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Ten Faults Relating to Food
(1) Shankit-To accept doubtful food.
(2) Prakshit-To accept food with hands, pot or food full of lifebearing water.
(3) Nikshipt-To accept lifeless food kept on a living thing. (4) Pihit-To accept food covered with a thing bearing life.
(5) Sanhrit-To accept food from the same pot from which faulty material has been separated.
(6) Dayak—To accept food from a child or incapable person who is ignorant about faults regarding food.
(7) Unmishra-To accept faultless food mixed with faulty food.
(8) Aparinat-To accept food which has not becomes completely free from life.
(9) Lipt-To accept food from ground that has just been plastered.
(10) Chhardit-The food that is partly falling down or dripping. (१) सोलह उद्गम-दोष
दाता के कारण लगने वाले भिक्षा सम्बन्धी १६ दोष
(१) आधाकर्म-किसी एक-अमुक साधु-विशेष के निमित्त से छह काय के जीवों की हिंसा करके किसी वस्तु को पकाना आधाकर्म कहलाता है। यह दोष चार प्रकार से लगता है-(१) आधाकर्म दोष से दूषित आहार का सेवन करना, (२) आधाकर्मी आहार के लिए निमंत्रण स्वीकार करना, (३) आधाकर्मी आहार का सेवन करने वालों के साथ रहना, (४) आधाकर्मी आहारसेवी की प्रशंसा करना।
(२) औद्देशिक-भिक्षुओं के लिए तैयार किया हुआ आहारादि औद्देशिक कहलाता है। आधाकर्मी आहार किसी विशिष्ट-अमुक एक साधु के उद्देश्य से और औद्देशिक सामान्य रूप से किन्हीं भी साधुओं के लिए बनाया है गया होता है। यही इन दोनों में अन्तर है। जिन साध के लिए बना वही साधु को देना आधाकर्म है। एक साधु के के लिए बना और दूसरे साधु को दिया वो उसके लिए औदेशिक है। बीच के 22 तीर्थंकरों के और महाविदेह के साधुओं को औद्देशिक आहार कल्पता है। पर आधाकर्म तो किसी भी साधु को नहीं कल्पता है।
(३) पूतिकर्म-निर्दोष आहार में दूषित आहार का अंश मिला हो तो वह पूतिकर्म दोष से दूषित होता है।
(४) मिश्रजात-अपने लिए तथा साधु के लिए दोनों के लिए तैयार किया गया आहार मिश्रजात दोषयुक्त कहलाता है।
(५) स्थापना-साधु के लिए अलग रखा हुआ आहार लेना स्थापना दोष है। (६) प्राभृतिका-साधु को आहार देने के निमित्त से जीमनवार के समय को आगे-पीछे करना।
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श्रु.२, प्रथम अध्ययन : अहिंसा संवर
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Sh.2, First Chapter: Non-Violence Samvar
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