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मानामानामा
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नानागामा
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1554455555555555555555550 . विवेचन : प्रस्तुत पाठ में अस्तेयव्रत सम्बन्धी भगवत्प्रवचन की महिमा बतलाई गई है। साथ ही व्रत के पालनकर्ता को प्राप्त होने वाले फल का भी निर्देश किया गया है।
133. This vow of avoiding taking away (stealing) an article belonging to others, has been narrated in a logical manner by Tirthankar. This lesson is beneficial for the soul. It is going to provide good result in the succeeding life. It is meritorious in future. It is best and logical. It easily leads to salvation. It is the best of all. It pacifies all the troubles and sins completely.
Elaboration—In the present lesson, the importance of the word of Tirthankar has been narrated. Simultaneously the benefits of it to the person who practices this vow have been mentioned. ___पूर्वोक्त सूत्रपाठों में शास्त्रकार ने अस्तेय व्रत की महिमा, उसका स्वरूप और इसके विराधक
आराधक के बारे में स्पष्ट विवेचन किया है। अब यहां अचौर्य संवर को साधक के मन-वचन-काया में बद्धमूल करने हेतु इसकी पांच भावनायें निम्नोक्त सूत्र पाठों में बताई है -
In the aforesaid aphorisms the author has lucidly elaborated the i importance of vow of non-stealing, its definition as well as its practicers and non practicers. Now he procedes to narrate the five sentiments that absorb this Achorya Samvar mentally, vocally and physicallyअस्तेय व्रत की पाँच भावनाएँ FIVE SENTIMENTS OF THE VOW OF NON-STEALING
१३४. तस्स इमा पंच भावणाओ होंति परदव्व-हरण-वेरमण-परिरक्खणट्ठयाए।
१३४. परद्रव्यहरणविरमण (अदत्तादानत्याग) व्रत की पूरी तरह रक्षा करने के लिए पाँच भावनाएँ हैं, जो आगे कही जा रही हैं। ____134. There are five sentiments to completely safe-guard the vow of ॥ non-stealing. The same are being narrated here. प्रथम भावना-निर्दोष उपाश्रय FIRST SENTIMENT-FAULTLESS UPASHRAYA
१३५. पढम-देवकुल-सभा-प्पवा-वसह-रुक्खमूल-आराम-कंदरागर-गिरि-गुहाकम्मंतउज्जाण-जाणसाला-कुवियसाला-मंडव-सुण्णघर-सुसाण-लेण-आवणे अण्णम्मि यी एवमाइयम्मि दग- मट्टिय-बीज-हरिय-तसपाणअसंसत्ते अहाकडे फासुए विवित्ते पसत्थे उवस्सए होइ विहरियव्वं। __ आहाकम्मबहुले य जे से आसित्त-सम्मज्जिय-उवलित्त-सोहिय-छायण-दूमण-लिंपणअणुलिंपण- जलण-भंडचालणं अंतो बहिं च असंजमो जत्थ वड्डइ संजयाण अट्ठा वज्जियव्यो हु उवस्सओ से तारिसए सुत्तपडिकुठे।
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श्रु.२, तृतीय अध्ययन : दत्तानुज्ञात संवर
(335) Sh.2, Third Chapter: To Get... Samvar 55555555555555555555555555555555555 Jain Education International For Private & Personal Use Only
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