SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 505
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 5 ))55555 5 )))) )) 41 After explaining in detail about the attributes of a detached monk in the preceding aphorism, the author proceeds to explain the five sentiments for protecting the great vow of non-possession. प्रथम भावना- श्रोत्रेन्द्रिय संयम FIRST SENTIMENT : RESTRAINT OF SENSE OF HEARING १६५. तस्स इमा पंच भावणाओ चरिमस्स वयस्स होंति परिग्गहवेरमण-परिरक्खणट्ठयाए। पढम-सोइंदिएणं सोच्चा सद्दाई मणुण्णभद्दगाई। [प्र. ] किं ते ? __ [उ.] वरमुरय-मुइंग-पणव-ददुर-कच्छभि-वीणा-विपंची-वल्लयि-वद्धीसग-सुघोस+ णंदि-सूसरपरिवाइणी-वंस-तूणग-पव्वग-तंती-तल-ताल-तुडिय-णिग्योसगीय-वाइयाइं। णड+ णट्टग-जल्ल-मल्ल-मुट्ठिग-वेलंबग-कहग-पग-लासग-आइक्खग-लंख-मंख तूणइल्लम तुंबवीणिय-तालायर-पकरणाणि य, बहूणि महुरसरगीय-सुस्सराई कंची-मेहला-कलाव+ पतरग-पहेरग-पायजालग-घंटिय-खिंखिणि-रयणोरुजालिय-छुद्दिय-णेउर-चलण-मालिय कणग-णियल-जालग- भूसण-सद्दाणि, लीलकम्ममाणाणुदीरियाई तरुणीजणहसिय-भणियक कलरिभिय-मंजुलाई गुणवयणाणि व बहूणि-महुरजण-भासियाई अण्णेसु य एवमाइएसु सद्देसु जमणुण्णभद्दएसु ण तेसु समणेण सज्जियवं, ण रज्जियव्वं, ण गिल्झियव्वं, ण मुज्झियव्वं, ण विणिग्यायं आवज्जियव्वं, ण लुभियव्यं, ण तुसियव्यं, ण हसियव्यं, ण सइं च मइं च तत्थ कुज्जा। __पुणरवि सोइंदिएण सोच्चा सद्दाइं अमणुण्णपावगाइं [प्र. ] किं ते? + [उ. ] अक्कोस-फरुस-खिंसण-अवमाणण-तज्जण-णिभंछण-दित्तवयण-तासण-उक्कूजिय रुण्ण-रडिय-कंदिय-णिग्घुट्ठरसिण-कलुण-विलवियाई अण्णेसु य एवमाइएसु सद्देसु अमणुण्ण+ पावएसु ण तेसु समणेण रूसियव्वं, ण हीलियब्वं, ण शिंदियव्वं, ण खिंसियव्वं, ण छिंदियव्वं, ण भिंदियव्वं, + ण वहेयव्वं, ण दुगुंगावत्तियाए लभा उप्पाएउं। एवं सोइंदिय-भावणा-भाविओ भवइ अंतरप्पा मणुण्णाऽमणुण्ण-सुभिदुभि-रागदोसप्पणिहियप्पा साहू मणवयणकायगुत्ते संवुडे पणिहिइंदिए चरेज्ज धम्म। १६५. इस पूर्वोक्त परिग्रहविरमण रूप अन्तिम व्रत की सुरक्षा के लिए पाँच भावनाएँ हैं। उनमें से के प्रथम भावना (श्रोत्रेन्द्रिय-संयम) इस प्रकार है श्रोत्रेन्द्रिय से, मनोज्ञ और कर्णप्रिय-सुहावने प्रतीत होने वाले शब्दों को सुनकर साधु को उन पर राग नहीं करना चाहिए। 5555555555555555 卐555555555555555555555555555 श्रु.२, पंचम अध्ययन : परिग्रहत्याग संवर (417) Sh.2, Fifth Chapter: Discar... Samvar 555555555555555555555%%%%%%%%%%% Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy