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२. जिनेश्वर भगवान ने प्राणवध रूप हिंसा का स्वरूप इस प्रकार बताया है, यथा - ( 9 ) पाप, (२) चण्ड, (३) रुद्र, (४) क्षुद्र, (५) साहसिक, (६) अनार्य, (७) निर्घृण, (८) नृशंस, (९) महाभय, (१०) प्रतिभय, (११) अतिभय, (१२) भापनक, (१३) त्रासनक, (१४) अन्याय, (१५) उद्वेगजनक, (१६) निरपेक्ष, (१७) निर्धर्म, (१८) निष्पिपास, (१९) निष्करुण, (२०) नरकवास गमन - निधन, (२१) मोहमहाभय प्रवर्तक, (२२) मरणवैमनस्य । इति प्रथम अधर्म - द्वार |
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2. The omniscient Tirthankar has described the nature of Praan Vadh as under(i) sin, (ii) contemptible (chand), (iii) wrath (rudra), (iv) rustic (kshudra), (v) rash (sahasik) (vi) uncultured (anarya), (vii) treacherous (nirghurna), (viii) inhuman ( nrishans), (ix) a great fear, (x) shadow of fear (pratibhaya ), (xi) extreme fear (atibhaya ), (xii) terrible (bhapanak ), (xiii) terrorising (trasanak ), (xiv) unjust, (xv) distressed, (xvi) noncommittal, (xvii) un-religious, (xviii) merciless, (xix) non-compassionate, (xx) desirous of hell, (xxi) engrossed in extreme fear due to attachment, (xxii) enmity due to death.
विवेचन: हिंसक की मनोवृत्तियों और उसके परिणामों का प्रकटीकरण करने वाले २२ विशेषण प्रस्तुत सूत्र में दिये हैं, जिनका भावार्थ इस प्रकार है
(१) पावो - पापकर्म की ८२ प्रकृतियों के बन्ध का कारण होने से यह पापरूप है।
(२) चंडो- जब कषाय के भड़कने से परिणाम उग्र हो जाते हैं, तब जीव प्राणवध करता है, अतएव यह चण्ड है।
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(३) रुद्दो - हिंसा करते समय जीव रौद्र परिणामी बन जाता है, अतएव हिंसा रुद्र है।
(४) खुद्दो - य - यह अत्यन्त नीच कर्म होने से क्षुद्र है। हिंसा करने वाले के मन में स्वार्थलिप्सा, असहिष्णुता, दुर्बलता, कायरता, ईर्ष्या एवं संकीर्णता आदि क्षुद्र मनोभाव रहते हैं।
(५) साहसिओ - हिंसा करने वाला अविवेकी, दुस्साहसिक तथा हिंसा के कटु परिणामों के प्रति लापरवाह होता है।
(६) अणारिओ-अनार्य पुरुष हिंसा का आचरण करते हैं, अथवा हेय प्रवृत्ति होने से भी यह अनार्य कर्म कहा गया है।
(७) णिग्घिणो - हिंसा करते समय पाप से घृणा नहीं रहती, अतः यह निर्घृण है।
(८) णिस्संसो - हिंसा दयाहीनता का कार्य है, अतएव नृशंस है।
(९) महत्भओ - हिंसा की पृष्ठभूमि में भय भी एक प्रबल कारण है। हिंसा करते हुए हिंसक भयभीत रहता है । जिसकी हिंसा होती है वह हिंस्य भी भयभीत होता है। हिंसा कृत्य को देखने वाले दर्शक भी भयभीत होते हैं। हिंसा में भय व्याप्त है। हिंसा भय का हेतु होने के कारण उसे महाभयरूप माना है।
(१०) पइभओ - हिंसा करने वाले का मन भी हिंस्य प्राणी से भयभीत रहता है। अतः यह प्रतिभय है । भय से भय उत्पन्न होता है।
श्रु. १, प्रथम अध्ययन : हिंसा आश्रव
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Sh. 1, First Chapter: Violence Aasrava
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