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एवं विवत्तवासवसहिसमिइजोगेण भाविओ भवइ अंतरप्पा णिच्चं-अहिंगरणकरणकारावणपावकम्मविरओ दत्तमणुण्णाय उग्गहरुई।
१३५. प्रथम भावना है। (विविक्त एवं निर्दोष वसति का सेवन करना) वह इस प्रकार है-देवालय, ॐ सभा-विचार-विमर्श का स्थान अथवा व्याख्यानस्थान, प्रपा-प्याऊ, आवसथ-परिव्राजकों के ठहरने
का स्थान, वृक्षमूल, आराम-लतामण्डप आदि से युक्त, दम्पत्तियों के रमण करने योग्य बगीचा, ॐ कन्दरा-गुफा, आकर-खान, गिरिगुहा-पर्वत की गुफा, कर्म-जिसके अन्दर सुधा (चूना) आदि तैयार
किया जाता है, बाग-बगीचे, यानशाला-रथ आदि रखने की वाहनशालायें, कुप्यशाला-घर का सामान रखने का स्थान, मण्डप-विवाह आदि के लिए या यज्ञादि के लिए बनाया गया मण्डप, शून्य घर, श्मशान, पहाड़ में बना गृह तथा दुकान तथा इसी प्रकार के अन्य स्थानों में जो भी सचित्त जल, मिट्टी, : बीज, दूब हरी वनस्पति और चींटी-मकोड़े आदि त्रस जीवों से रहित हो, जिसे गृहस्थ ने अपने लिए । बनवाया हो, ऐसे प्रासुक-जीव-जन्तु रहित हो, स्त्री, पशु एवं नपुंसक के संसर्ग से रहित हो और इस ! कारण जो योग्य हो, ऐसे उपाश्रय में साधु को विहरना चाहिए-ठहरना चाहिए।
(किस प्रकार के उपाश्रय-स्थान में नहीं ठहरना चाहिए? इसका उत्तर यह है-) साधुओं के निमित्त है जिसके लिए हिंसा की जाये, ऐसे आधाकर्म के दोष से परिपूर्ण, आसिक्त-जल के छिड़काव वाले, म संमार्जित-बुहारी से साफ किये हुए, उत्तिक्त-पानी से खूब सींचे हुए, शोभित-सजाये हुए, छादन-डाभ ! ॐ आदि से छाये हुए, दूमन-कलई आदि से पोते हुए, लिम्पन-गोबर आदि से लीपे हुए, अनुलिंपन-लीपे । 5 को फिर लीपा हो, ज्वलन-अग्नि जलाकर गर्म किये हुए या प्रकाशित किये हुए, भाण्डों-सामान को ।
इधर-उधर हटाये हुए अर्थात् साधु के लिए कोई सामान इधर-उधर किया गया हो और जिस स्थान के , ॐ अन्दर या बाहर (समीप में) जीवविराधना होती हो, ये सब जहाँ साधुओं के निमित्त से हों, वह 5 स्थान-उपाश्रय साधुओं के लिए वर्जनीय है। ऐसा स्थान शास्त्र द्वारा निषिद्ध है।
इस प्रकार विविक्ति वास वसति (निर्दोष स्थान में निवास) रूप समिति के योग -चिन्तन युक्त प्रयोग + से संस्कारित साधु का अन्तरात्मा सदा दोषयुक्त आचरण के करने और करवाने के पापकर्म से विरत
हो जाता है तथा दत्त-अनुज्ञात अवग्रह में रुचि वाला होता है। ___135. The first of the five sentiments is to have a lonely and faultless
place of stay. Such a place is a temple, common place to assemble, a place 4 meant for lectures, a place meant for serving water, a place meant for
stay of mendicants, the root of a tree, a place covered with creeper for taking rest, a garden suitable for amorous enjoyments of couples, a cave, a mine, a hilly cave, a place where lime is prepared, a garden of flowering trees, a place stationing chariots, the store in a house, an enclosure for celebrating marriages, a place for yajnas, a vacant house (ruin), a cremation ground, a shop or house on a hill and any suchlike
"नानानानागागाanana
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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