________________
255955555 5 5 55 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55555559555552
अफ्र
卐
senses, attachment towards the members of his family, the hatred and
卐
the delusion that increases the ignorance, slackness, the conduct followed by monks who have gone astray (just as those who accept food from the owner of the home who has provided the place of stay and suchlike others). The activities like massaging with ghee, taking bath 5 after using oil, washing armpits, head, hand, feet and face again and 5 again, massaging, rubbing the feet, rubbing the entire body, applying paste or fragrant powder or any sweet smelling thing on the body, decorating the body, trimming nails, locks of hair and clothes, engaging
in loud laughter, making speech with a polluted mind, dancing, seeing
actors, dancers, exhibiting their performance on ropes, witnessing
wrestling and other suchlike acts which are sources of temporal enjoyment, should be totally avoided for ever. Such activities adversely affect self-restraint, austerities and chastity partially or totally.
ब्रह्मचर्य - रक्षक नियम CODES SAFE GUARDING CHASTITY
१४७. भावियव्वो भवइ य अंतरप्पा इमेहिं तव - णियम - सील - जोगेहिं णिच्चकालं ।
किं ते ?
अण्हाणग- अदंतधोवण - सेय-मल- जल्लधारणं
मूणवय- केसलोय -
खुप्पिवासलाघव - सीउसिण - कट्ठ सिज्जा - भूमिणिसिज्जा- परघरपवेस-लद्भावलद्ध - माणावमाण5 जिंदण - दंसमसग - फास - णियम -तव- गुण- विणय-माइएहिं जहा से थिरतरगं होइ बंभचेरं ।
इमं च अबंभचेर - विरमण - परिरक्खणट्टयाए पावयणं भगवया सुकहियं अत्तहियं पेच्चाभावियं आगमेसिभद्दं सुद्धं णेयाउयं अकुडिलं अणुत्तरं सव्वदुक्ख - पावाणं विउसमणं ।
१४७. (ब्रह्मचर्य साधक की) आगे कहे जाने वाले तप, नियम और शील के प्रवृत्ति योगों से अन्तरात्मा को नित्य - निरन्तर भावित-वासित करना चाहिए।
कौन-से प्रवृत्ति योग हैं ?
(वे ये हैं -) स्नान नहीं करना, दन्तधोवन नहीं करना, स्वेद ( पसीना) और पसीने से मिश्रित मैल
को शरीर से पृथक् नहीं करना या धारण करना, मौनव्रत रखना, केशों का लुंचन करना, क्षमा करना, इन्द्रियों का दमन करना, अचेलकता - वस्त्ररहित होना अथवा अल्प
वस्त्र धारण करना, भूख-प्यास
सहना, लाघव- उपधि अल्प रखना, सर्दी, गर्मी सहना, काष्ठ की शय्या भूमिनिषद्या - जमीन पर आसन, परगृहप्रवेश-
- शय्या या भिक्षादि के लिए गृहस्थ के घर में जाना और प्राप्ति या अप्राप्ति (को समभाव से सहना ), मान, अपमान, निन्दा एवं दंश-मशक का क्लेश सहन करना, नियम अर्थात् द्रव्यादि सम्बन्धी
श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
-खम-दम - अलग
(362)
Jain Education International
55555555
For Private & Personal Use Only
Shri Prashna Vyakaran Sutra
फ्र
फफफफफफफफफ
www.jainelibrary.org