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विवेचन : संसार के समस्त जीवों के मुख्य भेद संलग्न तालिका से समझे जा सकते हैं
त्रस
स्थावर एकेन्द्रिय
द्वीन्द्रिय त्रीन्द्रिय
पंचेन्द्रिय
१. पृथ्वीकाय २. अपकाय
३. तेजस्काय तिर्यंच १. जलचर मनुष्य नारक देव ४. वायुकाय २. स्थलचर
५. वनस्पतिकाय ३. खेचर ४. उरःपरिसर्प
५. भुजपरिसर्प द्वीन्द्रियादि जीव अपूर्ण इन्द्रियों वाले हैं, अतः विकलेन्द्रिय कहे जाते हैं। प्रस्तुत सूत्र में स्थावर जीवों तथा विकलेन्द्रिय जीवों का उल्लेख नहीं करके त्रस पंचेन्द्रिय जीवों के सम्बन्ध में ही उल्लेख है।
सभी जीवों में जीवित रहने की उत्कट अभिलाषा होती है। किन्तु विकलेन्द्रिय तथा तिर्यंच पंचेन्द्रिय जीव प्रायः स्पष्ट वाणी शक्ति का अभाव होने के कारण अपनी वेदना स्पष्ट प्रकट नहीं कर सकते तथा अपना बचाव करने का सामर्थ्य भी मानव जैसा उनमें नहीं होता। निर्दय स्वार्थी मनुष्य विविध प्रयोजनों से उन जीवों की हिंसा करते हैं, जिसका निर्देश अगले सूत्रों में किया गया है।
Elaboration—The primary categories of the living beings in this world can be understood from the following tableMobile
Immobile
T
Two-sensed Three-sensed Four-sensed Five-sensed
One-sensed
1. Acquatic Human beings Hellish beings Gods 1. Earth-bodied 2. Moving on land
2. Water-bodied 3. Moving in sky
3. Fire-bodied 4. Moving with breast
4. Air-bodied 5. Moving with arms
5. Plant-bodied The living beings having two, three or four senses are called Vikalendriya as they do not have all the five senses. In the present Sutra
श्रु.१, प्रथम अध्ययन : हिंसा आश्रव
(24)
Sh.1, First Chapter : Violence Aasrava
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