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________________ [प्र. ] वे शब्द मनोज्ञ कौन-से, किस प्रकार के हैं ? [उ. ] (इसके उत्तर में कहते हैं) बड़ा मृदंग-महामर्दल, छोटा मृदंग, पणव-छोटा ढोल, द१र-चमड़े से मढ़े मुख वाला और कलश जैसा ढोलक, कच्छभी-वाद्यविशेष, वीणा, विपंची और वल्लकी (विशेष प्रकार की वीणाएँ), वद्दीसक नाम का बाजा, सुघोषा नामक एक प्रकार का घंटा, नन्दी-बारह प्रकार के ॐबाजों का निर्घोष, सूसरपरिवादिनी-एक प्रकार की वीणा, वंश-बांसुरी, तूणक एवं पर्वक नामक वाद्य, । तंत्री-एक विशेष प्रकार की वीणा, तल-हस्ततल, ताल-कांस्य-ताल, इन सब बाजों के नाद को (सुनकर) तथा नट, नर्तक, जल्ल-बाँस या रस्सी के ऊपर खेल दिखलाने वाले, मल्ल, मुष्टिमल्ल, विदूषक, कथा कहने वाले, प्लवक-उछलने वाले, रास गाने वाले शुभाशुभ फल बताने वाले, चित्रपट दिखाने वाले, तूण (तुनतुनी) नामक बाजा बजाने वाले, तुम्बी की वीणा बजाने वाले, करताल बजाने वाले आदि द्वारा किये जाने वाले नाना प्रकार की मधुर ध्वनि से युक्त सुस्वर गीतों को (सुनकर) तथा करधनी-कंदोरा, मेखला (विशिष्ट प्रकार की करधनी), कलापक-गले का एक आभूषण, प्रतरक और प्रहेरक नामक आभूषण, पादजालक-नूपुर आदि आभरणों के एवं घण्टिका-धुंघरू, खिंखिनी-छोटी घंटियों वाला आभरण, रत्नोरुजालक-रत्नों का जंघा का आभूषण, क्षुद्रिका नामक आभूषण, नेउर-नूपुर, चरणमालिका तथा कनकनिगड नामक पैरों में पहनने के सोने के कड़े और जालक नामक आभूषण, इन सबकी ध्वनि-आवाज को (सुनकर) तथा लीलापूर्वक चलती हुई स्त्रियों की चाल से म उत्पन्न (ध्वनि को) एवं तरुणी रमणियों का हास्य तथा स्वर-मधुरतापूर्वक बोले गये शब्द तथा सुन्दर आवाज को (सुनकर) और स्नेही जनों द्वारा भाषित प्रशंसा-वचनों को एवं इसी प्रकार के मनोज्ञ एवं सुहावने वचनों को (सुनकर) उनमें साधु को आसक्त नहीं होना चाहिए, राग नहीं करना चाहिए, गृद्धि-अप्राप्ति की अवस्था में उनकी प्राप्ति की आकांक्षा नहीं करनी चाहिए, मुग्ध नहीं होना चाहिए, । उनके लिए स्व-पर का घात नहीं करना चाहिए, लोभ नहीं होना चाहिए, तुष्ट-प्राप्ति होने पर प्रसन्न नहीं ॐ होना चाहिए, हँसना नहीं चाहिए, ऐसे शब्दों का स्मरण और विचार भी नहीं करना चाहिए। - इसके अतिरिक्त श्रोत्रेन्द्रिय से अमनोज्ञ तथा पापजन्य अशुभ शब्दों को-मन में अप्रीतिजनक एवं पापजन्य-अभद्र शब्दों को सुनकर रोष (द्वेष) नहीं करना चाहिए। [प्र. ] वे (अशुभ) शब्द-कौन कौन से हैं? [उ.] आक्रोश वचन, कठोर वचन, निंदात्मक वचन, अपमान वचन, डांट फटकार, धिक्कार वचन, दीप्त वचन, त्रासजनक वचन, उत्कूजित-अस्पष्ट उच्च ध्वनि, रुदन ध्वनि, रटित-धाड़ मारकर रोने, क्रन्दन-वियोगजनित विलाप आदि की ध्वनि, निर्युष्ट-निर्घोषरूप ध्वनि, रसित-जानवर के समान चीत्कार, करुणाजनक शब्द तथा विलाप के शब्द-इन सब शब्दों में तथा इसी प्रकार के अन्य अमनोज्ञ ॐ एवं पापजनित-अभद्र शब्द कान में पड़ने पर साधु को रोष नहीं करना चाहिए, उनकी हीलना नहीं करनी चाहिए, निन्दा नहीं करनी चाहिए, न दूसरे लोगों के सामने उनकी बुराई करनी चाहिए, अमनोज्ञ शब्द उत्पन्न करने वाले पदार्थ या व्यक्तियों के छेदन भेदन में प्रवृत्त नहीं होना चाहिए, न वध करना + चाहिए। न ही अपने अथवा दूसरे के हृदय में जुगुप्सा उत्पन्न करनी चाहिए। | श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (418) Shri Prashna Vyakaran Sutra 89555555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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