________________
फफफफफफफफफ
155955555555595555555595555559555552
विवेचन : पृथ्वी ही जिन जीवों का शरीर है वे पृथ्वीकायिक कहलाते हैं। इसी प्रकार जल, अग्नि, वायु और वनस्पति ही जिनका शरीर है, वे क्रमशः जलकायिक, अग्निकायिक, वायुकायिक और वनस्पतिकायिक जीव कहलाते हैं।
जब कोई मनुष्य पृथ्वीकाय आदि की हिंसा करता है तब वह केवल पृथ्वीकाय की ही हिंसा नहीं करता, अपितु उसके आश्रित रहे हुए अनेकानेक अन्यकायिक एवं त्रसकायिक जीवों की भी हिंसा करता है।
जल के एक बिन्दु में वैज्ञानिकों ने ३६,४५० जीव देखे हैं, वस्तुतः वे जलकायिक नहीं, जलाश्रित त्रस जीव हैं। जलकायिक जीव तो असंख्य होते हैं, जिन्हें वैज्ञानिक अभी नहीं जान सके हैं।
Elaboration-The living beings whose body is the earth itself are called earth-bodied. Similarly those living beings whose body is water, fire, air, plant itself are called water-bodied, fire-bodied, air-bodied and plant-bodied living beings respectively.
फ्र
When a person kills earth-bodied creature and the like, he commits death not only of earth-bodied living beings but he also causes violence to many other bodied immobile living beings and also mobile living beings dependant on them.
फ्र
Scientists have seen 36,450 living beings in a drop of water. But in 5 reality, they are not water-bodied living beings. They are mobile living 5 beings dependant on water. The water-bodied living beings are innumerable and the scientists have not been able to locate them so far. पृथ्वीकाय की हिंसा के कारण CAUSES OF VIOLENCE TO EARTH BODIED CREATURES
१३. [ प्र. ] किं ते ?
[ उ. ]
करिसण- पोक्खरिणी - वावि - वप्पिणि- कूब - सर - तलाग - चिइ - वेइय - खाइय - आरामविहार - थूभ - पागार - दार - गोउर - अट्टालग - चरिया - सेउ - संकम- पासाय - विकप्प - भवण - घर - सरण - लयण - आवण - चेइय- देवकुल- चित्तसभा - पवा - आयतणा-वसह - भूमिघर - मंडवाण कए भायणभंडोवगरणस्स य विविहस्स य अट्ठाए पुढविं हिंसंति मंदबुद्धिया ।
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
१३ . [ प्र. ] वे कौन-से कारण हैं, जिनसे (पृथ्वीकायिक) जीवों का वध किया जाता है ?
[ उ. ] कृषि, पुष्करिणी (चौकोर बावड़ी जो कमलों से युक्त हो), बावड़ी, क्यारी, कूप, सर, तालाब, भित्ति, वेदिका, खाई, आराम, विहार (मठ), स्तूप, प्राकार, द्वार, गोपुर ( नगर का मुख्य द्वार ) अटारी, चरिका (नगर और कोट के बीच का आठ हाथ प्रमाण मार्ग), सेतु - पुल, संक्रम (ऊबड़-खाबड़ 5 भूमि को पार करने का मार्ग), प्रासाद - राजमहल, बंगला या प्रासाद, भवन, गृह, सरण-झौंपड़ी, लयनपर्वत खोदकर बनाया हुआ स्थान, गुफा, दुकान, चैत्य - यक्षायतन आदि या छतरी और स्मारक, देवकुल- शिखरयुक्त देवालय, चित्रसभा, प्याऊ, आयतन देवस्थान, आवसथ-तापसों का आश्रम,
卐
Jain Education International
卐
(26)
For Private & Personal Use Only
Shri Prashna Vyakaran Sutra
फ्र
卐
5
ब
www.jainelibrary.org