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विवेचन : प्रस्तुत पाठ में अहिंसा के आराधक साधु को निर्दोष भिक्षा की गवेषणा करने का प्रतिपादन किया गया है। सूत्र में जिन दोषों का उल्लेख हुआ है, उनमें कतिपय विशिष्ट पदों का स्पष्टीकरण इस प्रकार है
नवकोटिपरिशुद्ध-आहारशुद्धि की नौ कोटियाँ (मर्यादा) ये हैं-(१) आहारादि की प्राप्ति हेतु साधु स्वयं हिंसा न करे, (२) दूसरों से हिंसा न करावे, (३) उस निमित्त हिंसा करने वाले का अनुमोदन न करे, (४) स्वयं न पकावे, (५) दूसरे से न पकवावे, (६) पकाने वाले का अनुमोदन न करे, (७) स्वयं न खरीदे, (८) दूसरे से । क्रय नहीं करावे, और (९) क्रय करते हुए या किये हुए का अनुमोदन न करे। मन, वचन और काय के योग से : ये नव कोटियाँ हैं।
Elaboration-In the present aphorism, it has been mentioned that a ! monk who is a practitioner of non-violence should seek only faultless food. Some special words occurring in the aphorism regarding faults about food are defined as follows
Navakotiparishudh-There are nine limitations regarding purity of food. They are-(1) monk should not commit any violence for procuring food. (2) He should not get any violence done. (3) He should not appreciate one who commits violence. (4) He should not cook food himself. (5) He should not get the food cooked froin others. (6) He should not appreciate one who cooks food. (7) He should not purchase himself.; (8) He should not get anything purchased by others. (9) He should not appreciate who purchases for him. These nine restrictions should be practised through mind, word and action. एषणा सम्बन्धी दस दोष
(१) शंकित-दोष की आशंका होने पर भी भिक्षा ले लेना। (२) म्रक्षित-भिक्षा देते समय हाथ. पात्र या आहार सचित्त पानी आदि से लिप्त होना। (३) निक्षिप्त-सचित्त पदार्थ पर रखी अचित्त वस्तु ग्रहण करना। (४) पिहित-सचित्त पदार्थ से ढंकी वस्तु लेना। (५) संहृत-किसी पात्र में से दोषयुक्त वस्तु पृथक् करके उसी पात्र से दी जाने वाली भिक्षा ग्रहण करना। (६) दायक-अबोध बालक आदि अयोग्य दाता से भिक्षा लेना। (७) उन्मिश्र-सचित्त अथवा सचित्तमिश्रित से मिला हुआ आहार लेना। (८) अपरिणत-जो पूर्ण रूप से अचित्त न हुआ हो, ऐसा आहार लेना। (९) लिप्त-तत्काल लीपी हुई भूमि पर से भिक्षा लेना। (१०) छर्दित-जो आंशिक रूप से नीचे गिर रहा हो या टपक रहा हो, ऐसा आहार लेना।
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"नानानानानानागाजागाजा
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
(276)
Shri Prashna Vyakaran Sutra
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