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११. श्रावक की प्रतिमाएँ ग्यारह हैं - ( १ ) दर्शन, (२) व्रत, (३) सामायिक, (४) पौषध, फ (५) कायोत्सर्ग, (६) ब्रह्मचर्य, (७) सचित्तत्याग, (८) आरम्भत्याग, (९) प्रेष्यप्रयोगत्याग,
(१०) उद्दिष्टत्याग, और (११) श्रमणभूत ।
१२. भिक्षु - प्रतिमाएँ बारह हैं। वे इस प्रकार हैं
अर्थात् एकमासिकी, द्विमासिकी, त्रिमासिकी से लेकर सप्तमासिकी तक की सात प्रतिमाएँ सात-सात
अहोरात्र
की आठवीं, नौवीं और दसवीं, एक अहोरात्र की, ग्यारहवीं और बारहवीं प्रतिमा एक रात्रि की (विशेष विवरण दशाश्रुतस्कन्धसूत्र से जानना चाहिए)।
१३. क्रियास्थान तेरह हैं, जो इस प्रकार हैं
मासाई सत्तंता पढमा बिय तिय सत्त राइदिणा । अहराइ एगराई भिक्खू परिमाण बारसगं ॥
अर्थात् (१) अर्थदण्ड, (२) अनर्थदण्ड, (३) हिंसादण्ड, (४) अकस्मात्दण्ड, (५) दृष्टिविपर्यासदण्ड,
(६) मृषावाद दण्ड, (७) अदत्तादानदण्ड, (८) अध्यात्म दण्ड, (९) मानदण्ड, (१०) मित्रद्वेषदण्ड, (११) मायादण्ड, (१२) लोभदण्ड, और (१३) ऐर्यापथिकदण्ड | ( इनका विशेष विवेचन सूत्रकृतांग आदि सूत्रों से जान लेना चाहिए।)
अट्ठासाऽकम्हा दिट्ठी य मोसऽदिने य । अज्झप्पमाणमित्ते मायालो भेरिया
बहिया ॥
श्रु.२,
(२)
१४. भूतग्राम अर्थात् जीवों के चौदह समास समूह हैं, जो इस प्रकार हैं - ( 9 ) सूक्ष्म एकेन्द्रिय पर्याप्तक, सूक्ष्म एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, (३) बादर एकेन्द्रिय पर्याप्तक, (४) बादर एकेन्द्रिय अपर्याप्तक, (५) बेइन्द्रिय पर्याप्तक, (६) बेइन्द्रिय अपर्याप्तक, (७) त्रीन्द्रिय पर्याप्तक, (८) त्रीन्द्रिय अपर्याप्तक, चतुरिन्द्रय पर्याप्तक, (१०) चतुरिन्द्रिय अपर्याप्तक, (११) पंचेन्द्रिय असंज्ञी पर्याप्तक, फ्र (१२) पंचेन्द्रिय असंज्ञी अपर्याप्तक, (१३) पंचेन्द्रिय संज्ञी पर्याप्तक (१४) पंचेन्द्रिय संज्ञी अपर्याप्तक ।
( ९ )
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१५. नारक जीवों को, तीसरे नरक तक जाकर पीड़ा देने वाले असुरकुमार देव परमाधार्मिक 5 कहलाते हैं। वे पन्द्रह प्रकार के हैं - ( 9 ) अम्ब, (२) अम्बरीष, (३) श्याम, (४) शबल, (५) रौद्र, (६) महारौद्र, (७) काल, (८) महाकाल, (९) असिपत्र, (१०) धनु, (११) कुंभ, (१२) बालुक, (१३) वैतरणिक, (१४) खरस्वर, और (१५) महाघोष | ( इनके द्वारा उत्पन्न की जाने वाली यातनाओं का वर्णन प्रथम आस्रवद्वार में आ गया है।)
अध्ययन
१६. जिसमें गाथा नामक १६वाँ अध्ययन है, ऐसे सूत्र कृतांगसूत्र के प्रथम श्रुतस्कन्ध में सोलह है। उनके नाम ये हैं- (१) समय, (२) वैतालीय, (३) उपसर्गपरिज्ञा, (४) स्त्रीपरिज्ञा, (५) नरकविभक्ति, (६) वीरस्तुति, (७) कुशीलपरिभाषित, (८) वीर्य, (९) धर्म, (१०) समाधि, 5 (११) मार्ग, (१२) समवसरण, (१३) यथातथ्य, (१४) ग्रन्थ, (१५) यमकीय, और (१६) गाथा ।
पंचम अध्ययन: परिग्रहत्याग संवर
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Sh. 2, Fifth Chapter: Discar... Samvar
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