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________________ 2 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 5 55 2 卐 ५ Suyadhar vidith kaam budhi-Those who have expert knowledge of y scriptures and their meaning. Y Y The practice of non-violence by the great saints undergoing suchlike austerities is worthy of practice by every one who desires his welfare. आहार की निर्दोष विधि FAULTLESS METHOD OF TAKING FOOD ११०. इमं च पुढवि - दग - अगणि- मारुय - तरुगण - तस - थावर - सव्वभूयसंजमदयट्टयाए सुद्धं उञ्छं वेसियव्वं । y अकयमकारियमणाहूयमणुद्दिटं अकीयकडं णवहि य कोडिहिं सुपरिसुद्धं, दसहि य दोसेहिं उग्गम - उप्पायणेसणासुद्धं ववगयचुयचावियचत्तदेहं च फायं च ण णिसज्जकहापओयणक्खासुओवणीयं ति ण तिगिच्छा - मंत- मूल - भेसज्ञ्जकज्जहेउं, ण लक्खणुप्पाय - सुमिण - जोइस - णिमित्त - कहकप्पउत्तं, ण वि डंभणाए, ण वि रक्खणाए, ण वि सासणाए, ण वि डंभण- 5 रक्खण - सासणाए भिक्खं गवेसियव्यं, ण वि वंदणाए, ण वि माणणाए, ण वि पूयणाए, ण वि बंदण - फ्र फ्र विमुक्कं माण- पूयणाए भिक्खं गवेसियव्यं । ११०. अहिंसा का सम्यक् पालन करने के लिए उद्यत श्रमण को पृथ्वीकाय, अप्काय, अग्निकाय, वायुकाय, वनस्पतिकाय - इन स्थावर और ( द्वीन्द्रिय आदि) त्रस इस प्रकार सभी प्राणियों के प्रति संयमरूप दया पालन के लिए शुद्ध-निर्दोष भिक्षा की गवेषणा करनी चाहिए। निर्दोष भिक्षा कैसी होती है ? जो आहार साधु के लिए नहीं बनाया गया हो, दूसरे से नहीं बनवाया गया हो, जो गृहस्थ द्वारा निमंत्रण देकर या पुनः बुलाकर न दिया गया हो, जो साधु के निमित्त तैयार न 5 किया गया हो, साधु के उद्देश्य से खरीदा नहीं गया हो, जो नव कोटियों से विशुद्ध हो, शंकित आदि दश दोषों से सर्वथा रहित हो, जो उद्गम के सोलह, उत्पादन के सोलह और एषणा के दस दोषों से 5 रहित हो, जिस देय वस्तु में से बाहर आकर गिरने वाले जीव-जन्तु स्वतः पृथक् हो गये हों, वनस्पतिकायिक आदि जीव स्वतः या किसी के द्वारा मृत हो गये हों या दाता द्वारा दूर करा दिये गये हों अथवा दाता ने स्वयं दूर कर दिये हों, इस प्रकार जो भिक्षा अचित्त हो, जो सर्वथा शुद्ध अर्थात् भिक्षा सम्बन्धी अन्य दोषों से रहित हो, रमणीय हो, ऐसी भिक्षा की गवेषणा करनी चाहिए। 卐 गृहस्थ के घर भिक्षा के लिए गए हुए साधु को आसन पर बैठकर, धर्मोपदेश देकर या कथाकहानी सुनाकर प्राप्त किया हुआ आहार नहीं ग्रहण करना चाहिए। वह आहार चिकित्सा, मंत्र, जड़ीबूटी, औषध आदि बताकर उसके निमित्त प्राप्त नहीं होना चाहिए । स्त्री-पुरुष आदि के शुभाशुभसूचक लक्षण, उत्पात - भूकम्प, अतिवृष्टि, दुर्भिक्ष आदि स्वप्न ग्रहदशा, मुहूर्त्त आदि का प्रतिपादक ज्योतिषशास्त्र, विस्मयजनक चामत्कारिक प्रयोग या जादू के प्रयोग के कारण दिया जाता आहार नहीं होना चाहिए, अर्थात् साधु को लक्षण, उत्पात, स्वप्नफल या कुतूहलजनक प्रयोग आदि बतलाकर भिक्षा नहीं ग्रहण करनी चाहिए। दम्भ अर्थात् माया का प्रयोग करके भिक्षा नहीं लेनी चाहिए। गृहस्वामी के घर Shri Prashna Vyakaran Sutra श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र 55 Y y Y Jain Education International (274) For Private & Personal Use Only 卐 www.jainelibrary.org
SR No.002907
Book TitleAgam 10 Ang 10 Prashna Vyakaran Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmarmuni, Varunmuni, Sanjay Surana
PublisherPadma Prakashan
Publication Year2008
Total Pages576
LanguageHindi, English
ClassificationBook_Devnagari, Book_English, Agam, Canon, Conduct, & agam_prashnavyakaran
File Size19 MB
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