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ॐ संभिन्न श्रोतस्लब्धिधारी-एक ही इन्द्रिय से देखना, सुनना, सूंघना आदि सभी इन्द्रियों के विषय को ग्रहण करने की क्षमता वाले। जैसे नाक से सुनना, कान से देखना आदि।
श्रुतधर-आचारांग आदि आगमों के विशिष्ट ज्ञाता। मनोबली-जिनका मनोबल अत्यन्त सुदृढ़ हो। वचनबली-जिनके वचनों में कुतर्क, कुहेतु का निरसन करने का विशिष्ट सामर्थ्य हो।
कायबली-भयानक परीषह और उपसर्ग आने पर भी पर्वत के समान अचल रहने की शारीरिक शक्ति के धारक।
ज्ञानबली-मतिज्ञान आदि ज्ञानों के बल वाले। दर्शनवली-सुदृढ़ तत्त्वार्थश्रद्धा के बल से सम्पन्न । चारित्रवली-विशुद्ध चारित्र की शक्ति से युक्त। क्षीरास्रवी-जिनके वचन दूध के समान मधुर प्रतीत हों। मधुरास्रवी-जिनकी वाणी मधु-सी मीठी हों।
सपिरास्रवी-जिनके वचन घृत जैसे स्निग्ध-स्नेहयुक्त हों। अथवा जिनके पात्र में पड़ा तुच्छ अन्न भी क्षीरॐ मधु-घृत की तरह तृप्ति व पुष्टि देने वाला है।
___अक्षीणमहानसिक-इस लब्धि के धारक जब तक स्वयं भोजन न कर लें तब तक लाखों को तृप्तिजनक 9 भोजन करा सकते हैं। वह भोजन तभी समाप्त होता है जब लाने वाला स्वयं भोजन कर ले। ___ चारण-आकाश में विशिष्ट गमन करने की शक्ति वाले। विद्याचारण और जंघाचारण।
विद्याधर-विद्या के बल से आकाश में चलने की शक्ति वाले।
उत्क्षिप्तचरक-अन्न पकाने के पात्र में से बाहर निकालकर रखे हुए भोजन में से ही आहार ग्रहण करने के अभिग्रहधारी। निक्षिप्तचरक-पकाने के पात्र में रक्खे हुए भोजन को ही लेने का अभिग्रह करने वाला। अन्तचरक-नीरस या चना आदि साधारण कोटि का ही आहार लेने का अभिग्रह करने वाले। प्रान्तचरक-बचा-खुचा ही आहार लेने की प्रतिज्ञा-अभिग्रह वाले। रूक्षचरक-रूखा-सूखा ही आहार लेने की प्रतिज्ञा वाले। समुदानचरक-सधन, निर्धन एवं मध्यम श्रेणी के घरों से समभावपूर्वक भिक्षा ग्रहण करने वाले। अन्नग्लायक-ग्लानि उत्पन्न करने जैसी ठण्डी-बासी भिक्षा स्वीकार करने वाले। मौनचरक-मौन धारण करके भिक्षा के लिए जाने वाले श्रमण। संसृष्टकल्पिक-भरे (लिप्त) हाथ या पात्र से आहार लेने की प्रतिज्ञा वाले।
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श्री प्रश्नव्याकरण सूत्र
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Shri Prashna Vyakaran Sutra
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