के शरीर के टुकड़े-टुकड़े करके भाड़ में पकाने डाल देते हैं। ३. श्याम - रस्सी से या लात-घूसों से नारकों को मारते हैं और यातनाजनक स्थानों में पटक देते हैं। ४. शबल-ये नारक जीवों के शरीर की आँतें, नसें और कलेजे आदि को बाहर निकाल लेते हैं । ५. रुद्र - भाला, बर्छा आदि नुकीले शस्त्रों में नारकों को पिरो देते हैं। इन्हें रौद्र भी कहते हैं। ये अतीव भयंकर होते हैं। नारक जीव ऐसी नरकभूमियों में सुदीर्घकाल तक भयानक से भयानक यातनाएँ निरन्तर, प्रतिक्षण भोगते रहते हैं। वे प्रतिक्षण १० प्रकार की वेदना भोगते रहते हैं। वहाँ उनके प्रति न कोई सहानुभूति प्रकट करने • वाला, न सान्त्वना देने वाला और न यातनाओं से रक्षण करने वाला है। इतना ही नहीं, वरन् भयंकर से भयंकर 5 कष्ट पहुँचाने वाले परमाधामी देव वहाँ हैं, जिनका उल्लेख यहाँ 'जमपुरिस' ( यमपुरुष) के नाम से किया गया 55 है। ये यमपुरुष पन्द्रह प्रकार के हैं और विभिन्न भयोत्पादक रूप बनाकर नारकों को घोर पीड़ा पहुँचाना उनके 5 लिए मनोरंजन है। वे इस प्रकार हैं ६. उपरुद्र - नारकों के अंगोपांगों को फाड़ने वाले, अत्यन्त ही भयंकर असुर हैं। ७. काल - ये नारकों को कड़ाही में पकाते हैं । ८. महाकाल-ये नारकों के माँस के खण्ड-खण्ड करके उन्हें जबर्दस्ती खिलाने वाले अतीव काले असुर हैं। ९. असिपत्र - अपनी वैक्रिय शक्ति द्वारा तलवार जैसे तीक्ष्ण पत्तों वाले वृक्षों का वन बनाकर उनके पत्ते नारकों पर गिराते हैं और नारकों के शरीर के तिल जितने छोटे-छोटे टुकड़े कर डालते हैं। १०. धनुष - ये धनुष से तीखे बाण फेंककर नारकों के कान, नाक आदि अवयवों का छेदन करते हैं और अन्य प्रकार से भी उन्हें पीड़ा पहुँचाकर आनन्द मानते हैं। ११. कुम्भ- ये असुर नारकों को कुम्भियों में पकाते हैं। १२. बालु—ये वैक्रियलब्धि द्वारा बनाई हुई कदम्ब - बालुका अथवा वज्र - बालुका - रेत में नारकों को चना आदि की तरह भूनते हैं । श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (40) Jain Education International फफफफफफफफफफ 27 5 5 5 55 5 55 5 5 55 5 5 5 5 5 55 5 5 555595555 559 55555555955555552 Shri Prashna Vyakaran Sutra For Private & Personal Use Only 卐 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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