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________________ 口5555555555555555555555555555555555559 (१) अत्यन्त निर्मल काँसे का बर्तन जैसे जल के प्रभाव से मुक्त रहता है, वैसे ही साधु रागादि के बन्ध से मुक्त होता है। (२) शंख के समान अंजन कालिमा से रहित अर्थात् रागादि के कालुष्य से रहित, अतएव राग, द्वेष और मोह से विरक्त होता है। (३) कछुए की तरह इन्द्रियों का गोपन करने वाला। (४) उत्तम स्वर्ण के समान शुद्ध आत्मस्वरूप को प्राप्त । (५) कमल के पत्ते की तरह निर्लेप। (६) सौम्य-शीतल स्वभाव के कारण चन्द्रमा के समान सौम्य। (७) सूर्य के समान संयम के तेज से देदीप्यमान। (८) गिरिवर मेरु के समान अचल-दृढ़ संयम साधु परीषह आदि में अडिग। (९) शान्त समुद्र के समान क्षोभरहित एवं स्थिर। (१०) पृथ्वी की तरह समस्त अनुकूल एवं प्रतिकूल स्पर्शों को सहन करने वाला। (११) तपश्चर्या के तेज से अन्तरंग में ऐसा देदीप्यमान लगता है मानों भस्मराशि से ढकी हुई अग्नि हों। उसी प्रकार कृषकाय शरीर के भीतर उस तेजस्वी आत्मा में तप का तेज विद्यमान रहता है। (१२) तेजी से जलती अग्नि के सदृश तेजस्विता से देदीप्यमान। (१३) गोशीर्ष चन्दन की तरह शीतल और अपने शील के सौरभ से युक्त। (१४) ह्रद- सरोवर के समान प्रशान्तभाव वाला। __(१५) अच्छी तरह घिसकर चमकाए हुए निर्मल दर्पणतल के समान स्वच्छ, प्रकट रूप से मायारहित होने के कारण अतीव निर्मल जीवन वाला-शुद्ध भाव वाला। (१६) कर्म-शत्रुओं की सेना को पराजित करने में गजराज की तरह शूरवीर। (१७) वृषभ की तरह अंगीकृत व्रत-भार का निर्वाह करने वाला। (१८) मृगाधिपति सिंह के समान परीषहादि से अजेय। (१९) शरद ऋतु के जल के समान स्वच्छ हृदय वाला। (२०) भारण्ड पक्षी के समान अप्रमत्त-सदा सजग। (२१) गेंडे के सींग के समान एकाकी-अन्य की सहायता की अपेक्षा न रखने वाला अथवा आत्मनिष्ठा रूपी एकाकीपन वाला। (२२) स्थाणु (यूँठ) की भाँति ऊर्ध्वकाय-कायोत्सर्ग में स्थित। ああ55555555555555545455555555545454555555555555555555550 | श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र (412) Shri Prashna Vyakaran Sutra Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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